इस साल यूपी में सीएम योगी ने तोड़ा 37 साल पुराना मिथक, जानें किसकी छीन ली सल्तनत?
इस चुनाव में मुख्यमंत्री योगी ने न केवल स्वयं को ब्रांड के तौर स्थापित किया, बल्कि विपक्ष के जातीय गणित को अपने लाभार्थियों की केमेस्ट्री से फेल कर दिया।
उत्तर प्रदेश में 2022 का साल सियासी दलों के लिए कई ऐतिहासिक उलटफेर वाला साल रहा। प्रदेश में 37 साल बाद जहां भाजपा ने लगातार दूसरी बार सरकार बनाने का रिकॉर्ड कायम किया, वहीं सपा वापसी करते हुए 47 सीटों से 111 सीटों तक पहुंचने में सफल हो गई। बसपा अपना वोट बैंक खोते हुए महज एक सीट पर सिमट गई, जबकि कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे ज्यादा निराशाजनक रहा। राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद प्रदेश विधायिका में न्यूनतम सीटों पर आ गई।
जातीय गणित को फेल कर दिया
इस साल हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने सहयोगियों के साथ 273 सीटों पर जीत दर्ज कर पूर्ण बहुमत हासिल किया। मुख्यमंत्री योगी ने दोबारा सत्ता में वापसी कर 37 साल पुराने उस मिथक को भी तोड़ दिया कि पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाला कोई सीएम लगातार दोबारा सत्ता में वापस नहीं होता। इस चुनाव में मुख्यमंत्री योगी ने न केवल स्वयं को ब्रांड के तौर स्थापित किया, बल्कि विपक्ष के जातीय गणित को अपने लाभार्थियों की केमेस्ट्री से फेल कर दिया।
आजम खान की सल्तनत छीन ली
भाजपा ने विधानसभा के तुरंत बाद हुए आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा में न सिर्फ सपा की परंपरागत सीटों पर जीत हासिल की, बल्कि जनता के बीच अपनी मजबूती का संदेश दिया। इसके बाद गोला विधानसभा में भी भाजपा का विजय रथ नहीं रुका। हालांकि, साल के अंत में हुए मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन वह रामपुर से आजम खान की सल्तनत को छीनने में जरूर कामयाब रही।
2022 भाजपा के लिए सफलता भरा रहा
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हरिश्चंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि 2022 भाजपा के लिए सफलता भरा रहा। भाजपा ने दोबारा सरकार बनाकर एक इतिहास रचा। उपचुनाव में रामपुर और आजमगढ़ में सफलता मिली। रामपुर विधानसभा में भाजपा को भारी सफलता मिली। भाजपा आने वाले साल में अपने अनुशासित कार्यकतार्ओं के दम पर नए कीर्तिमान गढ़ेगी।
सपा को इस साल फायदा हुआ
राज्य की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी ने 111 सीटों पर जीत दर्ज की है। अखिलेश यादव इस बार अपने कोर वोटरों को जोड़े रखने के लिए खुद चुनाव मैदान में उतरे। उसका फायदा इटावा, फिरोजाबाद से लेकर आजमगढ़ तक बढ़ी सीटों के तौर पर मिला। लेकिन, कन्नौज में भाजपा क्लीन स्वीप कर गई। भाजपा को रोकने के लिए विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा बने अखिलेश यादव ने क्षेत्रवार जातीय गणित तो ठीक सजाई, फिर भी सत्ता के काफी दूर रहे।
सपाइयों के हौसले बढ़े
