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Hindi News झारखण्ड सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के मंत्री को फटकारा, "आप हर चीज़ के लिए प्रचार चाहते हैं?"

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के मंत्री को फटकारा, "आप हर चीज़ के लिए प्रचार चाहते हैं?"

झारखंड में मंत्री पद संभाल रहे इरफान अंसारी को सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा है, आप हर बात के लिए प्रचार चाहते हैं। जानिए कोर्ट ने और क्या क्या कहा?

इरफान अंसारी को सुप्रीम कोर्ट से फटकार- India TV Hindi Image Source : FILE PHOTO इरफान अंसारी को सुप्रीम कोर्ट से फटकार

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज झारखंड के हेमंत कैबिनेट के  एक मंत्री इरफान अंसारी को जमकर फटकार लगाई, जिन्होंने कथित तौर पर एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर की थी। शीर्ष अदालत ने इरफान अंसारी की याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए उसे फटकार लगाई, जिसमें कथित तौर पर एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करने के लिए उसके खिलाफ आपराधिक मुकदमा खारिज करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने अंसारी को फटकार लगाते हुए कहा कि,  "आप हर चीज़ के लिए प्रचार चाहते हैं?" 

जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा, "यह केवल प्रचार के लिए था। कानून के तहत अनिवार्य आवश्यकताओं का पालन नहीं किया गया।" न्यायमूर्ति नागरत्ना ने सवाल किया कि मंत्री अकेले पीड़िता से मिलने या एक या दो लोगों को अपने साथ क्यों नहीं ले जा सकते। न्यायमूर्ति ने राजनेता से पूछा, आप समर्थकों के एक समूह के साथ उनसे मिलने क्यों गए।

इरफान अंसारी के वकील ने दी दलील

बता दें कि 28 अक्टूबर, 2018 को, जामताड़ा विधायक और उनके समर्थकों ने दुष्कर्म की पीड़िता और उसके परिवार के साथ एकजुटता दिखाने के लिए एक अस्पताल का दौरा किया और कथित तौर पर उसका नाम, पता और तस्वीरें मीडिया के साथ साझा कीं। इरफान अंसारी के वकील ने अदालत को बताया कि जीवित बचे व्यक्ति की पहचान उजागर करने का कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है, जिससे वह अपने समर्थकों के साथ अस्पताल गए थे। बाद में वकील ने अदालत से याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी और उन्हें अनुमति दे दी गई।

हाई कोर्ट ने कही थी ये बात

सितंबर 2024 में, झारखंड उच्च न्यायालय ने कहा था कि इरफान अंसारी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 228ए (कुछ अपराधों के पीड़ित की पहचान का खुलासा) के तहत प्रथम दृष्टया मामला बनता है। इसके बाद विधायक ने झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी, जिसमें आईपीसी और POCSO अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप तय करने के दुमका अदालत के 21 नवंबर, 2022 के आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।