मथुरा: श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मालिकाना हक मामले को लेकर दाखिल याचिका पर अब 30 सितंबर को सुनवाई होगी। सोमवार को इस याचिका पर सुनवाई होनी थी, लेकिन याचिकाकर्ता अदालत नहीं पहुंचे। श्रीकृष्ण विराजमान, स्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि और कई लोगों की ओर से पेश किए दावे में कहा गया है कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ (जो अब श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के नाम से जाना जाता है) और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच जमीन को लेकर समझौता हुआ था। इसमें तय हुआ था कि मस्जिद जितनी जमीन में बनी है, बनी रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरीशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने मथुरा की सीनियर सिविल जज छाया शर्मा की अदालत में याचिका दाखिल की है। भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से दाखिल की गई इस याचिका में न्यायालय से 13.37 एकड़ की जन्मभूमि का मालिकाना हक मांगा गया है। भक्तों ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह प्रबंध समिति के बीच पांच दशक पूर्व हुए समझौते को अवैध बताते हुए उसे निरस्त करने और मस्जिद को हटाकर पूरी जमीन मंदिर ट्रस्ट को सौंपने की मांग की है। लखनऊ की रहने वाली रंजना अग्निहोत्री और अन्य कई लोगों ने मिलकर मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को जमीन देने को गलत बताते हुए सिविल जज सीनियर डिवीजन छाया शर्मा की कोर्ट में दावा पेश किया।
अधिवक्ता द्वारा शुक्रवार को मथुरा की अदालत में दायर की गई याचिका में कहा गया था कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह प्रबंध समिति के बीच हुआ समझौता पूरी तरह से गलत है और भगवान कृष्ण एवं उनके भक्तों की इच्छा के विपरीत है। हालांकि 12 अक्तूबर 1968 को कटरा केशव देव की जमीन का समझौता श्रीकृष्ण जन्मस्थान सोसाइटी द्वारा किया गया। जिसके तहत 20 जुलाई 1973 को यह जमीन डिक्री की गई। याचिका में डिक्री को खारिज करने की मांग की गई है।
कोर्ट को यह तय करना था कि इस याचिका को स्वीकार किया जाए या नहीं, लेकिन सुनवाई को 30 सितंबर तक के लिए टाल दिया गया। ज्ञात हो कि याचिका में श्री कृष्ण जन्मभूमि के 13.37 एकड़ के स्वामित्व और शाही ईदगाह के निर्माण पर सवाल उठाए गए हैं।
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