चैत्र नवरात्रि 2020: आज से नवरात्र शुरू, जानें कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
25 मार्च से चैत्र नवरात्र शुरू हो रहे है। जानें आचार्य इंदु प्रकाश से इस दिन कैसे करें घटस्थापना, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त।
हिंदू धर्म में प्रमुख व्रत में से एक चैत्र नवरात्र माना जाता है। पूरे 9 दिन मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल चैत्र महिने के पहले से ही नव वर्ष की शुरुआत होती है। इसके साथ ही चैत्र नवरात्र भी शुरू हो जाते है। इसके साथ ही इस दिन महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
आपको बता दें कि साल में 2 नवरात्र खास होते है। एक शारदीय नवरात्र और दूसरा चैत्र नवरात्र। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्र हर चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होते हैं। इस साल चैत्र नवरात्र 25 मार्च 2020 से शुरू होकर 2 अप्रैल 2020 को खत्म हो रहे हैं।
आज चैत्र शुक्ल पक्ष की उदया तिथि प्रतिपदा और बुधवार का दिन है । प्रतिपदा तिथि आज शाम 5 बजकर 27 मिनट तक रहेगी । उसके बाद द्वितीया तिथि शुरू हो जाएगी । आज से चैत्र नवरात्र या वासन्तिक नवरात्र का आरम्भ हो रहे हैं और 2 अप्रैल तक चलेंगे । नवरात्रों का यह त्योहार हमारे भारतवर्ष में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसका जिक्र पुराणों में भी अच्छे से मिलता है । वैसे तो पुराणों में एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, अश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर चार बार नवरात्रों का जिक्र किया गया है, लेकिन चैत्र और अश्विन माह के नवरात्रों को ही प्रमुखता से मनाया जाता है । बाकी दो नवरात्रों को तंत्र-मंत्र की साधना हेतु करने का विधान है । इसलिए इनका आम लोगों के जीवन में कोई महत्व नहीं है ।
आज नवरात्र के पहले दिन माता दुर्गा के शैलपुत्री रूप की आराधना की जाती है। लिहाजा आज माता शैलपुत्री का पूजा करना चाहिए और पूजा के दौरान माता शैलपुत्रीके मंत्र का जप करना चाहिए । मंत्र है-‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:’ -आज के दिन ऐसा करने से उपासक को धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, मोक्ष तथाहर प्रकार के सुख-साधनों की प्राप्ति होती है।
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25 मार्च, प्रतिपदा - बैठकी या नवरात्रि का पहला दिन- घट/ कलश स्थापना - शैलपुत्री
26 मार्च, द्वितीया - मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
27 मार्च, तृतीया- मां चंद्रघंटा की पूजा
28 मार्च, चतुर्थी - नवरात्रि का चौथा दिन- कुष्मांडा पूजा
29 मार्च, पंचमी - नवरात्रि का पाचवां दिन- मां स्कंदमाता पूजा
30 मार्च, षष्ठी - नवरात्रि का छठा दिन- मां कात्यायनी की पूजा
31 मार्च , सप्तमी - नवरात्रि का सातवां दिन- मां कालरात्रि की पूजा
1 अप्रैल, अष्टमी - नवरात्रि का आठवां दिन- मां महागौरी की पूजा, दुर्गा अष्टमी ,नवमी पूजन
2 अप्रैल, नवमी - नवरात्रि का नौवां दिन- मां सिद्धिदात्री की पूजा, नवमी हवन
3 अप्रैल, दशमी - पारण, दुर्गा विसर्जन
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
25 मार्च को दोपहर 12 बजकर 27 मिनट से लेकर 1 बजकर 59 मिनट तक राहुकाल रहेगा । राहुकाल का समय छोड़ कर आप किसी भी समय कलश की स्थापना कर सकते है ।
ऐसे करें कलश स्थापना
आचार्य इंदपु प्रकाश से जानें नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना कब की जाएगी। उसका सही मुहुर्त क्या है, साथ ही कलश स्थापना की सही विधि क्या है। कलश स्थापना के लिये सबसे पहले घर के उत्तर-पूर्वी हिस्से में निर्धारित स्थान की सफाई करके, वहां पर उत्तर-पूर्व कोने में जल छिड़क कर साफ मिट्टी या बालू रखनी चाहिए । उस साफ मिट्टी या बालू पर जौ की परत बिछानी चाहिए । उसके ऊपर पुनः साफ मिट्टी या बालू की साफ परत बिछानी चाहिए और उसका जलावशोषण करना चाहिए । जलावशोषण यानि उसके ऊपर जल छिड़कना चाहिए । फिर उसके ऊपर मिट्टी या धातु के कलश की स्थापना करनी चाहिए और अब कलश को गले तक साफ, शुद्ध जल से भरना चाहिए और उस कलश में एक सिक्का डालना चाहिए । अगर संभव हो तो कलश के जल में पवित्र नदियों का जल जरूर मिलाना चाहिए । इसके बाद कलश के मुख पर अपना दाहिना हाथ रखकर इस मंत्र का जप करना चाहिए । मंत्र है-
“गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति!
नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।“
साथ ही वरूण देवता का भी आह्वाहन करना चाहिए कि वो उस कलश में अपना स्थान ग्रहण करें । इसके बाद कलश के मुख पर कलावा बांधकर ढक्कन या मिट्टी की कटोरी से कलश को ढक देना चाहिए । अब ऊपर ढकी गयी कटोरी में जौ अथवा चावल भर लें । इसके बाद एक जटा वाला नारियल लेकर उसे लाल कपड़े से लपेटकर उसके ऊपर कलावा बांधें, इस प्रकार बंधे हुए नारियल को जौ या चावल से भरी हुई कटोरी के ऊपर स्थापित करें । ध्यान रहे कलश के ऊपर रखी गयी कटोरी में घी का दीपक जलाना उचित नहीं है । कलश का स्थान पूजा के उत्तर-पूर्व कोने में होता है जबकि दीपक का स्थान दक्षिण-पूर्व कोने में होता है । ध्यान रहे कि- कलश स्थपना कि सारी विधि नवार्ण मंत्र पढ़ते हुए करनी चाहिए।
नवार्ण मंत्र है-
“ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे” ।
देखिये एक बार फिर से नवार्ण मंत्र के साथ सारी कार्यवाही समझ लीजिये -
सबसे पहले उत्तर-पूर्व कोने की सफाई करें और जल छिड़कते समय कहें- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।"
फिर कोने में मिट्टी या बालू बिछायी और 5 बार मंत्र पढ़ा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
उसके ऊपर जौ बिछाया और मंत्र पढ़ा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
उसके ऊपर फिर मिट्टी या बालू बिछायी और मंत्र पढ़ा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
उसके ऊपर कलश रखा और मंत्र पढ़ा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
कलश में जल भरा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
उसमें सिक्का डाला- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
वरूण देव का आह्वाहन किया- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
कलश के मुख पर कलावा बांधा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
कलश के ऊपर कटोरी रखी- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
उसमें चावल या जौ भरा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
नारियल पर कपड़ा लपेटा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
उसे कलावे से बांधा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"
उस नारियल को जौ या चावल से भरी कटोरी पर रखा- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे" इस प्रकार सभी चीजें चामुण्डा मंत्र से ही, यानी नवार्ण मंत्र से अभिपूत की जानी है।
ऐसे करें ध्वजारोपण
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार नवरात्र के पहले दिन ध्वजारोपण की भी परंपरा है। इस दिन अपने घर के दक्षिण-पूर्व कोने, यानि अग्नि कोण में पांच हाथ ऊंचे डंडे में, सवा दो हाथ की लाल रंग की ध्वजा लगानी चाहिए । ध्वजा लगाते समय सोम, दिगंबर कुमार और रूरू भैरव देवताओं कीउपासना करनी चाहिए और उनसे अपनी ध्वजा की रक्षा करने की प्रार्थना करनी चाहिए । साथ ही अपने घर की सुख-समृद्धि के लिये भी प्रार्थना करनी चाहिए । ये ध्वजा जीत की प्रतीक मानी जाती है। इसे घर पर लगाने से केतु के शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं और साल भर घर का वास्तु भी अच्छा रहता है।
नवरात्र मनाने का कारण
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान श्री राम ने लंकापति रावण पर विजय पाने से पहले देवी मां की आराधना की थी, जिसके फलस्वरूप आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भगवान श्री राम ने रावण पर विजय हासिल की थी। इसीलिए नवरात्र के नौ दिनों के दौरान रामलीला का आयोजन होता है और नवरात्र के सम्पूर्ण होने के अगले दिन विजयदशमी, यानी दशहरे का त्योहार मनाया जाता है, जिसमें रावण के प्रतीक स्वरूप पुतले को जलाया जाता है और श्री राम की विजय का उत्सव मनाया जाता है । दशहरे का त्योहार जहां एक ओर अहंकार पर सत्य की विजय के अलावा इस बात का भी द्घोतक है कि इस देश के ब्राह्मण कभी जातिद्वेषी नहीं थे यदि ब्राह्मण जातिद्वेषी होते तो आज राम की नहीं रावण की पूजा होती, क्योंकि रावण ब्राह्मण थे । इस दिन सभी ब्राह्मण श्रीराम की पूजा करते है । वास्तव में इस देश के ब्राह्मण कभी जतिद्वेषी थे ही नहीं, ये तो मध्य काल में हिन्दू समाज को तोड़ने के लिये ब्राह्मणों को दोषी होने का झूठ कुप्रचार किया गया ।