Jamiat Ulema-e-Hind: जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने सरकार को दी चेतावनी, समान नागरिक संहिता और बनारस-मथुरा को लेकर कही ये बात
Jamiat Ulema-e-Hind: जमीयत उलेमा-ए-हिंद की बैठक में कहा गया कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद का ये सम्मेलन स्पष्ट कर देना चाहता है कि कोई मुसलमान इस्लामी क़ायदे क़ानून में किसी भी दख़ल अन्दाज़ी को स्वीकार नहीं करता। इसीलिए जब भारत का संविधान बना तो उसमें मौलिक अधिकारों के तहत यह बुनियादी हक़ दिया गया है कि देश के हर नागरिक को धर्म के मामले में पूरी आज़ादी होगी।
Highlights
- देवबंद में जमीअत उलेमा-ए-हिंद की बड़ी बैठक
- बैठक में 5000 मौलाना और मुस्लिम बुद्धिजीवी शामिल
- मीटिंग में समान नागरिक संहिता, बनारस, मथुरा को लेकर सरकार को चेतावनी
Jamiat Ulema-e-Hind: देश में मुस्लिम समुदाय के सामने राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक चुनौतियों को देखते हुए 'देवबंद में जमीअत उलेमा-ए-हिंद' बड़ा सम्मेलन कर रही है। इस बैठक में 5000 मौलाना और मुस्लिम बुद्धिजीवी शामिल हो रहे हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता जाने-माने इस्लामी विद्वान मोलाना महमूद मदनी कर रहे हैं।
इस्लामी क़ायदे क़ानून में दख़ल अन्दाज़ी स्वीकार नहींजमीयत उलेमा-ए-हिंद की बैठक में कहा गया कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद का ये सम्मेलन स्पष्ट कर देना चाहता है कि कोई मुसलमान इस्लामी क़ायदे क़ानून में किसी भी दख़ल अन्दाज़ी को स्वीकार नहीं करता। इसीलिए जब भारत का संविधान बना तो उसमें मौलिक अधिकारों के तहत यह बुनियादी हक़ दिया गया है कि देश के हर नागरिक को धर्म के मामले में पूरी आज़ादी होगी। उसे अपनी पसंद का धर्म अपनाने, उसका पालन व प्रचार करने की आज़ादी का बुनियादी हक़ होगा। इसलिए हम सरकार से मांग करते हैं कि भारत के संविधान की इस मूल विशेषता और इस गारंटी को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा के संबंध में एक स्पष्ट निर्देश जारी किया जाए। यदि कोई सरकार समान नागरिक संहिता को लागू करने की ग़लती करती है, तो इस घोर अन्याय हरगिज़ स्वीकार नहीं किया जाएगा।
कोई कानून शरीअत पर अमल करने से नहीं रोक पायेगा
इस मौके पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद सभी मुसलमानों को ये स्पष्ट करना जरूरी समझती है कि शरीअत में दखलंदाजी उसी वक्त होती है जब मुसलमान स्वयं शरीअत पर अमल नहीं करते। अगर मुसलमान शरीअत के प्रावधानों को अपनी ज़िंदगी में लाने की कोशिश करेंगे, इस पर अमल करेंगे तो कोई कानून उन्हें शरीअत पर अमल करने से नहीं रोक पायेगा। इसलिए तमाम मुसलमान इस्लामी शरीअत पर जमे रहें, और किसी भी तरह से मायूस या हतोत्साहित न हों।
भारत के संविधान की धारा 25 में दी गई गारंटी के खिलाफ़ है
मुस्लिम पर्सनल लॉ में शामिल मामले जैसे कि शादी, तलाक़, ख़ुला (बीवी की मांग पर तलाक़), विरासत आदि के नियम क़ानून किसी समाज, समूह या व्यक्ति के बनाए हुए नहीं हैं। न ही ये रीति-रिवाजों या संस्कृति के मामले हैं, बल्कि नमाज़, रोज़ा, हज आदि की तरह ये हमारे मज़हबी आदेशों का हिस्सा हैं, जो पवित्र कुरआन और हदीसों से लिए गए हैं। इसलिए उनमें किसी तरह का कोई बदलाव या किसीको उनका पालन करने से रोकना इस्लाम में स्पष्ट हस्तक्षेप और भारत के संविधान की धारा 25 में दी गई गारंटी के खिलाफ़ है। इसके बावजूद अनेक राज्यों में सत्तारूढ़ लोग पर्सनल लॉ को ख़त्म करने की मंशा से ‘समान नागरिक संहिता क़ानून’ लागू करने की बात कर रहे हैं और संविधान व पिछली सरकारों के आश्वासनों और वादों को दरकिनार कर के देश के संविधान की सच्ची भावना की अनदेखी करना चाहते हैं।
