नई दिल्ली: श्रीमद्भगवद्गीता हिंदू धर्म के पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है। महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध में श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था। गीता दुनिया के उन चंद ग्रंथों में शुमार है, जो आज भी सबसे ज्यादा पढ़ा जाता है और जीवन के हर पहलू को गीता से जोड़कर व्याख्या की जा रही है।
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इसमें कुल 18 अध्यायों के करीब 700 श्लोकों में हर उस समस्या का समाधान है जो कभी ना कभी हर इंसान के सामने आती हैं। जानिए गीता के ऐसें ही लाइफ मैनेजमेंट के बारें में जिससे आप अपने जीवन में हमेशा खुश-शांति रहेगी।
योगस्थ: कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय।
सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।
हे अजुर्न, धर्म का मतलब है कि कर्तव्य। धर्म के नाम पर हम अक्सर सिर्फ कर्मकांड, पूजा-पाठ, तीर्थ-मंदिरों तक ही रह जाते हैं। हमारे ग्रंथों ने कर्तव्य को ही धर्म कहा है। भगवान कहते हैं कि अपने कर्तव्य को पूरा करने में कभी यश-अपयश और हानि-लाभ का विचार नहीं करना चाहिए।
बुद्धि को सिर्फ अपने कर्तव्य पर टिकाकर काम करना चाहिए। इससे परिणाम बेहतर मिलेंगे और मन में शांति का वास होगा। आज का युवा अपने कर्तव्यों में फायदे और नुकसान का नापतौल पहले करता है, फिर उस कर्तव्य को पूरा करने के बारे में सोचता है। जिससे उनको नुकसान ही होता है। इसलिए हमेशा कर्तव्य के मार्ग में चलना चाहिए।
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