उत्तर प्रदेश के हाथरस मामले में केरल का गिरफ्तार पत्रकार पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) के मुखपत्र का संपादक निकला। शाहीन बाग के पीएफआई के कार्यालय का सचिव भी था। साथ ही उसके एक बैंक एकाउंट से भारी बैंक ट्रांजिक्शन हुआ, बाकी बैंक अकाउंटों की तलाश में पुलिस जुटी हुई है। पुलिस रिमांड पर लेने की तैयारी कर रही है।
भीम आर्मी को भी पीएफआई की तरफ से बड़ी फंडिंग के संकेत मिले हैं। यूपी में उन्माद फैलाने के लिए निकाला था जातीय संघर्ष कराने का फार्मूला, सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता से टली हिंसा की साजिश। एक राजनीतिक दल से जुड़े पश्चिमी यूपी के एक खनन माफिया ने भी की फंडिग, योगी सरकार आने के बाद काफी परेशान है ये खनन माफिया, चीनी मिल घोटाले में भी इस पर आरोप है।
PFI का कब-कब आया नाम?
धर्मांतरण को लेकर कई मामलों में PFI का नाम आता रहा है। दिल्ली में इसी साल फरवरी में हुई हिंसा में इस संगठन की प्रमुख भूमिका होने की बात सामने आई। दिल्ली पुलिस के अनुसार, PFI जैसे संगठनों ने प्रदर्शनकारियों को पैसे मुहैया कराए। प्रवर्तन निदेशालय PMLA के तहत PFI फंडिंग की जांच भी कर रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने तो PFI पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी। इसके बाद, सितंबर महीने में बेंगलुरु में हुई हिंसा में भी PFI के लोगों के शामिल होने की बात सामने आई।
हाथरस केस में पीएफआई का नाम क्यों आया?
हाथरस के चंदपा थाने में जाति आधारित संघर्ष की साजिश, सरकार की छवि बिगाड़ने के प्रयास और माहौल बिगाड़ने के आरोप में अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की है। इस मामले में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है।, जिसमें एक केरल का पत्रकार भी शामिल है। पत्रकार को पीएफआई से जुड़ा बताया जा रहा है। वहीं केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जॉर्नलिस्ट ने सादिक कप्पन नाम के गिरफ्तार पत्रकार को छोड़ने के लिए सीएम योगी को पत्र लिखा है। यूनियन ने कहा कि कप्पन हाथरस में मौजूदा हालात की रिपोर्टिंग के लिए गए थे।
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