नई दिल्ली: जब भी हम कोई दवा खरीदने जाते हैं तो हम अक्सर लिक्विड दवाओं को प्लास्टिक की बोतलों में ही पाते है। प्लास्टिक की बोतलों में यह दवाएं सेफ हैं या नहीं इस बात पर अभी भी प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है। इसी मामले को लेकर केंद्र सरकार ने इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च से इसकी डिटेल स्टडी की मांग की है।
इस स्टडी के दौरान यह पता लगाने की कोशिश की जाएगी कि आखिर लिक्विड मेडिसन को प्लास्टिक की बोतलों में रखने से उनमें कोई बदलाव आता है या नहीं। अगर ऐसा है तो क्या उसमें किसी प्रकार की लीचिंग होती है? दरअसल लीचिंग वह प्रक्रिया होती है जिसमें बोतल में रखे जल के घुलनशील तत्व बाहर आ जाते हैं और उसमें रखी दवा के अन्य तत्वों से मिल जाते हैं।
इसी संदर्भ में करीब दो साल पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कुछ निर्देश दिए गए थे, जिसमें दवाओं को प्लास्टिक की बोतलों की बजाय कांच की बोतलों में रखने के लिए कहा गया था। कुछ एक्सपर्ट का कहना है कि प्लास्टिक की बोतलों में दवाओं को लीचिंग का खतरा रहता है। जिसमें बोतल के घुलनशील तत्व दवा की सामग्री से मिल जाते हैं और इसे खराब कर देते हैं। आईसीएमआर (ICMR) ने हैदराबाद के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन से इसकी स्टडी और उसी की प्लानिंग करने को भी कहा है।
पिछले वर्ष की गई स्टडी में यह पाया गया था कि प्लास्टिक की बोतलों में रखी खांसी व अन्य लिक्विड दवाओं में विषाक्त सामग्री जैसे लैड मौजूद हैं। जिसमें यह भी बताया गया था कि इन बोतलों से दवाओं में खतरनाक सामग्री का विस्तार होता है, जिस पर तुरंत रोक लगनी चाहिए।
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