डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चे भी सीख सकते हैं नार्मल तरीके से, जानिए कैसे
भारत में लगभग 10 से 15 प्रतिशत स्कूली बच्चे किसी न किसी प्रकार प्रकार के डिस्लेक्सिया से ग्रस्त हैं। हमारे देश में बहुत सारी भाषाएं हैं, जो स्थिति को और अधिक कठिन बना सकती हैं। जानिए इस स्थिति में उन्हें कैसे सीखा सकते है वो भी नार्मल तरीके से।
हेल्थ डेस्क: डिस्लेक्सिया दुनियाभर में प्रति 10 में से एक बच्चे को होता है। यह सीखने की अक्षमता वाली स्थिति है। डिस्लेक्सिया एसोसिएशन ऑफ इंडिया का कहना है कि यदि तरीका सही हो तो डिस्लेक्सिया वाले बच्चे भी सामान्य रूप से सीख सकते हैं। (चाहते हैं शरीर को सही शेप में रखना, तो जरूर करें यह आसान काम)
डिस्लेक्सिया एसोसिएशन ऑफ इंडिया का अनुमान है कि भारत में लगभग 10 से 15 प्रतिशत स्कूली बच्चे किसी न किसी प्रकार प्रकार के डिस्लेक्सिया से ग्रस्त हैं। हमारे देश में बहुत सारी भाषाएं हैं, जो स्थिति को और अधिक कठिन बना सकती हैं। यह स्थिति लड़कों व लड़कियों को समान रूप से प्रभावित कर सकती हैं। यदि कक्षा दो तक ऐसे बच्चों की पहचान नहीं हो पाई, तो ऐसे बच्चे बड़े होकर भी इस समस्या से परेशान रह सकते हैं और उस बिंदु पर इसे ठीक नहीं किया जा सकता। (इस शहर में तेजी से बढ़ रहा ब्रेस्ट कैंसर, रहे सतर्क)
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "डिस्लेक्सिक बच्चों का मस्तिष्क मानसिक संरचना और काम के लिहाज से सामान्य मस्तिष्क से भिन्न होता है। ऐसे बच्चों में, मानसिक विकास के लिए जिम्मेदार तंत्रिका तंत्र बचपन से ही अलग प्रकार का होता है। यह भिन्न वाइरिंग ही डिस्लेक्सिया का कारण बनती है। इसी वजह से सीखने व पढ़ने की सामान्य प्रक्रियाएं भी ऐसे बच्चों में लंबा समय ले लेती हैं।"
उन्होंने कहा, "हमारे देश में इस स्थिति के बारे में दुखद बात यह है कि ऐसे बच्चों को आलसी और कम बुद्धि वाला घोषित कर दिया जाता है। ये बातें उनके व्यक्तित्व को प्रभावित कर सकती हैं और उनका आत्मविश्वास व आत्मसम्मान कम होता जाता है। ऐसे बच्चों की मदद करने में प्रारंभिक पहचान एक प्रमुख भूमिका निभा सकती है। बच्चे के परिवार के इतिहास और अन्य संबंधित जानकारी के सहारे ऐसे बच्चों की मदद की जा सकती है।"
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि बच्चों में डिस्लेक्सिया के कुछ आम लक्षण हैं- बोलने में कठिनाई, हाथों व आंख में तालमेल न होना, ध्यान न दे पाना, कमजोर स्मरण शक्ति और समाज में फिट होने में कठिनाई।
उन्होंने बताया, "बच्चे की समझदारी का पहला पायदान होते हैं - उसके माता-पिता। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समस्या से भागने की बजाय, वे बच्चे की इस कठिनाई का हल खोजने की कोशिश करें, उसका चेकअप कराएं और उचित इलाज भी करवाने की पहल करें। यदि चिकित्सक बताता है कि बच्चे को डिसलेक्सिया है तो इसे जीवन का अंत न समझें। अपने बच्चे के प्रयासों को समझें, स्वीकार करें और समर्थन करें। धैर्य व समझदारी से इस समस्या का समाधान प्राप्त करने में आसानी हो सकती है।"
डिस्लेक्सिक बच्चों को उनकी शिक्षा और समझ संबंधी समस्याएं दूर करने की तकनीक:
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