Makar Sankranti 2019: मकर संक्रांति के दिन 'खिचड़ी' खाने के पीछे है ये धार्मिक कारण
Makar Sankranti 2019: मकर संक्रांति हिंदू धर्म के बड़े त्योहारों मे से एक है। आइए जानते हैं इस दिन खिचड़ी खाने के पीछे का कारण।
मकर संक्रांति को खिचड़ी बनाने और खाने का अपना ही अलग खास महत्व है। जिसके कारण कई जगहों पर इसे खिचड़ी के नाम से भी जाता है। यह हर जगह अलग-अलग तरीके से बनाई जाती है। कोई चावल और मूंग की दाल डालकर सिंपल खिचड़ी बनाता है तो कोई कई तरह की सब्जियां खासकर गोभी डालकर बनाते है।
खिचड़ी बनाने के पीछे भी ग्रहों का शांत होना माना जाता है। जहां चावल को चंद्रमा का प्रतीक मनाते है तो काली दाल को शनि औऱ सब्जियों को बुध ग्रह का प्रतीर माना जाता है। कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है। खिचड़ी का धार्मिक महत्व है। जानें इनके बारें में।
आखिर क्यों खाई जाती है खिचड़ी
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने के पीछे मान्यता बाबा गोरखनाथ से जुड़ी हुई है। माना जाता है कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। इस वजह से योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमजोर हो रहे थे। दिन-ब-दिन योगियों की बिगड़ती हालत को देख बाबा गोरखनाथ ने इस समस्या का हल निकालते हुए दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी। यह व्यंजन पौष्टिक होने के साथ-साथ स्वादिष्ट था। इससे शरीर को तुरंत उर्जा भी मिलती थी। नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम 'खिचड़ी' रखा।
झटपट तैयार होने वाली खिचड़ी से नाथ योगियों की भोजन की परेशानी का समाधान हो गया और इसके साथ ही वे खिलजी के आतंक को दूर करने में भी सफल हुए। खिलजी से मुक्ति मिलने के कारण गोरखपुर में मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन गोरखनाथ के मंदिर के पास खिचड़ी मेला आरंभ होता है। कई दिनों तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है।
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