उत्तर प्रदेश चुनाव में उतरे छात्र नेताओं में कुछ जीते, कुछ हारे
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनिति वैसे तो पूरे देश में अपना दखल रखती है। यूपी में इस बार करीब दो दर्जन नेता छात्र राजनीति से निकलकर सियासी समर में किस्मत आजमा रहे थे। इनमें से
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनिति वैसे तो पूरे देश में अपना दखल रखती है। यूपी में इस बार करीब दो दर्जन नेता छात्र राजनीति से निकलकर सियासी समर में किस्मत आजमा रहे थे। इनमें से कुछ के हाथ जीत लगी, वहीं कुछ के हाथ हार लगी। ये नेता बनारस हिंदू विश्वविद्यालय हो या इलाहाबाद विश्वविद्यालय हो या लखनऊ विश्वविद्यालय हो छात्रसंघ में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। इनकी दावेदारी पर चाहे भाजपा हो, सपा या कांग्रेस सभी ने युवा छात्र नेताओं पर दांव लगाया था।
प्रधानमंत्री की लोसभा क्षेत्र बनारस की दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र पर अरसे से भाजपा का कब्जा रहा। यहां से श्यामदेव राय चैधरी दादा एमएलए बने इस बार पार्टी ने दादा की जगह नीलकंठ तिवारी को प्रत्याशी बनाया और नीलकंठ ने पार्टी को निराश नहीं किया और विजेता बन गए। नीलकंठ हरिश्चंद्र पीजी कॉलेज छात्रसंघ के महामंत्री रह चुके हैं। वह पेशे से अधिवक्ता हैं।
वहीं बृजेश पाठक 1990 में लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे बाद में बसपा गए 2004 में उन्नाव से लोकसभा सांसद बने 2009 में चुनाव हारने के बाद बसपा ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। इस बार बृजेश पाठक ने भाजपा के टिकट पर लखनऊ मध्य से चुनाव जीत विधानसभा तक का सफर तय किया है।
शैलेश सिंह शैलू ने लखनऊ विश्वविद्यालयमें महामंत्री से लेकर अध्यक्ष तक का चुनाव जीता। शैलू ने पहले बसपा में शामिल फिर भाजपा में चले गए। 2012 में बलरामपुर के गैसड़ी से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। लेकिन इस बार शैलू एक नजदीकी लड़ाई में बसपा के अलाउद्दीन को दो हजार मतों से हराने में सफल रहे।
वहीं मधुबन सीट से भाजपा उम्मीदवार दारा सिंह चैहान ने करीब 30 हजार मतों से जीत दर्ज की दारा आजमगढ़ के डीएवी पीजी कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे। 1996 में वह बसपा से राज्यसभा सदस्य और 2009 में घोसी से लोकसभा सांसद रहे।
बलिया जिले के फेफना विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक उपेंद्र तिवारी ने एक बार फिर इस सीट पर कमल खिलाया है। उपेंद्र छात्र जीवन में इलाहाबाद छात्रसंघ का चुनाव लड़े लेकिन सफलता नहीं मिली। लंबे समय के बाद 2012 विधानसभा चुनाव में जनता ने सर माथे पर बिठाया।
एक बार फिर उपेंद्र तिवारी ने बसपा में शामिल हुए सपा के दिग्गज नेता अम्बिका चैधरी को करारी शिकस्त दी। धीरेंद्र बहादुर सिंह रायबरेली की सरेनी विधानसभा से भाग्य आजमा रहे थे। उन्होंने बसपा के ठाकुर प्रसाद को करीब 13 हजार वोट से हराकर जीत का परचम लहराया। धीरेंद्र लखनऊ विश्वविद्यालय और विद्यांत डिग्री कॉलेज के महामंत्री रहे।
वैसे कुछ ऐसे भी छात्रनेता थे, जिन्होंने 2012 में जीत के साथ सत्ता में अपने रसूख का डंका बजाया लेकिन इस बार के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। एलयू के छात्रसंघ से सर्वाधिक चर्चित चेहरों में से हैं। विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष के बाद गोप ने सपा से राजनीतिक कॅरियर शुरू किया।
विधायक बनने के बाद अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बने गोप को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का करीबी माना जाता है। अखिलेश ने इन्हें बाराबंकी की रामनगर से प्रत्याशी बनाया लेकिन इस बार उन्हें भाजपा के शरद कुमार अवस्थी ने करारी शिकस्त दे दी।
वर्ष 2012 से सपा को अयोध्या जैसी अहम सीट से जीत दिलाने वाले पवन पांडेय को सपा सरकार ने मंत्री पद का उपहार दिया। लेकिन इस बार पवन पांडेय जीत दोहरा नहीं सके। लखनऊ विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष रहे पवन की गिनती अखिलेश के करीबी नेताओं में रही है।