Valentine Day 2018: 7 अगस्त 2013 को मैं खजुराहो रेलवे स्टेशन पर अपने घर छतरपुर जाने के लिए उतरी थी।खजुराहो से छतरपुर जाने के लिए एक टैक्सी में बैठी थी। ईयरफोन लगाकर गाने सुन रही थी।तभी अचानक आवाज़ आई, दूसरी टैक्सी का ड्राइवर एक लड़के को अपनी तरफ़ खींच रहा था।टैक्सी वाला उस लड़के को अपनी गाड़ी में चलने के लिए बोल रहा था और लड़का मेरी वाली टैक्सी में आने की ज़िद पर अड़ा था।
आखिरकार वो लड़का मेरी ही टैक्सी में आकर बैठ गया। मुझे चेहरा कुछ जाना पहचाना सा लगा लेकिन मैं इग्नोर मारने में बहुत माहिर हूं तो ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।मेरे बाजू में कोई और बंदा बैठा था उसके बाद वही लड़का बैठा था।
छतरपुर आने ही वाला था कि आवाज़ आई कि पहचाना मुझे, मैंने देखा वही लड़का मुझसे कह रहा है।मैने जवाब दिया हां देखे हुए लग रहे हो। वो टैक्सी वाला लड़का इरफ़ान था। जो मेरे घर के पीछे रहता था। हमारी थोड़ी रवायती बातचीत हुई। टैक्सी से उतरते वक्त हमने मोबाइल नंबर एक्चेंज किए। अब्बा मुझे लेने आ गए थे तो मैं बाय करके चली गई।
इरफान और मैं दोनों ही ईद मनाने के लिए घर आए हुए थे। 7 अगस्त के बाद हमारी कोई बात नहीं हुई। लेकिन अचानक व्हाट्सअप पर नंबर देखते हुए मुझे इरफान की डीपी अच्छी लगी तो नाइस डीपी लिखकर भेज दिया। वहां से थैंक्यू का रिप्लाई आया। हमारे बीच फिर बातचीत बंद हो गई। फिर शायद 10 तारीख को ईद थी मैं इरफान के घर भी गई क्योंकि उनसे हमारे पारिवारिक रिश्ते थे। भाई भाभी मिले।
ईद की सिंवई खाई और अम्मा के साथ घर लौट आई। मुझे नहीं पता कि खुदा ने क्या तय कर रखा था लेकिन एक साथ बहुत सारे इत्तेफ़ाक़ हो रहे थे। इरफ़ान से पहले कभी बात नहीं की हालांकि हम बचपन से एक दूसरे को देखते आ रहे थे। फिर मैं पढ़ने भोपाल चली गई और नौकरी दिल्ली में लगी।
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