'जूता मार’ होली के लिए तैयार शाहजहांपुर, मुस्तैदी से जुटा प्रशासन
जिस तरह उत्तर प्रदेश के मथुरा के बरसाना और नंदगांव की 'लट्ठमार होली' (लाठी के साथ होली का जश्न) दुनिया भर में प्रसिद्ध है, उसी तरह शाहजहांपुर जिले में हर वर्ष होली के दिन खेली जाने वाली "जूता मार होली'' की भी एक अलग पहचान है।
शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश): जिस तरह उत्तर प्रदेश के मथुरा के बरसाना और नंदगांव की 'लट्ठमार होली' (लाठी के साथ होली का जश्न) दुनिया भर में प्रसिद्ध है, उसी तरह शाहजहांपुर जिले में हर वर्ष होली के दिन खेली जाने वाली "जूता मार होली'' की भी एक अलग पहचान है। इसकी तैयारी में पुलिस प्रशासन पूरी मुस्तैदी से जुट गया है। आयोजकों के मुताबिक, इस बार 'लाट साहब' दिल्ली से आएंगे जबकि पिछली बार 'लाट साहब' रामपुर से लाए गए थे। होली के दिन भैंसा गाड़ी पर निकलने वाले जुलूस में 'लाट साहब' मुख्य आकर्षण होते हैं।
अपर पुलिस महानिदेशक अविनाश चन्द ने बुधवार रात जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के अलावा बड़ी संख्या में पुलिस बल के साथ 'लाट साहब' के जुलूस के मार्ग पर फ्लैग मार्च किया तथा अधिकारियों को दिशा-निर्देश भी दिए। वहीं, स्वामी शुकदेवानंद कॉलेज के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ विकास खुराना ने बताया कि ''यहां होली वाले दिन 'लाट साहब' का जुलूस निकलता है और उन्हें भैंसा गाड़ी पर तख्त डालकर बिठाया जाता है। लाट साहब का जुलूस बड़े ही गाजे-बाजे के साथ निकलता है और इस दौरान लाट साहब की जय बोलते हुए होरियारे उन्हें जूतों से मारते हैं।''
डॉ खुराना ने बताया, ‘‘शाहजहांपुर शहर की स्थापना करने वाले नवाब बहादुर खान के वंश के आखिरी शासक नवाब अब्दुल्ला खान पारिवारिक लड़ाई के चलते फर्रुखाबाद चले गए और 1729 में 21 वर्ष की आयु में वापस शाहजहांपुर आए। वह हिंदू-मुसलमानों के बड़े प्रिय थे और इसी बीच होली का त्यौहार आ गया और तब दोनों समुदाय के लोग उनसे मिलने के लिए घर के बाहर खड़े हो गए। जब नवाब साहब बाहर आए तो लोगों ने होली खेली। बाद में उन्हें ऊंट पर बैठाकर शहर का एक चक्कर लगाया गया इसके बाद से यह परंपरा बन गई।’’
उन्होंने बताया कि 1857 तक हिंदू और मुस्लिम दोनों मिलकर यहां होली का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाते थे तथा नवाब साहब को हाथी या फिर घोड़े पर बैठा कर शहर में घुमाया जाता था परंतु हिंदू और मुस्लिमों का यह सौहार्द प्यार अंग्रेजों को रास नहीं आया। डॉक्टर खुराना ने बताया, ‘‘इसके बाद 1858 में बरेली के सैन्य शासक खान बहादुर खान के सैन्य कमांडर मरदान अली खान ने एक टुकड़ी के साथ शाहजहांपुर में हिंदुओं पर हमला कर दिया, जिसमें तमाम हिंदू और मुसलमान मारे गए थे। तब शहर में सांप्रदायिक तनाव हो गया क्योंकि विद्रोह के बाद अंग्रेजों की नीति थी, फूट डालो और राज करो।’’
डॉक्टर खुराना के मुताबिक, 1947 के बाद नवाब साहब के जुलूस का नाम बदल कर प्रशासन ने 'लाट साहब' कर दिया और तब से यह लाट साहब के नाम से जाना जाने लगा। इसी दौरान अंग्रेज यहां से चले गए और फिर अंग्रेजों के प्रति लोगों में जो आक्रोश था उससे ही इस नवाब के जुलूस का रूप विकृत हो गया। लाट साहब का यह जुलूस चौक कोतवाली स्थित फूलमती देवी मंदिर से निकलता है और वहां लाट साहब मंदिर में मत्था टेकते हैं तथा पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद कोतवाली में सलामी लेते हुए बाबा विश्वनाथ मंदिर में पहुंचते हैं और पुनः यह जुलूस चौक में ही आकर समाप्त हो जाता है।
इसी तरह छोटे लाट साहब का जुलूस थाना राम चंद्र मिशन के सराय से शुरू होकर छोटे राउंड में घूम कर वहीं समाप्त होता है जबकि एक जुलूस जलाल नगर से शुरू होकर रेलवे स्टेशन पर खत्म होता है। इतिहासकार डॉ खुराना ने यह भी दावा किया कि सिविल सर्विस के प्रशिक्षण के दौरान लाट साहब का यह जुलूस पाठ्यक्रम का हिस्सा है तथा कई बार इस जुलूस के समय प्रशिक्षु आईएएस को मौके पर भेजा गया था।
पुलिस अधीक्षक एस आनंद ने बताया कि होली पर निकलने वाले छोटे तथा बड़े लाट साहब के जुलूस के लिए पुलिस प्रशासन की ओर से पांच पुलिस क्षेत्राधिकारी, 30 थाना प्रभारी और 150 उपनिरीक्षक, 900 सिपाही के अलावा दो कंपनी पीएसी तथा दो कंपनी आरपीएफ तथा दो ड्रोन कैमरों की मांग की गई है, जो संभवत 25 मार्च तक यहां आ जाएंगे।