यूपी: क्या 2022 के चुनावों से पहले एक बार फिर देखने के मिल सकता है सपा-बसपा गठबंधन?
लोकसभा चुनाव के बाद भले ही बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का गठबंधन टूट गया हो, पर बदले हुए राजनीतिक घटनाक्रम ने बसपा को एक बार फिर सपा को साथ लेकर चलने की संभावानाओं के द्वारा खोल दिए हैं।
लखनऊ: लोकसभा चुनाव के बाद भले ही बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का गठबंधन टूट गया हो, पर बदले हुए राजनीतिक घटनाक्रम ने बसपा को एक बार फिर सपा को साथ लेकर चलने की संभावानाओं के द्वारा खोल दिए हैं। उपचुनाव में बसपा को मिली करारी चोट के बाद शायद मायावती को अहसास हो गया है कि उनका सपा के साथ गठबंधन फायदेमंद हो सकता है। शायद इसीलिए मिशन 2022 को ध्यान में रखते हुए मायावती ने सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के खिलाफ गेस्ट हाउस कांड में दर्ज मुकदमा वापस लेने का शिगूफा छोड़ा है।
हालांकि अभी भी यह साफ नहीं हो सका है कि गेस्टहाउस कांड में सारे दोषियों के मुकदमे वापस होंगे या सिर्फ मुलायम का। बसपा ने सपा से गठबंधन करके 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। स्टेट गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा-बसपा करीब 24 साल बाद एक साथ आए थे, लेकिन चुनाव में बेहतर परिणाम न आने के बाद मायावती ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर 4 जून 2019 को सपा से गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया। इसके ठीक 6 महीने बाद अचानक बसपा सुप्रीमो द्वारा सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के खिलाफ स्टेट गेस्ट हाउस कांड में मुकदमा वापस लेने के लिए शपथपत्र देने के अब राजनीतिक मायने तलाशे जा रहे हैं।
अभी हाल में हुए उपचुनाव में बसपा शून्य पर रही है। इसने अपनी परंपरागत सीट जलालपुर भी गवां दी। लेकिन इन परिणामों में एक खास चीज जो देखने को मिली है गंगोह, मानिकपुर और घोसी ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां सपा-बसपा के कुल वोट भाजपा से कहीं अधिक हैं। इन तीनों सीट पर अगर सपा-बसपा मिलकर लड़ते तो चुनाव जीत सकते थे। यह तीन सीटें तो भाजपा के हाथ से फिसल ही सकती थीं। विधानसभा की जिन 11 सीटों के उपचुनाव हुए हैं, उनमें से सपा व बसपा की एक-एक सीट ही थी, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद गठबंधन बरकरार रखकर दोनों ही पार्टियां भाजपा से कम से कम तीन और सीटों को झटकने में कामयाब हो सकती थीं।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव ने कहा, ‘जब मायावती ने गठबंधन तोड़ा था, तब माया ने कहा था कि सपा-बसपा गठबंधन हुआ, तब से अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल ने मुझे काफी सम्मान दिया। मैंने भी राष्ट्रहित के लिए सारे मतभेद भुलाकर उन्हें सम्मान दिया था। हमारे रिश्ते केवल राजनीतिक नहीं थे। उसी दौरान माया ने संकेत दिया था कि अखिलेश जब अपने कैडर को मजबूत करके परिपक्व हो जाएंगे तो गठबंधन पर विचार किया जा सकता है। उपचुनाव में बसपा को सफलता नहीं मिली। एक बार 2022 से पहले दरवाजे खोले रखना चाहती है। मायावती पहले वाली नहीं है उन्हें लगता है कि सपा के साथ गठबंधन करके फायदा हो सकता है तो वह इसके लिए भी तैयार रह सकती हैं।’
एक अन्य विश्लेषक रतन मणि लाल ने कहा कि मायावती ने जिस प्रकार से सपा से गठबंधन तोड़ा है, इससे उनका कैडर खुश नहीं हैं। उनकी पार्टी के लोगों का कहना है कि पार्टी के लोग चाहते थे कि गठबंधन को अभी और समय देना चाहिए था। मायावती को अपनी पार्टी में आधारभूत परिवर्तन करने पड़ेंगे, नहीं तो आगे चलकर नुकसान उठाना पड़ सकता है। उन्होंने कहा, ‘बसपा के पास अपना कहने वाला कोई खास बेस वोट बचा नहीं है। बसपा अब सपा को कनसेशन देकर सबंध को मजबूत करेंगी। उसकी पहली बानगी मुलायम के खिलाफ गेस्ट हाउस कांड में दर्ज मुकदमा वापस लेने की है। इसके अलावा आगे बात बनती है तो कई चीजें खुलकर सामने आएंगी, क्योंकि राजनीति संभावनाओं का खेल है।’