आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का विचार माता-पिता की नसीहत और वसीयत पर आधारित है।
'कड़वा सच माता-पिता की नसीहत सबको बुरी लगती है, पर माता-पिता की वसीयत सबको अच्छी लगती है।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि मनुष्य को कई बार माता-पिता की नसीहत बुरी लग जाती है। लेकिन जब उनकी वसीयत की बात आती है तो वो उसे स्वाकारने से बिल्कुल भी पीछे नहीं हटते।
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हर एक के जीवन में पेरेंट्स का वो स्थान होता है जो किसी और का नहीं होता। माता-पिता ना केवल बच्चे को जन्म देते हैं, बल्कि वो हमेशा ये चाहते हैं कि वो अपने बच्चों को हर तकलीफ से दूर रखें। माता-पिता को बच्चों का पहला शिक्षक भी कहा जाता है। माता-पिता का प्यार बहुत पवित्र और निस्वार्थ होता है। वो अपने बच्चे को जितना प्यार करते हैं उसे शब्दों में पिरो पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है।
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पेरेंट्स बच्चों को ना केवल अच्छे संस्कार देते हैं बल्कि अच्छे और बुरे की सीख भी देते हैं। हालांकि कई बार ये सीख बच्चों को बुरी भी लग जाती है। ऐसा ज्यादातर तब होता है जब बच्चों की लंबाई माता-पिता के बराबर हो जाती है। उनका हर चीज को देखने और समझने का नजरिया अलग होता है। ऐसे में कई बार माता-पिता से उनका विचारों में टकराव भी हो जाता है। यहां तक कि उन्हें माता-पिता की सीख बुरी लगने लगती है। वहीं अगर टकराव के बीच बात वसीयत की आती है तो वो उन्हें बहुत अच्छी लगती है।
इसी वजह से आचार्य चाणक्य का कहना है कि भले ही बच्चों का अपने माता-पिता से विचारों में मतभेद हो लेकिन उनकी वसीयत पर वो पूरा हक जमाते हैं।
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