जानिए, राधाष्टमी क्या है और इसका महत्व, पूजन विधि
नई दिल्ली: हिंदू धर्म में भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है। इस बार 21 सितम्बर को मनाया जाएगा। राधाष्टमी के दिन श्रद्धालु बरसाना की ऊँची पहाडी़
नई दिल्ली: हिंदू धर्म में भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है। इस बार 21 सितम्बर को मनाया जाएगा। राधाष्टमी के दिन श्रद्धालु बरसाना की ऊँची पहाडी़ पर पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं। इस दिन रात-दिन बरसाना में बहुत रौनक रहती है। ये तो सभी जानते है कि राधा कृष्ण की प्रिया थी। राधा के बिना कृष्ण अधूरें है। कृष्ण की शक्ति राधा है। राधा वृजभान की पुत्री ही नही शक्ति का अवतार थी। वेदों में इसका वर्णन है कि शक्ति के तीन अवतार माने गए है यानि की पार्वती, सीता और राधा।
राधाष्टमी कथा
राधाष्टमी कथा, राधा जी के जन्म से संबंधित है। राधा जी का जन्म वरदान के रूप में बृषभान के घर हुआ था। इनका जन्म रावलग्राम में हुआ था जो गोकुल के पास है, लेकिन कुछ दिन बाद राधा के पिता ने वृंदावन में व्रषभानु पुरा गांव बसाया जो आज बरसाना नाम से जाना जाता है। यही बरसाना राधा जी का ग्रह भूमि है। यह वही जगह है जहां पर राधा जी का अधीश्वरी के रुप में महाभिषेक हुआ था। इभिषेक के समय सभी देवी-देवतावहां उपस्थित था और राधा जी को स्वर्ग सिंगासम में बैठाया गया, लेकिन आसित करते समय सभी के मन में यह प्रश्न आया कि राधा रानी पूरें ब्रह्माण्ड की अधीश्वरी है तो फिर उन्हें सोलह कोस में फैले वृंदावन का आधिपत्य सौपनें की क्या जरुरत है। काफी विचार-विमर्श के साथ यह निर्णय हुआ कि बैकुंठ से ज्य़ादा महत्व मथुरा का है तो इससे ज्यादा महत्व वृंदावन का होगा। महाभिषेक में सभी देवी-देवताओं से रगदान के रुप में कुछ न कुछ दिया। सावित्री नें पद्ममाला, इंद्र पत्नी शची ने सवर्ण सिहांसन, कुबेर की पत्नी मनोरमा ने रत्नालकार, वरुण की पत्नी प्रिया गैरी ने दिव्य छत्र, पवन पत्नी शिवा ने यामर-युगल आदि दिए। साथ ही राधा जी की सेवा में पजारों सखियों में कुछ का स्थान सर्वोपरि है। जिनका नाम श्री ललिता, श्री विशाखा, श्री चिना, श्री रंग देवी, श्री तुंगा विघा आदि थी। इन्ही सखियों में वृंदावन का अष्ट सश्वी मंदिर बना है।
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