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Hindi News लाइफस्टाइल हेल्थ पूर्वजों से मिल सकती है ये भयानक बीमारी, ये है लक्षण साथ ही ऐसे रखें खुद का ख्याल

पूर्वजों से मिल सकती है ये भयानक बीमारी, ये है लक्षण साथ ही ऐसे रखें खुद का ख्याल

यह एक ऐसी बीमारी है जो कि पहले 60 साल की उम्र की बाद होती थी, लेकिन अब यह समस्या कम उम्र के लोगों या फिर अपने पूर्वजों से मिलती है। इस बीमारी का नाम है अल्जाइमर यानी की भूलने की बीमारी। ऐसे जानें है कि नहीं साथ ही ऐसे रखें ख्याल...

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हेल्थ डेस्क: उम्र बढ़ने के साथ इंसान की शारीरिक एवं मानसिक अवस्था में व्यापक परिवर्तन होते हैं। मानव शरीर जब वयस्क अवस्था से वृद्धावस्था की तरफ पहुंचने लगता है तब प्राकृतिक रूप से शारीरिक शक्ति क्षीण होने लगती है। ऐसे में हमारा शरीर कई तरह की बीमारी से रोगग्रस्त होने लगता है। ऐसी ही एक बीमारी अल्जाइमर है। अल्जाइमर 'भूलने का रोग' है।

सामान्य धारणा है कि अल्जाइमर युवावस्था में नहीं बल्कि 70 साल की उम्र से अधिक के व्यक्ति में होता है लेकिन सच यह है कि यह कम उम्र में भी हो सकता है जो कि वंशानुगत भी हो सकता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ इस बीमारी का खतरा बढ़ता जाता है। विश्व अल्जाइमर दिवस पर यह महत्वपूर्ण जानकारी जेपी हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजी विभाग के चिकित्सक डॉ. मनीष गुप्ता ने दी।

डॉ. गुप्ता के अनुसार, "दिमाग का वह हिस्सा जो याददाश्त बनाता है उसे टेम्पोरल लोब कहते हैं। अल्जाइमर के रोगियों में दिमाग का यह हिस्सा धीरे-धीरे क्षीण होने लगता है। इससे रोगी चीजों को भूलने लगता है। बढ़ती उम्र के साथ उसमें चिड़चिड़ापन और अचानक मूड बदलने का स्वभाव आ जाता है। रोगी अपने आप में आए इस व्यवहार से खुद हैरान होता है, लेकिन उसे पता नहीं चलता कि यह सब आखिर कैसे हो रहा है?"

उन्होंने कहा कि इंसान के दिमाग में एक सौ अरब कोशिकाएं होती हैं। हरेक कोशिका बहुत सारी अन्य कोशिकाओं के साथ नेटवर्क बनाती हैं। इस नेटवर्क का काम सोचना, सीखना, याद रखना, देखना, सुनना, सूंघना, मांसपेशियों को चलने का निर्देश देना आदि होता है। अल्जाइमर रोग में कुछ कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं, जिससे दूसरे कामों पर भी असर पड़ता है। जैसे-जैसे नुकसान बढ़ता है, कोशिकाओं में काम करने की ताकत कम होती जाती है और अंतत: वे मर जाती हैं।

उन्होंने कहा कि शुरुआती काल में इस बीमारी को पहचानना मुश्किल होता है। रोगी को पता ही नहीं चलता और यह बीमारी मस्तिष्क को प्रभावित करके उसकी याद्दाश्त और सोचने-समझने की क्षमता में अवरोध उत्पन्न करने लगती है। रोग की चपेट में आने पर व्यक्ति ठीक से सोचने-समझने, बोलने, काम करने में परेशानी महसूस करने लगता है। उसका सामाजिक दायरा संकुचित होता चला जाता है और वह अपने आप में सिमटता चला जाता है। हालांकि बीमारी के शुरूआती दौर में नियमित जांच और इलाज से इस पर काबू पाया जा सकता है।

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