World Stroke Day 2018: वायु प्रदूषण सिर्फ हार्ट पर ही नहीं ब्रेन पर भी डालता है असर, पड़ सकता है स्ट्रोक
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय पर उपचार हो जाए तो स्ट्रोक से उबरा जा सकता है और उसके बाद जीवन में बदलाव लाया जा सकता है।
नई दिल्ली: विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय पर उपचार हो जाए तो स्ट्रोक से उबरा जा सकता है और उसके बाद जीवन में बदलाव लाया जा सकता है। स्ट्रोक से उबर चुके ऐसे ही लोगों के लिए रविवार को यहां मैक्स अस्पताल की तरफ से 'जुम्बा' आयोजित किया गया, जिसमें 350 लोगों ने भाग लिया। अस्पताल की तरफ से जारी एक बयान में न्यूरोलॉजी विभाग के वरिष्ठ निदेशक डॉ. संजय सक्सेना ने कहा, "इस साल के विश्व स्ट्रोक दिवस का विषय है 'स्ट्रोक के बाद फिर से उठें'। समय पर निदान और उपचार स्ट्रोक से बचने की कुंजी है। 'मैनेजमेंट ऑफ एडल्ट स्ट्रोक रिहैबिलिटेशन केयर' में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार वर्तमान में केवल 10-15 प्रतिशत स्ट्रोक पीड़ित ही पूरी तरह से ठीक हो पाते हैं, 25-30 प्रतिशत में हल्की विकलांगता रह जाती है, 40-50 प्रतिशत को गंभीर नुकसान का सामना करना पड़ता है और शेष 10-15 प्रतिशत लोगों की स्ट्रोक के तुरंत बाद मौत हो जाती है।"
उन्होंने कहा, "स्ट्रोक के बाद समय पर इलाज और पुनर्वास से काफी फायदा होता है। इसका लक्ष्य स्ट्रोक के दौरान प्रभावित हुए मस्तिष्क के हिस्से के खो चुके कौशल को फिर से सीखना, स्वतंत्र होकर रहना और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है। पुनर्वास जितना जल्दी शुरू होता है, रोगी की खो चुकी क्षमताओं को वापस पाने की संभावना उतनी ही अधिक होती है।"
इस मौके पर स्ट्रोक से उबर चुके कई लोगों ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने लक्षणों की जल्द पहचान करने और सही समय पर न्यूरोसर्जन से परामर्श करने पर जोर दिया।
अस्पताल के न्यूरोलॉजी निदेशक डॉ. विवेक कुमार ने कहा, "लोगों में स्ट्रोक के लक्षणों और समय पर इलाज के महत्व के बारे में जागरूकता को अधिक प्रमुखता दी जानी चाहिए। स्ट्रोक के प्रथम 24 घंटों के भीतर समय पर इलाज से नुकसान को दूर करने का 70 प्रतिशत मौका मिलता है।"
बयान के अनुसार, यह कार्यक्रम विश्व स्ट्रोक दिवस (29 अक्टूबर) के अवसर पर स्ट्रोक के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए आयोजित किया गया। लोगों ने करीब एक घंटे तक मसाला भांगड़ा और बॉलीवुड नृत्य के रूप में जुम्बा सत्र में भाग लिया।
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