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फेयरनेस पाने के लिए करते हैं इन प्रोडक्ट्स का यूज, तो हो जाएं सावधान

कई क्रीमों में स्टेरॉयड होते हैं जो लंबे समय तक इस्तेमाल करने से त्वचा को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं।

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नई दिल्ली: भारत में सांवले रंग को सुंदरता से जोड़कर नहीं देखा जाता है। सांवले रंग का मजाक उड़ाया जाता है इसलिए यहां बड़े पैमाने पर गोरेपन वाली क्रीम या उत्पादों की बिक्री होती है। वैवाहिक विज्ञापनों व साइटों पर भी गोरी व सुंदर लड़की की मांग की जाती है।

जो लोग भी गोरा होने व रंग हल्का करने के उपाय की तलाश कर रहे हैं उन्हें विशेषज्ञों द्वारा सावधान किया गया है। इस तरह के उत्पाद आपके लिए जीवनभर की परेशानी खड़ा कर सकते हैं।

अपोलो अस्पताल, नई दिल्ली के वरिष्ठ सलाहकार एवं प्लास्टिक व कॉस्मेटिक सर्जन कुलदीप सिंह ने बताया, "कई क्रीमों में स्टेरॉयड होते हैं जो लंबे समय तक इस्तेमाल करने से त्वचा को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं।"

उन्होंने कहा कि ग्लूटेथियोन को इंटरनेट पर गोरेपन के एंजेट के रूप में प्रचारित किया जाता है, लेकिन सच यह है कि यह हमारे शरीर में एक मजबूत एंटीऑक्सीडेंट है जो उम्र बढ़ने या बीमारी के कारण समाप्त हो जाती है। गोरेपन से इसके संबंध के बारे में वैज्ञानिकों ने पुष्टि नहीं की है।

ओरिफ्लेम इंडिया की सौंदर्य और मेकअप विशेषज्ञ आकृति कोचर ने बताया कि त्वचा का रंग हल्का करने वाली क्रीम केवल एक निश्चित सीमा तक मेलानीन को हल्का कर सकती है। यह त्वचा को बिल्कुल गोरा नहीं कर सकती है।

बाजार शोधकर्ता एसी नील्सन के मुताबिक, भारत में गोरेपन की क्रीम का बाजार 2010 में 2,600 करोड़ रुपये था। 2012 में 233 टन गोरेपन की उत्पादों का प्रयोग भारतीय उपभोक्ताओं द्वारा किया गया।

दो साल बाद गोरेपन का जुनून नए स्तर पर पहुंचा जब एक ब्रांड ने योनी गोरी करने वाले उत्पाद को पेश किया।

ब्लॉसम कोचर समूह की अध्यक्ष ब्लॉसम का कहना है कि 21 वीं सदी में भी गोरेपन के प्रति लोगों की दीवानगी में कमी नहीं आई है। उन्होंने कहा कि गोरेपन के बजाय सुंदर त्वचा की प्रशंसा करनी चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गोरेपन की क्रीम त्वचा को गोरा नहीं करती है।

उन्होंने कहा, "हमें सुंदर त्वचा की प्रशंसा करनी चाहिए और उसे रंग के ऊपर निर्भर नहीं होना चाहिए। कोई भी उचित सफाई, टोनिंग, तेल लगाने, मॉश्चरॉइजिंग त्वचा में नमी बनाए रख कर साफ-सुथरी चमकदार त्वचा के जरिए सुंदर दिख सकता है।"

कुलदीप सिंह ने कहा कि बचपन से ही सबको त्वचा की रंग, जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, लिंग या पेशे के आधार पर भेदभाव नहीं करने की शिक्षा देनी चाहिए और इसकी शुरुआत अभिभावकों से होनी चाहिए।

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