हेल्थ डेस्क: मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी (एमआईटी) के अनुसंधानकर्ताओं ने कैंसर के इलाज के लिए मशीन लर्निग की एक नई तकनीक विकसित की है, जिससे घातक मस्तिष्क कैंसर के लिए कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है। अनुसंधानकर्ताओं में एक भारतवंशी भी शामिल है।
ग्लियोब्लास्टोमा एक घातक ट्यूमर है, जो मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी में होता है और इससे पीड़ित मरीज पांच साल से ज्यादा नहीं जी पाते हैं। ऐसे मरीजों को आमतौर पर दवाओं का काफी सुरक्षित खुराक दिया जाता है, फिर भी उनपर दवाओं का दुष्प्रभाव होने का खतरा बना रहता है। लेकिन नई सेल्फ लर्निग मशीन लर्निग तकनीक से दवाओं की खुराक दिए जाने से उसका दुष्प्रभाव कम हो सकता है।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि परंपरागत उपचार विधि की तुलना में नई उपचार तकनीक में मरीजों को खतरे की आशंका कम रहती है, जबकि फायदा अधिक होता है। अमेरिका के बोस्टन स्थित एमआईटी के प्रमुख अनुसंधानकर्ता पारीख शाह ने कहा, "हमारा लक्ष्य मरीजों के ट्यूमर के आकार को घटाना है। साथ ही हम यह भी सुनिश्चित करना चाहते हैं कि मरीजों पर इसका दुष्प्रभाव भी कम हो।"
परीक्षण के दौरान 50 मरीजों पर इसका प्रयोग किया गया, जिसमें उपचार के दौरान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एजेंट का उपयोग कर दवा की खुराक को तकरीबन एक-चौथाई या आधी मात्रा कर दी गई, जबकि ट्यूमर के आकार में काफी कमी आई।(हाथों और गर्दन में लगातार रहता है दर्द तो न करें अनदेखा, हो सकती है दिल की बीमारी)
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