देश में अमन, शांति, गरिमा और अखंडता को नुकसान पहुंचा है
जमीअत उलेमा-ए-हिंद की यह बैठक प्राचीन इबादतगाहों पर बार-बार विवाद खड़ा करके देश में अमन व शांति को ख़राब करने वाली शक्तियों और उनको समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों के रवैये से अपनी गहरी नाराज़गी व नापसंदीदगी ज़ाहिर करती है। बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की एतिहासिक ईदगाह और दीगरमस्जिदों के खिलाफ़ इस समय ऐसे अभियान जारी हैं, जिससे देश में अमन शांति और उसकी गरिमा और अखंडता को नुकसान पहुंचा है।
बनारस और मथुरा की निचली अदालतों के आदेशों से विभाजनकारी राजनीति को मदद मिली है
हालांकि यह स्पष्ट है कि पुराने विवादों को जीवित रखने और इतिहास की कथित ज़्यादतियों और गलतियों को सुधारने के नाम पर चलाए जाने वाले आन्दोलनों से देश का कोई फ़ायदा नहीं होगा। खेद है कि इस संबंध में बनारस और मथुरा की निचली अदालतों के आदेशों से विभाजनकारी राजनीति को मदद मिली है और ‘पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) एक्ट 1991’ की स्पष्ट अवहेलना हुई है जिसके तहत संसद से यह तय हो चुका है कि 15 अगस्त 1947 को जिस इबादतगाह की जो हैसियत थी वह उसी तरह बरक़रार रहेगी। निचली अदालतों ने बाबरी मस्जिद के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की भी अनदेखी की है जिसमें अन्य इबादतगाहों की स्थिति की सुरक्षा के लिए इस अधिनियम का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है।
अतीत के गड़े मुर्दों को उखाड़ने से बचना चाहिए
जमीअत उलेमा-ए-हिंद सत्ता में बैठे लोगों को बता देना चाहती है कि इतिहास के मतभेदों को बार-बार जीवित करना देश में शांति और सद्भाव के लिए हरगिज़ उचित नहीं है। खुद सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद फैसले में ’पूजा स्थल क़ानून 1991 एक्ट 42’ को संविधान के मूल ढ़ांचे की असली आत्मा बताया है। इसमें यह संदेश मौजूद है कि सरकार, राजनीतिक दल और किसी धार्मिक वर्ग को इस तरह के मामलों में अतीत के गड़े मुर्दों को उखाड़ने से बचना चाहिए, तभी संविधान का अनुपालन करने की शपथों और वचनों का पालन होगा, नहीं तो यह संविधान के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात होगा।
पैगंबर मुहम्मद के नाम पर घृणित नारों की श्रृंखला फैलाई जा रही है
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की यह बैठक बड़ी चिंता के साथ व्यक्त करती है कि धर्म के महापुरुषों , विशेष रूप से पवित्र पैगंबर मुहम्मद (PBUH) के नाम पर घृणित और निन्दात्मक बयानों, लेखों और नारों की एक श्रृंखला फैलाई जा रही है। जो देश के जागरूक व्यक्तियों और समूहों के लिए एक बहुत दुःख की बात है। मुसलमान जो सभी धर्म के महापुरुषों के सम्मान को ईमान का हिस्सा मानते हैं, जब वे सम्मान और मानवता के शिक्षक मुहम्मद रसूलुल्लाह के बारे में ईशनिंदा बातें सुनते हैं, तो स्वाभाविक रूप से बहुत दुःख महसूस करते हैं और उन्हें एक चिंता होती है और वे बेचैन हो जाते हैं लेकिन यह कितना दुखद है कि उनकी मानवीय बेचैनी का जवाब शासकों ने बेहद सर्दमोहरी के साथ दिया। बेशक, मुसलमानों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने को राजनीतिक उद्देश्यों या व्यक्तिगत उद्देश्यों के एक उपकरण के रूप में उपयोग करना बहुत ही शर्मनाक और एक लाख नफरत के योग्य है।