आज है पुत्रदा एकादशी, संतान के लिए है खास
नई दिल्ली: सावन माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी पर महिलाएं विशेष तौर पर संतान के लिए वृत रखती हैं। इस बार यह तिथि 26 अगस्त को
पुत्रदा एकादशी मनानें के पीछें की पौराणिक कथा
इस पौराणिक कथा के बारें में महाराज युधिष्ठर के पूचनें में कृष्ण भगवान नें बताया कि इस व्रत की शुरुआत महीजित नामक राजा से हुई जो पुत्र न होने की जगह से परेशान था। महीजित एक प्रतापी राजा था। वह अपनी प्रजा को पुत्र के समान मानता था। राजा सभी अपराधियों को दंड देने में पीछें नही हटता था जिसके कारण उससे प्रजा बहुत ही खुश थी। लेकिन एक बजह के कारण महाराज हमेशा दुखी रहते थें। उनका दुक के कारण था उनके बाद उनके राज्य का कोई उत्तराधिकारी न होना। इसी कारण एक दिन राजा नें प्रजा से कहा कि मैने आज तक कोई बूरा काम नही किया न ही गलत तरीकें से कभी धन कमाया फिर भी पमें एक पुत्र की प्राप्ति नही हुई। ऐसा क्यों है। इस बात में प्रजा बोली कि इस जन्म में तो आपनें अच्छें कर्म किया शायद अगलें जन्म में आपनें गलत काम किया जिसकी वजह सें आपको इस जन्म में पुत्र की प्राप्ति नही हुई। इस बारें में जाननें के लिए हमें वन में चल कर महर्षि लोमश से बात करनी चाहिए।
जब सभी वन पहुंच कर इस बारें में महर्षि से पुछा तो थोडी देर बाद वह बोले कि राजन पिछलें जन्म में आप बहुत निर्धन व्यक्ति थें आपना गुजारा करनें के लिए आफ गलत काम करतें थे। एक दिन आप दो दिन से भूखें आप एक सरोवर के किनारें पहुंचें तो वहां पर एक प्यासी गाय पानी पी रही थी लोकिन आप नें उसे हटा कर खुद ही पानी पीनें लगे। जिसके कारण आप को पाप लगा । अस दिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी थी। इशी कारण आपको पुत्र का वियोग सहना पड़े।
यह सब बाते सुन कर सभी श्रृषियों नें कहा कि अब इस पाप से छुटकारा पानें के लिए कोई उपाय बताइए। तब श्रृषि नें कहा कि सावन के महीनें की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत आप सभी रखें और यह संकल्प लें कि इसका फल महाराज को दे दें और रात में जागरण करों। इसके बाद इसका पारण दूसरें दिन करें। ऐसा करनें से आपके पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति मिल जाएगी और आप सभी को अपना उत्तराधिकारी मिल सकता है। ऐसा करनें से महाराज को पुत्र की प्राप्ति हुई।