राजनीतिक पंडितों की मानें तो 2022 में अखिलेश के उतार चढ़ाव का दौर रहा है। विधानसभा के तुरंत बाद हुए रामपुर और आजमगढ़ की लोकसभा सीट अखिलेश के हाथों से निकल गई। इसके बाद गोला विधानसभा सीट भी सपा जीत नहीं सकी। लेकिन सपा संस्थापक मुलायम सिंह के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी लोकसभा, खतौली और रामपुर विधानसभा के चुनाव हुए। जिसमें मैनपुरी सीट पर अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव बड़े वोटों से जीत कर सपा को ऑक्सीजन प्रदान की। वहीं खतौली सीट पर गठबंधन के साथी रालोद ने अपनी मजबूत जीत दर्ज कराई। इस उपचुनाव में अखिलेश के चाचा शिवपाल का भरपूर साथ मिला। लेकिन रामपुर से करीब दस बार विधायक रहे आजम खान की सीट पर भाजपा ने कब्जा जमा लिया। यह सपा के लिए बड़ा झटका जरूर है। मैनपुरी, जहां सपाइयों के हौसले बढ़े हैं वहीं खतौली ने गठबंधन की गांठ को और मजबूत किया है।
इस साल हमने बहुत कुछ सीखा: सपा
सपा के प्रवक्ता डाक्टर आशुतोष वर्मा कहते हैं कि यह साल हमने बहुत कुछ सीखा। संगठन की जरूरत कैसे होती है? कैसै 47 सीटों से 125 पर पहुंचते हैं। इसके साथ यह भी सिखाया कि आप अगर जनता के जुड़े मुद्दे उठाएंगे तो चुनाव में सफलता जरूर मिलेगी। मैनपुरी और खतौली सीटों पर गठबंधन और विकास ने जीत दिलाकर हमारे हौसले को बढ़ाया है। इसके अलावा नेता जी और अहमद हसन के नहीं रहने का गम जिंदगी भर रहेगा। लेकिन इन दोनों का आशीर्वाद पार्टी को आगे बढ़ाने के सदैव प्रेरित करता रहेगा।
बसपा को हुआ बड़ा नुकसान
यूपी में चार बार सत्ता में रही बसपा को इस साल काफी नुकसान उठाना पड़ा। उन्हें महज एक सीट से ही संतोष करना पड़ा है। न 'दलित-ब्राह्मण' सोशल इंजीनियरिंग का पुराना फामूर्ला चला और न ही 'दलित-मुस्लिम' गठजोड़ के दावे हकीकत में तब्दील हुए। बसपा की न केवल सीटें और घट गईं बल्कि जनाधार भी तेजी से खिसक गया है। गरीबों की कल्याणकारी योजनाओं के जरिए भाजपा अबकी बसपा के दलित वोट बैंक में भी गहरी सेंध लगाने में कामयाब रही है। बसपा को जबरदस्त नुकसान के पीछे एक दशक से सत्ता से बाहर रहने और पहले की तरह मायावती के फील्ड में सक्रिय न दिखाई देने का भी असर है।
कांग्रेस के लिए बेहद खराब रहा साल
2022 विधानसभा सबसे खराब कांग्रेस के लिए रहा। इस चुनाव में कांग्रेस जहां अब प्रदेश में दो विधायकों के आलावा सारे योद्धा मैदान पर धराशाही हो गए। यूपी विधानसभा चुनावों के इतिहास में कांग्रेस का यह सबसे खराब प्रदर्शन है। इस चुनाव के लिए प्रदेश में खुद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा मैदान में उतरीं, लेकिन उन्हें जैसे प्रदर्शन की उम्मीद थी, वैसा नहीं हो सका। बीते दिन सामने चुनावी नतीजों में कांग्रेस की ओर से सिर्फ अराधना मिश्रा 'मोना' रामपुर खास से और महराजगंज के फरेंदा से वीरेंद्र चौधरी को ही जीत मिल सकी। कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन करने वालों में राष्ट्रीय लोक दल, निषाद पार्टी आदि शामिल रहे। पश्चिमी यूपी में चुनाव लड़ने वाले आरएलडी ने आठ तो निषाद पार्टी ने छह सीटें जीतीं।
भारत जोड़ो यात्रा
कांग्रेस प्रवक्ता अंशू अवस्थी कहते हैं कि विधानसभा में मन मुताबिक सफलता भले न मिली हो, लेकिन अब कांग्रेस नए तेवर और कलेवर के साथ आगे बढ़ रही है। भारत जोड़ो यात्रा ने कार्यकतार्ओं को बूस्टअप किया है। आने वाला समय कांग्रेस के लिए बहुत अच्छा होगा।
कुछ दल अपनी जमीन भी नहीं बचा पाए
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी कहते हैं कि वर्ष 2022 यूपी में राजनीतिक दलों के काफी महत्वपूर्ण रहा। कुछ दल बढ़त हासिल की। सत्तारूढ़ दल ने इतिहास बनाया तो वहीं कुछ दल ऐसे भी रहे जो अपनी जमीन भी नहीं बचा पाए।