Jammu Kashmir Assembly Elections: बदली-बदली नजर आ रही है पुलवामा की तस्वीर, 35 साल बाद चुनावों में बिखरा नया रंग
जम्मू एवं कश्मीर के पुलवामा में कुछ साल पहले तक जहां पत्थरबाजी और हिंसा आम थी वहीं अब विधानसभा चुनावों के पास आते ही यह पूरा इलाका चुनावी रैलियों से गुलजार नजर आ रहा है।
श्रीनगर: कुछ साल पहले तक आतंकवाद, हिंसा और पत्थरबाजी के लिए कुख्यात पुलवामा में बदलते कश्मीर की एक ऐसी तस्वीर नजर आ रही है जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल था। कुछ साल पहले तक जहां यहां के युवा के हाथों में पत्थर होते थे अब राजनीतिक दलों के झंडे लहराते नजर आते हैं। दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा में पिछले 35 सालों से चुनावों के बहिष्कार का ऐसा असर रहा है कि लोग इलेक्शन का नाम सुनते ही डर जाते थे, लेकिन आज यह जिला राजनीतिक रैलियों और चुनावी प्रचार से गुलजार नजर आ रहा है। आज यहां के युवा बदलाव की बात कर रहे हैं और अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए अपने वोट का इस्तेमाल करना जरूरी समझते हैं।
जहां बंदूकें गरजती थीं, वहां रैलियां हो रहीं
कश्मीर के युवा हिंसा के दौर को भुलाने लगे हैं और अब लोकतंत्र को सबसे बड़ी ताकत और हथियार मानते हैं। वे यह समझते हुए नजर आ रहे हैं कि चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लेने से न सिर्फ इस जिले पर लगा आतंकवाद का दाग मिटेगा बल्कि तमाम समस्याओं का समाधान भी निकलेगा। पहले इस इलाके में जहां अलगाववाद और आतंकवाद के समर्थन में जनसभाएं होती थीं वहीं अब रंगारंग चुनावी रैलियां हो रही हैं। पूरे इलाके का माहौल बदल चुका है और यह बदलाव अलगाववादी विचारधारा को नकारने और लोकतंत्र के नजरिए का प्रतीक है। कट्टरपंथियों का गढ़ रहा पुलवामा अब लोकतंत्र के नजरिए को अपना चुका है।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद घाटी में आई शांति
पुलवामा के साथ-साथ पूरा कश्मीर अब लोकतंत्र के जश्न में शामिल हो रहा है। लोगों की इस बदलती सोच ने अब उन्हें भी चुनावी राजनीति को स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया है जो बहिष्कार की सियासत करके आजादी का सपना देख रहे थे। यही वजह है कि जो जमात-ए-इस्लामी पिछले 35 सालों से चुनावों का बहिष्कार कर रही ती, वह आज भारतीय लोकतंत्र की विचारधारा का हिस्सा बनकर चुनाव लड़ रही है। कश्मीर में दिख रहे इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह अनुच्छेद 370 हटने के बाद घाटी में आई शांति और अमन-चैन को माना जा रहा है। लोग जमीनी सत्ता में बड़ा बदलाव महसूस कर रहे हैं।
चुनाव प्रचार में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे युवा
कश्मीर के लोग इस तथ्य को स्वीकार कर रहे हैं कि पिछले 35 वर्षों में आतंकवाद और हिंसा से कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। अब वे लोकतंत्र में विश्वास व्यक्त करते हुए उम्मीद कर रहे हैं कि जिस नेता को वे चुनेंगे वह न केवल युवाओं के भविष्य के लिए बल्कि कश्मीर के विकास के लिए भी काम करेगा। लोकतंत्र की यह तस्वीर न सिर्फ पुलवामा में पीडीपी की शक्ति प्रदर्शन रैली में देखने को मिली है बल्कि कश्मीर के हर जिले में हो रहे चुनाव प्रचार में युवा बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।