हर कोई अपने जीवन को शान से जीना चाहता है। हर एक की इच्छा यही होती है कि उसके जीवन में किसी भी प्रकार की दुख तकलीफ की छाया भी न पड़े। जीवन के इन्हीं दुख और तकलीफों से बचने के लिए आचार्य चाणक्य ने कुछ नीतियां बनाई हैं। साथ ही कुछ अनमोल विचार भी व्यक्ति किए हैं। ये नीतियां और अनुमोल विचार आज के जमाने में भी प्रासांगिक बने हुए हैं। अगर आप भी अपने जीवन में खुशहाली बरकरार रखना चाहते हैं तो चाणक्य की इन विचारों को अपने जीवन में उतारें। आज हम आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से एक विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार बदनामी पर आधारित है।
"सभी प्रकार के भय से बदनामी का भय सबसे बड़ा होता है।" आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य ने उपरोक्त लाइनों में मनुष्य के जीवन के सबसे बड़े भय का जिक्र किया है। इस कथन के मुताबिक मनुष्य को अपने जीवन में सबसे ज्यादा भय अगर किसी चीज का होता है तो वो बदनामी है। बदनामी की आग मनुष्य के जीवन को इस कदर झुलसाती है कि वो जिंदगी भर शर्मिंदगी महसूस करता है।
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बदनामी उसके दिमाग और जीवन पर इस कदर हावी हो जाती है कि वो समाज में अपने आपको को हीन भावना से देखने लगता है। यही हीन भावना उसे अंदर ही अंदर इतनी कचोटती है कि वो खुद को अपने परिवार और समाज से दूर करने लगता है। बदनामी के डर से उसकी जिंदगी बस चार दीवारी में ही कैद होकर रह जाती है।
जीवन में कई बार ऐसे पड़ाव किसी की जिंदगी में आते हैं जब उसे बदनामी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में उस व्यक्ति का मजाक उड़ान से अच्छा है कि आप उसे अपना कंधा दें। उसकी परेशानी समझें और उसे इस दुख से उबारने की कोशिश करें। अगर आप भी किसी व्यक्ति को जानते हैं जो बदनामी की आग में झुलस रहा तो उसके साथ बिल्कुल भी गलत व्यवहार न करें। ऐसा करके आप न केवल अपने बल्कि उस व्यक्ति के जीवन को भी खुशियों से भर सकते हैं।
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