इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी के श्रृंगार गौरी मामले में अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद की ओर से दायर रिव्यू पिटीशन पर शुक्रवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। अदालत अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अंजुमन इंतेजामिया ने वाराणसी की अदालत के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें पांच हिंदू महिलाओं की ओर से दायर वाद की पोषणीयता को लेकर उसकी आपत्ति खारिज कर दी गई थी। इन पांच हिंदू महिलाओं ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी और अन्य देवी देवताओं की नियमित पूजा की अनुमति मांगी है।
न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील एसएफए नकवी ने आज हिंदू पक्ष की इस दलील को बनावटी दावा करार दिया कि श्रद्धालुओं को 1993 में ज्ञानवापी की बाहरी दीवार पर श्रृंगार गौरी और अन्य देवी देवताओं की पूजा करने से रोक दिया गया था। नकवी के मुताबिक, तत्कालीन राज्य सरकार की ओर से इस संबंध में कोई लिखित आदेश पारित नहीं किया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने क्या दी दलील?
नकवी के मुताबिक, उक्त दावा पूजा स्थल अधिनियम के लागू होने से बचने के लिए किया गया है जो 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी भी धार्मिक स्थल के परिवर्तन के लिए वाद दायर करने से व्यक्ति को रोकता है। 1991 के इस कानून, परिसीमन अधिनियम और वक्फ कानून के तहत यह वाद दायर नहीं किया जा सकता था। उन्होंने कहा, "यदि हिंदू पक्ष के दावे को मान भी लिया जाए, तो उन्होंने 1993 में या इसके बाद वाद दायर क्यों नहीं किया जब उन्हें पूजा करने से रोका गया था। इसलिए परिसीमन अधिनियम के तहत वाराणसी की अदालत में दायर नहीं किया सकता है जो घटना के तीन साल बाद वाद दायर करने पर रोक लगाता है।"
'जिस स्थान पर ज्ञानवापी स्थित है, वह वक्फ संपत्ति'
नकवी ने कहा कि दीन मोहम्मद मामले के तहत जिस स्थान पर ज्ञानवापी स्थित है, वह वक्फ संपत्ति है, इसलिए किसी भी शिकायत को वक्फ अधिकरण के समक्ष रखा जाना चाहिए। इससे पूर्व, हिंदू पक्ष के वकीलों ने दलील दी थी कि पुराने नक्शे में ज्ञानवापी मस्जिद पर हिंदू देवी-देवताओं की मौजूदगी दिखती है और हिंदू भक्त ज्ञानवापी की बाहरी दीवार पर लंबे समय से नियमित रूप से श्रृंगार गौरी और अन्य देवी देवताओं की पूजा कर रहे थे और 1993 में तत्कालीन सरकार ने नियमित पूजा से उन्हें रोक दिया, इसलिए 1991 का कानून उन पर लागू नहीं होता। इसके अलावा, हिंदू पक्ष ने यह भी दावा किया कि विवादित स्थल वक्फ संपत्ति नहीं है।
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