नई दिल्ली: हिंदू धर्म के देवी- देवताओं में मानें जानें वाले चंद्रमा के बारें में आपनें कभी यह सुना है कि चंद्रमा को भी देखनें से कोई दोष लगता है। चंद्रमा जिसें देख कर लोग खूबसूरती की तारीफ करते है । जिसकी तुलना सुंदर लोगों से की जाती है, लेकिन भाद्र पद में शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चंद्रमा नही देखना चाहिए। इस बारें में विस्तार से रामचरित मानस में बताया गया कि इस दिन चांद देखनें से क्या होता है। इस दिन चंद्रमा देखना आपके लिए कितना हानिकारक हो सकता है इसके पीछें कई पौराणिक कथाएं भी है जो हिंदू धर्म के ग्रंथों में दी गई है। अपनी खबर में बताएगं कि क्यों इस दिन चांद नही देखना चाहिए इसके पीछें की पौराणिक कथाएं और इसके दोषों के बारें में। रामचरित मानस के सुंदरकाण्ड का दोहा न. 37 और चौपाई 3 में बताया गया है मंदोदरी नें रावण को समझातें हुए इस बात का वर्णन किया रहें है। जब रावण सीता मां का हरण कर लंका ले गया था।
जौ आपन चाहै कल्याना।
सुजसु सुयति सुभ गति सुजनाना।।
सो परनारि लिलार गोसाई।
तजउ तौथ के चंद की नाई।।
इसका मतलब है कि हे रावण यदि आप अपनी कल्याण चाहते है तो , सुभ गति और कई तरह के सुख चाहते है तो सीता जी का मस्तक इस तरह त्याग दो जिस तरह लो चौथ का चांद नही देखते है। जिस तरह उसे लोग दूषित मानते है उसी तरह पराई स्त्री का चेहरा देखना है ।
चांद के चौथ को हरवंश पुराण में दूसरी तरह बताया गया है जो इस तरह है। इस दिन चादं देखने से इंसान क्या भगवान भी इस दोष से बच नही पाए। श्री कृष्ण ने इस दिन चांद देखा था जिसके कारण उनके ऊपर स्मंतर मणि की चोरी का इल्जाम औऱ भाई बलराम सें विद्रोह का कारण बना। भगवतपुराण के दशम स्कंध के 56,57 अध्ययाय में मणि की चोरी, सत्राजित की हत्या, प्रसेन की हत्या का विस्तार में दिया गया है।
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