टोक्यो: हाल ही में आए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि, ऐसे लोग जिन्हें सोते वक्त सांस लेने में परेशानी होती है, उनमें अन्य लोगों की तुलना में ग्लूकोमा होने का खतरा 10 गुना ज्यादा होता है। सामान्य आई प्रेशर वाले मरीजों की तुलना में ग्लूकोमा से पीड़ित लोगों की दिक्क्तों को बताते हुए अध्ययन में पाया गया है कि हापोक्सिया की वजह से आई प्रेशर में जरा भी परिवर्तन हुए ऑप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त हो सकता है।
ग्लूकोमा की बीमारी में मरीजों की आंख पर दबाव बढ़ने से ऑप्टिक नर्व की क्षमता खत्म हो जाती है जिससे उन्हें एक तय सीमा में देखने में दिक्कत होती है। होक्कोडो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता यसुहिरो शिनमेरी ने कहा, "नींद की हालत में आई प्रेशर को लगातार मापना तकनीकी रूप से मुमकिन नहीं होता। इस समस्या से निपटने के लिए हम मरीज की आंख में कांटैक्ट लेंस जैसा एक खास सेंसर लगा देते हैं।" सामान्य तौर पर सांस बाहर छोड़ते समय रुक जाने पर आई प्रेशर बढ़ जाता है और उसे इंट्राथोरासिक प्रेशर कहते हैं।
हालांकि अध्ययन में अनपेक्षित तरीके से पाया गया कि जब लोग अचानक सांस लेना रोक देते हैं तो आई प्रेशर तेजी से कम होने लगता है। यह स्थिति इसलिए पैदा होती है क्योंकि श्वास मार्ग के बंद होने से सांस अंदर खींचना और बाहर निकलना बंद हो जाता है। यह इंट्राथोरेसिक प्रेशर को कम करने का काम करता है। इसके अलावा हाइपोक्सिक प्रभाव भी देखने को मिला, जिसमें सांस लेने में ठहराव की वजह से रक्त में ऑक्सीजन के स्तर में गिरावट आती है। इससे ऑप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त होना शुरू हो जाता है, जो ग्लूकोमा का खतरा पैदा करता है।
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