आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार भीड़ का हिस्सा न बनकर अकेले चलने पर आधारित है।
'गलत दिशा में बढ़ रही भीड़ का हिस्सा बनने से बेहतर है सही दिशा में अकेले चलें।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का मतलब है कि गलत दिशा में बढ़ रही भीड़ का हिस्सा होने से अच्छा है। सही दिशा में अकेले ही चलें। यानी कि अगर आपको कोई चीज सही लग रही है तो वहीं करें किसे के कहने पर अपना फैसला न बदलें। कई बार ऐसा होता है कि जिंदगी में लिए गए कुछ फैसलों को लेकर लोगों का आपसे मतभेद होता है। हो सकता है कि परिवार के सभी लोग इस फैसले पर एक मत हो लेकिन आपका मत उनसे अलग हों। ऐसे में अगर आपका दिल और दिमाग यही कह रहा है कि आप जो कर रहे हैं वो सही है तो भीड़ का हिस्सा बनने से अच्छा है कि आप अकेले ही चलें।
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उदाहरण के तौर पर राजनीति में कुछ लोग अपने उसूलों पर चलते हैं तो कुछ उसूलों के खिलाफ। बहुत से लोग ऐसे हैं तो राजनीति में शोहरत और पैसा दोनों पाने के लिए अपने उसूलों को ताक पर रखकर काम करते हैं। ऐसे लोगों की राह बहुत आसान होती है। लेकिन इतना भी जरूर है कि ऐसे लोगों का सितारा बहुत कम वक्त के लिए चमकता है।
दूसरी ओर जो लोग अपने उसूलों को लेकर राजनीति में चलते हैं उनका रास्ता मुश्किल जरूर हो सकता है। हो सकता है कि रास्ते में उन्हें ऐसी मुसीबतों का सामना करना पड़े कि एक समय ऐसा आए कि हिम्मत भी टूटने लगे। ऐसे में हो सकता है कि आपके मन में बुरे ख्याल जरूर आएं। यहां तक कि आपको हो सकता है कि सच्चाई के रास्ते पर अकेले ही चलना पड़े तो बिल्कुल भी हिचकिचाइए मत। आचार्य चाणक्य का कहना है कि गलत दिशा में बढ़ रही भीड़ का हिस्सा बनने से बेहतर है सही दिशा में अकेले चलें।
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