इस तरह के अपमान को झेल पाना है मुश्किल, बचकर निकलने में है भलाई
खुशहाल जिंदगी के लिए आचार्य चाणक्य ने कई नीतियां बताई हैं। अगर आप भी अपनी जिंदगी में सुख और शांति चाहते हैं तो चाणक्य के इन सुविचारों को अपने जीवन में जरूर उतारिए।
आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार किन लोगों का अपमान होता है इस पर आधारित है।
'विद्वानों की सभा में अनपढ़ वैसे ही अपमानित होता है जैसे हंसों के बीच बगुला।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि विद्वानों की सभा में हमेशा अनपढ़ लोगों का अपमान होता है। यानी कि अगर कोई बिना पढ़ा लिखा हुआ व्यक्ति ज्यादा पढ़े लिखे व्यक्तियों के बीच बैठ जाए तो उसका अपमान होना निश्चित है। आचार्य चाणक्य ने अनपढ़ लोगों की तुलना यहां पर बगुले से की है। अनपढ़ का हाल विद्वानों के बीच में रहकर वैसा ही होता है जिस तरह से हंसों के बीच बगुले का।
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असल जिंदगी में आपको कई बार ऐसा देखने को मिल जाएगा। जब कोई व्यक्ति बिल्कुल भी पढ़ा लिखा ना हो और वो ज्यादा पढ़े लिखे लोगों के साथ रहे तो उसका अपमान होना निश्चित है। ऐसा इसलिए क्योंकि पढ़े लिखे लोग बात बात पर अपनी तारीफे करेंगे। वहीं सामने बैठे अनपढ़ व्यक्ति को उनके हर कथन के साथ ये एहसास होगा कि वो कम पढ़ा लिखा है। हो सकता है कि वो अनपढ़ के सामने कुछ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल भी करें जिससे ना पढ़े लिखे व्यक्ति को अपनी कमी का और एहसास हो।
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ये ठीक उसी तरह है जिस तरह से लोग हंसों की खूबसूरती को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। इसी बीच अगर उनके सामने बगुला आ जाए तो वो उसे देखकर अनदेखा कर देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हंस देखने में बेहद खूबसूरत होता है। वहीं बगुला हंस की तुलना में बिल्कुल भी सुंदर नहीं होता। इसी कारण लोग उसका अनादर कर देते हैं। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि विद्वानों की सभा में अनपढ़ वैसे ही अपमानित होता है जैसे हंसों के बीच बगुला।