आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार किसी के भी जीवन को आनंदमय बनाने के लिए काफी हैं। इन विचारों और नीतियों को जिसने भी अपने जीवन में उतार लिया उसका जीवन सफल ही मानो। ऐसा इसलिए क्योंकि ये नीतियां और विचार जीवन में आने वाली मुश्किलों से निकलने का तरीका बताते हैं। आचार्य चाणक्य के इन विचारों में से आज हम एक विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार पुस्तकों पर आधारित है।
इन दो चीजों की मनुष्य को कभी नहीं करनी चाहिए चिंता, वरना दांव पर लग जाता है वर्तमान भी "पुस्तकें एक मूर्ख आदमी के लिए वैसे ही हैं, जैसे एक अंधे के लिए आइना।" आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य ने अपने इस कथन में मूर्ख आदमी के लिए पुस्तकों का महत्व और अंधे के लिए आइने का कितना महत्व है इसी पर का जिक्र किया है। अपने इस कथन में आचार्य चाणक्य कहना चाहते हैं कि अगर आप किसी मूर्ख व्यक्ति को किताबें देंगे तो वो उसके महत्व को नहीं समझेगा। उस व्यक्ति के लिए किताबें केवल रद्दी मात्र ही होंगी। वो न तो किताबों में लिखित ज्ञान को ग्रहण करने के बारे में सोचेगा और न ही कुछ नया सीखने को। वो किताबों को सिर्फ अपने जीवन में व्यर्थ ही समझेगा। मूर्ख व्यक्ति के लिए उन किताबों का महत्व एक अंधे को आइना दिखाना जैसा है।
मनुष्य की वाणी में छिपी हैं ये दो चीजें, कंट्रोल न किया तो सब कुछ कर देगी तबाह अगर किसी भी व्यक्ति की आंखों की रोशनी चली जाती है तो वो अपने आप को देखने में असमर्थ है। उसके लिए खुद को शीशे में देखना का कोई मतलब नहीं रह जाता है। इसी तरह से अगर आप मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान की बातें सिखाएंगे तो वो उसके लिए इसे समझना मुश्किल होगा। वहीं किताबें उसके लिए कागज मात्र होंगी जिसे वो रद्दी में बेचना ही बेहतर समझेगा। चाणक्य का कहना है कि इस तरह के मूर्ख व्यक्ति से दूर ही रहना चाहिए। इन्हें समझाकर आप अपना सिर्फ समय बर्बाद करेंगे और हाथ में कुछ भी नहीं आएगा।
असल जिंदगी में कई बार ऐसा होता है कि हम लोग नासमझ व्यक्ति को समझाने की ढेरों कोशिश करते हैं। समझाने में न केवल आपका समय जाता है बल्कि आप अपनी ऊर्जा भी उस पर खर्च करते हैं। बाद में हाथ में कुछ भी नहीं लगता है। इसलिए मूर्ख व्यक्ति से दूर रहना ही बेहतर है।
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