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एनीमिया से युवा ही नहीं बच्चे भी तेजी से हो रहे है शिकार, वजह आईं सामने

एनीमिया हालांकि एक ऐसा विषय है जिस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता, लेकिन हाल ही में एसआरएल डायग्नॉस्टिक्स द्वारा किए गए इन-हाउस सर्वेक्षण के आधार पर जारी एक रिपोर्ट के अनुसार पाया गया है कि एनिमिया न केवल वयस्कों में बल्कि बच्चों में भी आमतौर पर पाया जाता है।

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हेल्थ डेस्क: एनीमिया हालांकि एक ऐसा विषय है जिस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता, लेकिन हाल ही में एसआरएल डायग्नॉस्टिक्स द्वारा किए गए इन-हाउस सर्वेक्षण के आधार पर जारी एक रिपोर्ट के अनुसार पाया गया है कि एनिमिया न केवल वयस्कों में बल्कि बच्चों में भी आमतौर पर पाया जाता है।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि उम्र के साथ एनिमिया की संभावना बढ़ती है। सर्वेक्षण के परिणाम जनवरी 2016 से मार्च 2019 के बीच देश भर की एसआरएल लैबोरेटरीज में हीमोग्लोबिन जांचों की रिपोर्ट्स पर आधारित है।

एसआरएल की रिपोर्ट के अनुसार 80 साल से अधिक उम्र के 91 फीसदी लोग, 61 से 85 साल से 81 फीसदी लोग, 46 से 60 साल से 69 फीसदी लोग, 31 से 45 साल के 59 फीसदी लोग, 16 से 30 साल के 57 फीसदी लोग तथा 0-15 साल के 53 फीसदी बच्चे और किशोर एनिमिया से ग्रस्त हैं। 45 साल से अधिक उम्र के मरीजों में एनिमिया के सबसे गंभीर मामले पाए गए हैं।

एसआरएल डायग्नॉस्टिक्स के आर एंड डी एंड मॉलीक्युलर पैथोलोजी के अडवाइजर एवं मेंटर डॉ बी.आर. दास ने कहा, "शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन की कम मात्रा होने पर शरीर के ओर्गेन सिस्टम को स्थायी नुकसान पहुंचता है। लाल रक्त कोशिकाओं की कमी से शरीर में खून के जरिए ऑक्सीजन का प्रवाह कम मात्रा में हो पाता है जिससे मरीज में कई लक्षण नजर आते हैं जैसे थकान, त्वचा का पीला पड़ना, सिर में दर्द, दिल की धड़कनों का अनियमित होना और सांस फूलना। अन्य लक्षणों में शामिल हैं मूड में बदलाव और चिड़चिड़ापन, कमजोरी। एनिमिया का सबसे आम कारण है आयरन की कमी, जिसका इलाज करना आसान है। ज्यादातर बीमारियों के मामले में जागरूकता बहुत महत्वपूर्ण होती है।"

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया भर में दो अरब लोग एनिमिया से ग्रस्त हैं और इनमें से आधे मामलों का कारण आयरन की कमी ही होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एनिमिया को तीन स्तरों में श्रेणीबद्ध किया है: माइल्ड (हल्का), मॉडरेट (मध्यम) और सीवियर (गंभीर)। अध्ययन में लिए सैम्पल्स के अनुसार भारत के अन्य जोनों (64 फीसदी) की तुलना में उत्तरी जोन में एनिमिया के सबसे ज्यादा (69 फीसदी) मरीज पाए गए हैं। गंभीर एनीमिया के मामले उत्तरी जोन (6 फीसदी) में महिलाओं (2 फीसदी) की तुलना में पुरुषों (9 फीसदी) में अधिक पाए गए। शेष क्षेत्रों में से 34 फीसदी लोगों में मध्यम एनिमिया पाया गया, जिसमें पुरुषों में 35 फीसदी और महिलाओं में 26 फीसदी मामले पाए गए। पूर्वी जोन में माइल्ड एनिमिया के अधिक मामले पाए गए जबकि पुरुषों और महिलाओं में परिणामों में कुछ खास अंतर नहीं पाया गया।

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