आचार्य चाणक्य की नीतियां और अनमोल विचार आज भी प्रासांगिक है। जिस किसी ने भी चाणक्य की नीतियों और विचारों को अपने जीवन में उतारा वो सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा है। आचार्य चाणक्य के इन विचारों में जीवन का सार निहित है। आचार्य चाणक्य के इन अनुमोल विचारों में से आज हम एक विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार कठोर वाणी को लेकर है।
जंगल में सूखे पेड़ की तरह होता है परिवार का ये सदस्य, चाणक्य की इस नीति में छिपा है सुखमय जीवन का राज "कठोर वाणी अग्नि दाह से भी अधिक तीव्र दुःख पहुंचाती है।" आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का मतलब वाणी से है। इस लाइन के जरिए आचार्य चाणक्य ने कहा है कि मनुष्य के मुंह से निकले हुए बोल अग्नि दाह से भी ज्यादा तकलीफ पहुंचाते हैं। चाणक्य ने इन लाइनों में कठोर वाणी की तुलना अंतिम संस्कार के दौरान पार्थिव शरीर को अग्नि के हवाले करने से की है। उनका कहना है कि मुंह से निकले हुए तीखे शब्द मनुष्य के मन को अग्नि के हवाले करने से भी ज्यादा तेज और गहरे जख्म देते हैं।
जीते जी आपको खत्म कर देगा ये एक फैसला, चाणक्य के इस गुरु मंत्र में छुपा है सुखमय जीवन का राज कई बार ऐसा होता है कि मनुष्य गुस्से में किसी से ऐसी बात कह देता है जो किसी के मन को चोट पहुंचा सकती है। गुस्से के वशीभूत होकर उस वक्त तो व्यक्ति कुछ भी कह देता है लेकिन उसके मुंह से निकले कड़वे बोल किसी के भी मन को छलनी कर देते हैं। कई बार तो सामने वाला व्यक्ति जीवन भर उन शब्दों को भूल नहीं पाता। इसलिए कुछ भी बोलने से पहले शब्दों का सही चुनाव करना बहुत जरूरी है।
ऐसा इसलिए क्योंकि मुंह से निकले हुए बोल कभी भी वापस नहीं लिए जा सकते। कई बार कठोर शब्द बोलने के बाद लोगों को पछतावा भी होता है लेकिन तब तक बात बहुत आगे बढ़ चुकी होती है। अगर आप भी सुखी जीवन चाहते हैं तो वाणी पर नियंत्रण करना जरूर सीख लें।
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