नई दिल्ली: सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। ये साल में एक ही बार पड़ती है। इस अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व होता है। अगर सोमवती अमावस्या श्राद्ध पक्ष में आती हो तो यह जीवन के सबसे उत्तम क्षणों में होता है। ज्योतिषाचार्यो के अनुसार 28 सितंबर से श्राद्ध पक्ष शुरू हुए थे जो 12 अक्टूबर तक है। इस श्राद्ध पक्ष में दिवंगत पितरों को खुश रखने के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराने के साथ-साथ दान के महत्व को विशेष माना गया है। इसी साथ श्राद्ध पक्ष में ही सोमवती अमावस्या पड़ रही है जिसमें दान देने का एक अलग ही महत्व है। इस बार सोमवती अमावस्या 12 अक्टूबर को है जो श्राद्ध पक्ष का अंतिम दिन भी है। जो एक विशेष योग है। आमतौर पर अमावस्या तीन साल में एक बार पडती है, लेकिन इस बार की सोमवती अमावस्या का विशेष संयोग है। जानिए इसका विशेष महत्व।
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सोमवती अमवस्या का विशेष महत्व
वैसे तो सोमवती अमावस्या तीन साल में एक बार आती है, लेकिन इस बार सोमवती अमावस्या का विशेष पुण्य का महत्व है। इस अमावस्या में पितरों को विशेष रूप से तृप्त करने और उन्हें प्रसन्न करनें का सर्वश्रेष्ठ शुभ समय माना जाता है। इस दिन आप मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्र गोदान का पुण्य फल प्राप्त होता है। हिन्दु धर्म शास्त्रों में इसे अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत की भी संज्ञा दी गई है। अश्वत्थ यानि पीपल वृक्ष। इस दिन पीपल की सेवा, पूजा, परिक्रमा का अति विशेष महत्व है। श्राद्ध पक्ष में पितरों की पूजा करने के साथ-साथ ब्राह्मणों को पितरों के निमित भोजन करवाया जाता है। जिससे कि हमारें पितर खुश रहते है और हमें आशीर्वाद दे। सोमवती अमावस्या पर पितरों को तृप्त करने का योग दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे तक माना गया है।
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