मंत्रालय द्वारा ऑनलाइन कक्षा का समय तय करने संबंधी दिशा निर्देशों से स्कूलों को हो रही परेशानी
मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा ऑनलाइन संचालित की जा रही कक्षाओं की समयसीमा निर्धारित करने से निजी स्कूलों की परेशानी बढ़ गई है क्योंकि उन्हें “स्क्रीन के सामने अच्छे समय” और “स्क्रीन के सामने बुरे समय” के बीच संतुलन बनाने की समस्या से जूझना पड़ रहा है।
नई दिल्ली। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा ऑनलाइन संचालित की जा रही कक्षाओं की समयसीमा निर्धारित करने से निजी स्कूलों की परेशानी बढ़ गई है क्योंकि उन्हें “स्क्रीन के सामने अच्छे समय” और “स्क्रीन के सामने बुरे समय” के बीच संतुलन बनाने की समस्या से जूझना पड़ रहा है। इसके साथ ही स्कूल उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं के पाठ्यक्रम की चिंताओं को भी दूर करने में जुटे हैं। मंत्रालय द्वारा ये दिशानिर्देश अभिभावकों द्वारा चिंता जताये जाने के बाद तय किए हैं। दरअसल कोविड-19 के कारण चार महीने से अधिक समय से स्कूल बंद हैं और कुछ स्कूल नियमित कक्षाओं की भांति ऑनलाइन कक्षाएं संचालित कर रहे हैं। इसके चलते स्क्रीन के सामने बच्चे अधिक समय व्यतीत कर रहे थे।
इसी को लेकर अभिभावकों ने अपनी चिंता जाहिर की थी। शालीमार बाग स्थित मॉडर्न पब्लिक स्कूल की प्रधानाध्यापिका अलका कपूर ने कहा, “ऑनलाइन कक्षाओं के दौरान स्क्रीन के सामने छात्रों के बैठने के समय में कटौती प्राथमिक कक्षाओं के लिए ठीक है, लेकिन उच्च कक्षाओं के मामले में यह समस्या खड़ी कर सकता है। निचली कक्षाओं में प्रोजेक्ट और अन्य गतिविधियों द्वारा पाठ्यक्रम पूरा किया जा सकता है। निचली और मध्य कक्षाओं में रिकॉर्ड की गई फ्लिप कक्षाओं भी पाठ्यक्रम पूरा करने का जरिया बन सकती है।”
उन्होंने कहा, “इसके अलावा छोटी कक्षाओं में माता पिता बच्चों को घर पर अभ्यास करा कर पाठ्यक्रम पूरा करने में मदद कर सकते हैं। लेकिन उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में ज्यादातर विषय विस्तृत होते हैं और उन्हें गहराई से समझने के लिए व्याख्या करनी पड़ती है। इसलिए मंत्रालय द्वारा जो स्क्रीन का समय दिया गया है वह पर्याप्त नहीं है। ऐसी परिस्थिति में उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में कड़ाई से अभ्यास करना अध्यापक और छात्र दोनों के लिए समस्या बन जाएगा।” हेरिटेज स्कूल के सह संस्थापक मानित जैन के अनुसार “ स्क्रीन के सामने अच्छे समय” और “स्क्रीन के सामने बुरे समय” के बीच अंतर होना चाहिए।
उन्होंने कहा, “ज्यादातर दिशा निर्देश महत्वपूर्ण हैं लेकिन स्क्रीन के सामने अच्छे समय और बुरे समय में अंतर स्पष्ट होना चाहिए। पढ़ाई की निरंतरता पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण किए बिना समय पर पाबंदी लगाना छात्र के विकास पर विपरीत असर डालेगा। ऑनलाइन शिक्षा के प्रति कई अफवाहें हैं जिनको दूर करना जरूरी है और नीति निर्माताओं को यह समझना होगा कि आज के समय में स्क्रीन के सामने समय देना न केवल वांछित है बल्कि आवश्यक भी है।” मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से जारी “प्रज्ञता” नामक दिशा निर्देश में सुझाव दिया गया है कि पूर्व प्राथमिक छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं की अवधि तीस मिनट से अधिक नहीं होनी चाहिए।
कक्षा एक से आठ तक के लिए मंत्रालय ने 45-45 मिनट के दो सत्र का सुझाव दिया है और कक्षा 9 से 12 के लिए 30-45 मिनट के चार सत्र का सुझाव दिया गया है। सेठ आनंदराम जयपुरिया शिक्षण संस्थान समूह के निदेशक हरीश संदूजा ने कहा, “मंत्रालय ने माता पिता की शिकायत के आधार पर सुझाव दिए हैं जिनमें कहा गया था कि कोविड-19 महामारी के चलते ऑनलाइन कक्षाओं से छात्रों को अधिक समय तक स्क्रीन के सामने रहना पड़ता है।
यह निर्णय किसी वैज्ञानिक अनुंसधान के आधार पर नहीं लिया गया है क्योंकि ऑनलाइन शिक्षा के नए अनुसंधान के अनुसार ऑनलाइन कक्षा के दौरान लंबे समय तक स्क्रीन पर देखना नहीं पड़ता और यह छात्रों के लिए बिलकुल भी हानिकारक नहीं है।” उन्होंने कहा, “इसलिए मेरा यह पूरी तरह से मानना है कि छात्रों के लिए स्क्रीन का समय कम करना ठीक नहीं है। इससे छात्र ढंग से सीख नहीं सकेगा।” हालांकि कुछ स्कूलों ने कहा है कि स्क्रीन के समय को लेकर उन्हें भी चिंता है और इसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने कक्षाओं की योजना बनाई है।