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रमजान में डायबिटीज के मरीज यूं बरतें सावधानी

रमजान के महिने में डायबिटीज जैसी बीमारियों से पीड़ित लोगों की सेहत के लिए भूखा रहना खतरनाक हो सकता है। यह बात मधुमेह पीड़ितों के मन से यह सवाल पैदा करती है कि रोजे रखें या न रखें। अपने धार्मिक अकीदे और भावनाओं को तरजीह दें या अपनी सेहत को।

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हेल्थ डेस्क:  आज से रमजान का महीना शुरु हो गया है। जोकि आध्यात्मिक चिंतन, सुधार और मुस्लिम धर्म के प्रति और अधिक श्रृद्धा प्रकट करने का महीना है। इस पूरे महीने के दौरान इस्लाम के सिद्धांतों पर मन लगाना और सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त तक उपवास करना होता है।

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सूर्य निकलने से पहले के आहार को सुहूर और सूर्यास्त के बाद के आहार को इफ्तार कहा जाता है। कुरान के मुताबिक, रोजे के जरिए दुनियावीं चीज़ों से मन को दूर कर अपनी रूह को शुद्ध करने के लिए हानिकारक अशुद्धियों से मुक्त होना है।

हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ केके अग्रवाल ने बताया कि महीने भर के लिए उपवास करना हमारे शारीरिक प्रणाली के शुद्धिकरण और तन व मन को संतुलित करने के लिए एक अच्छा तरीका है। डायबिटीज जैसी बीमारियों से पीड़ित लोगों की सेहत के लिए भूखा रहना खतरनाक हो सकता है। यह बात मधुमेह पीड़ितों के मन से यह सवाल पैदा करती है कि रोजे रखें या न रखें। अपने धार्मिक अकीदे और भावनाओं को तरजीह दें या अपनी सेहत को।

  • जिन्हें टाइप 1 डायबिटीज है उन्हें बिल्कुल भी भूखा नहीं रहना चाहिए क्योंकि उन्हें हाईपोग्लेसीमिया यानी लो ब्लड शूगर होने का खतरा रहता है।
  • आम तौर पर पाई जाने वाली टाइप 2 डायब्टीज वाले लोग रोजा रख सकते हैं लेकिन उन्हें नीचे दी गई बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए ताकि उनकी सेहत खराब ना हो-
  • स्लफोनाइल्योरियस और क्लोरप्रोप्माइड जैसी दवाएं रोजे के वक्त नहीं लेनी चाहिए क्योंकि इससे लंबे समय के लिए अवांछित लो ब्लड शुगर हो सकती है।

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