मायावती जो समाजवादी पार्टी का नाम सुनकर भड़क जाती थी वो आज हो गई साइकिल पर सवार
सियासत की दुनिया में पैर जमाए रखने के लिए मायावती ने खून का घूंट पीकर समाजवादी को उप-चुनाव में सपोर्ट देने का फैसला किया। ये वक्त की मार नहीं तो क्या है।
नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का साथ आना कोई ऐतिहासिक घटना नहीं है। पहले भी ये दोनों पार्टियां साथ आईं थी। तब इन्होंने भाजपा की राम लहर को रोका था और अब मोदी लहर पर ब्रेक लगाया है लेकिन तैईस साल पहले इन दोनों दलों में ऐसा कुछ हुआ कि मायावती ने समाजवादी पार्टी से कभी हाथ नहीं मिलने का फैसला किया लेकिन वक्त फिर दोनों को साथ ले आया। एक नज़र दोनों पार्टियों के राजनैतिक रिश्तों पर। बुआ और बबुआ ने सियासी प्रयोग उत्तर प्रदेश के उप-चुनाव में किया लेकिन निगाहें दिल्ली के फाइनल पर थी। नतीजे आए तो बुआ और बबुआ के प्रयोग से आई आंधी में न गोरखपुर में मठ का राज बचा और न फूलपुर में कमल का फूल।
23 साल बाद फिर हुआ गठबंधन
सियासत की बदली-बदली तस्वीर में मोदी लहर पर भारी पड़ा बुआ और बबुआ का गठबंधन। दोनों पार्टियों के लिए सियासी संजीवनी साबित हुआ ये गठबंधन। तभी तो जीत के गदगद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मायावती को धन्यवाद कहने में देरी नहीं की। संदेश साफ था कि राजनीति में अगर स्थाई दोस्ती नहीं तो स्थाई दुश्मन भी नहीं। दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव हो या फिर 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, मोदी की लहर का कहर ऐसा बरपा कि सपा और बसपा का सूपड़ा साफ हो गया।
मायावती ने किया समाजवादी को उप-चुनाव में सपोर्ट देने का फैसला
दोनों ही पार्टिया हाशिए पर चल गई। नतीजा ये हुए कि सियासत की दुनिया में पैर जमाए रखने के लिए मायावती ने खून का घूंट पीकर समाजवादी को उप-चुनाव में सपोर्ट देने का फैसला किया। ये वक्त की मार नहीं तो क्या है जो मायावती कल तक समाजवादी पार्टी का नाम सुनकर भड़क जाती थी वही मायावती आज समाजवादी की साइकिल पर सवार हो गई। 1995 में बीएसपी और समाजवादी पार्टी का जो गठबंधन टूटा तो 23 साल बाद जुड़ा लेकिन बीते दो दशक के दौरान काटों भरे रास्तों से गुजरी हैं मायावती और समाजवादी पार्टी के रिश्तों की गाड़ी।
साल 2014 में जब लालू ने भाजपा के खिलाफ एसपी और बीएसपी के बीच दोस्ती का पुल बनने की कोशिश की तो मायावती ने उन्हें भी नहीं बख्शा था। दोनों पार्टियों की विचारधारा में मतभेद ही नहीं था बल्कि मनभेद भी था और उसके पीछे दीवार बनकर खड़ी थी भारतीय राजनीति की कलंक कथा से जुड़ी वो तारीख। वही तारीख जिसका जिक्र उपचुनाव के प्रचार के दौरान योगी ने एक रैली में किया था।
क्या है गेस्ट हाउस कांड?
देश की राजनीति के दामन पर किसी दाग से कम नहीं है गेस्ट हाउस कांड। वो तारीख थी 2 जून 1995। समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोड़ने का फैसला करने के बाद मायावती स्टेट गेस्ट हाउस के कमरा नंबर 1 में अपने विधायकों के साथ मौजूद थी। गठबंधन तोड़ने से नाराज समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बीएसपी को सबक सिखाने के लिए हमला कर दिया। उस दोपहर मायावती पर जानलेवा हमला हुआ था। किसी तरह मायावती की जान बची थी। किसी ने सपने में नहीं सोचा था कि 1993 में सामप्रादायिक ताकतों के खिलाफ साथ आए एसपी-बीएसपी गठबंधन से बनी सरकार का अंत इतना खौफनाक होगा।
वक्त बदला, हालात बदले, सियासी समीकरण बदले तो मायावती भी बदल गई। एक वक्त वो था जब राम लहर को रोकने के लिए एसपी और बीएसपी का गठबंधन हुआ था अब एक बार फिर टूटा गठबंधन आधिकारिक तौर पर जुड़ सकता है मोदी लहर को रोकने के लिए। गठबंधन का यही फॉर्मूला 2019 में मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन सकता है।