भ्रामरी प्राणायाम
भ्रामरी प्राणायाम चिन्ता व तनाव को घटाता है । यह हमारे विचारों को शिथिल करता है । यह कभी भी किया जा सकता है । इसके कम्पन्न हमें मानसिक विश्राम पंहुचाते हैं ।
विधि
सुखासन, सिद्धासन या पद्मासन में बैठकर सर्वप्रथम दोनों होथों की अंगुलियों में से अनामिका अंगुली से नाक के दोनों छिद्रों को हल्का सा दबाकर रखें। तर्जनी को पाल पर, मध्यमा को आंखों पर, सबसे छोटी अंगुली को होठ पर और अंगुठे से दोनों कानों के छिद्रों का बंद कर दें।
फिर श्वास को धीमी गति से गहरा खींचकर अंदर कुछ देर रोककर रखें और फिर उसे धीरे-धीरे आवाज करते हुए नाक के दोनों छिद्रों से निकालें। श्वास छोड़ते वक्त अनामिका अंगुली से नाक के छिद्रों को हल्का सा दबाएं जिससे कंपन उत्पन्न होगा।
जोर से पूरक करते समय भंवरी जैसी आवाज और फिर रेचक करते समय भी भंवरी जैसी आवाज उत्पन्न होना चाहिए। पूरक का अर्थ श्वास अंदर लेना और रेचक का अर्थ श्वास बाहर छोड़ना होता है।
इस योग से मानसिक दबाव, एंजायटी और डिप्रेशन को दूर किया जा सकता है। यह सभी के लिए लाभकारी है।
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