भाद्रपद माह की अष्टमी के कृष्ण पक्ष में ही क्यों मनाई जाती है श्री कृष्ण जन्माष्टमी
नई दिल्ली: पूरी दुनिया में श्री कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारी तेजी से है रही है। इस बार जन्माष्टमी 5 सितम्बर को मनाया जा रहा है। जन्माष्टमी इस बार बहुत ही शुभ योग में पड़ रही
कैसा रुप धारण किया था जन्म के समय श्री कृष्ण ने
इस बारें में अच्छी तरह वर्णन श्री भगवतपुराण के एक स्कंध में किया गया है जो इस प्रकार है।
तमद्भुंत बालकमभ्बुनेक्षणं चतुर्भुज शंखगदार्युदायुधम्।
श्री वत्सस्एमं गलशोभि कौस्तुभं प्रीताम्बरं सान्द्रपयोछ् सौभ्रगम्।।
महादेवैदूर्य किरीट कुण्डल-त्विषा परिण्वक सहस कुन्तलम्
उदाय काञ्च्यंग दंक कणो दिवि- विरोच मानं वसुदेव ऐक्षत।।
माना जाता है कि जब कृष्ण भगवान का जन्म हुआ था उस समय कंस की कारगार जहां पर देवकी नें कृष्ण भगवान को जन्म दिया था। वह जगह पूर्ण रुप से प्रकाशमय हो गई थी। जब कृष्ण का अवतार हुआ उस समय देवी-देवता स्वर्ग से फूलों की वर्षा और धीमी बारिश हो रही थी। कृष्ण भगवान का अवतार सौलह कलाओं से परिपूर्ण चंद्रमा के समान लग रहा था जैसे कि धरती में पूर्णिमा का चांद उतर आया हो। देवकी ने देखा कि अनके सामनें एक अद्भुत बालक है जिसकी आंखे कमल की तरह कोमल और जिसकी चार-चार भुजाए. शंख, गदा और कमल का फूल लिए हुए है। साथ ही जिसकी छाती में श्री वत्स का निशान भी है। जिनके केश सुंदर घुघरालें मानो जैसे कि सूर्य की किरणें चमक रही हो। शरीर की हर भुजा में पहनें हुए आभूषण उन्हें शोभामान कर रहे थे। यह धचना देवकी के लिए अनोखी थी।
देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने की क्या वजह थी
हमारें दिमाग में यह भी बात आती है कि आखिर भगवान नें देवकी के गर्भ से ही क्यो जन्म लिया तो इस बारें में जब देवकी ने पूछा तो भगवान ने उन्हे पिछले जन्म की कहानी बताई जो पिछले तीन जन्मों की थी। भगवान ने देवकी और वासुदेव को बताया कि आप लोगों ने पिछलों जन्म में मेरी अभीष्ठ रुप की आराधना कि तब मैनें खुश होकर आप लोगों से वर मागनें के बोला था जब आपने मेरी जैसे पुत्र की प्राप्ति हो जो देनकी की कोख से पैदा हो। इस वरदान को पूरा करनें के लिए ही मैनें आपके गर्भ से जन्म लिया। इसीलिए उस समय मैने तुम लोगों को अपने पूरे रुप में दर्शन दिए थे कि आप लोगों के मेरे बारें में ज्ञान हो जब मै देवकी की कोख से जन्म लूं। इतना कह कर भगवान चुप हो गए और फिर बाल रुप में परिवर्तित हो गए। इसके बाद कृष्ण के कहने में ही वासुदेव अपने मित्र नन्द के धर छोडने गए क्योकि उस समय नन्द की पत्नी यशोदा से गर्भ से योगमाया का जनम् हुआ था। अगर कृष्ण को कंस के राज से नही ले जाया जाता तो कंस उनकी की भी हत्या कर देता अन्य पुत्रें की तरह। इशी योगमाया नें अपनी शक्ति से कंस का द्वरपाल को चेतना अवस्था में कर दिया था जिसके बाद वासुदेव श्रा कृष्ण को सूप में रख कर यमुना नही को पार कर नंदगांव गए थे और नंद ने श्री कृष्ण को योगमाया से बदल कर वासुदेव को दिया था। इसके बाद कारगार में आते ही द्वारपाल जग गए ऐर वासुदेव की फिर से बेडियां लग गई। इसके बाद कंस को बेटी के पैदा होने की खबर दी गई जिसे कंस के द्वारा मारनें के वक्त आकाश में चली गई थी और कंस के वध की बात कही थी कि तुम्हारा वध करनें काला इस दुनिया में आ गया है।