नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने ताजमहल को संरक्षित तथा सुरक्षित रखने के मामले में दृष्टि पत्र पेश करने में नाकाम रहने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई। अदालत ने सख्त लहजे में कहा कि प्रशासन ताजमहल को ठीक से संरक्षित करे, या फिर उसे ढहा दें, नहीं तो न्यायालय उसे बंद कर देगी।
न्यायालय ने कहा कि ताजमहल की सुरक्षा के लिए संसद की स्थाई समिति की रिपोर्ट के बावजूद सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। इस पर केन्द्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि आईआईटी कानपुर ताजमहल के अंदर तथा आसपास वायु प्रदूषण का आकलन कर रहा है और यह चार महीने में अपनी रिपोर्ट पेश करेगा और उसके इर्दगिर्द प्रदूषण के स्रोत का पता लगाने और उसकी रोकथाम के उपाए सुझाने के लिए एक विशेष समित का गठन किया गया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह ताज के संरक्षण के मुद्दे पर 31 जुलाई से नियमित सुनवाई करेगा।
इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि जो लोग आगरा के निवासी नहीं है, उन्हें शुक्रवार को ताजमहल परिसर के भीतर स्थित मस्जिद में नमाज पढ़ने की इजाजत नहीं होगी। न्यायालय ने आगरा प्रशासन के आदेश के खिलाफ दायर याचिका खारिज करते हुये कहा कि यह स्मारक दुनिया के सात अजूबों में शामिल है और इसे बर्बाद नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति ए के सिकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने ताजमहल प्रबंधन समिति के अध्यक्ष सैयद इब्राहिम हुसैन जैदी की याचिका खारिज करते हुये टिप्पणी की कि आगरा में अनेक मस्जिदें हैं और गैर निवासी उनमें नमाज पढ़ सकते हैं।
याचिकाकर्ता ने आगरा प्रशासन के 24 जनवरी 2018 के आदेश को चुनौती दी थी। प्रशासन ने ताजमहल की सुरक्षा के मद्देनजर इसमें स्थित मस्जिद में बाहरी व्यक्तियों के नमाज पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया है। पीठ ने कहा, ‘‘ताजमहल दुनिया के सात अजूबों में से एक है और हम इसे बर्बाद होने नहीं देना चाहते। हम याचिका खारिज कर रहे हैं।’’ इससे पहले, याचिका पर सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने सवाल किया, ‘‘ऐसे अनुरोध के लिये याचिका क्यों? हम इस पर विचार नहीं कर रहे हैं। यहां अनेक मस्जिदें हैं। वे वहां भी नमाज भी पढ़ सकते हैं।’’
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