उपचुनाव में हार के बाद बसपा ने बदला प्रदेश अध्यक्ष, जानिए मिशन 2022 के लिए क्या है मायावती की रणनीति?
उत्तर प्रदेश में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा का सूपड़ा साफ हो गया। 7 सीटों पर हुए चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली।
उत्तर प्रदेश में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा का सूपड़ा साफ हो गया। 7 सीटों पर हुए चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। उप चुनाव में मिली करारी हार को देखते हुए मिशन 2022 के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती नई रणनीति के निर्माण में जुट गई हैं। पार्टी ने कल ही भीम राजभर को यूपी में पार्टी प्रमुख बनाया है। इसके पहले बसपा में पिछड़े वर्ग के रामअचल राजभर और आरएस कुशवाहा प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। राजभर समाज के व्यक्ति को बैठाकर बसपा ने यह साफ संकेत दे दिया है कि वह वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में इसी जातीय समीकरण के आधार पर मैदान में उतरेंगी।
उपचुनाव में बसपा ने मुस्लिमों का साथ हासिल करने के लिए 7 में से 2 प्रत्याशी मुस्लिम समुदाय से उतार थे। इसके जरिए मायावती की कोशिश एनआरसी और अनुच्छेद 370 के मामले में वोट बैंक को आकर्षित करना था। इसके लिए मुस्लिम समाज के तीन नेताओं मुनकाद अली, समशुद्दीन राइन और कुंवर दानिश अली को आगे बढ़ाया गया। मुनकाद अली को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर यह संदेश दिया गया कि बसपा इस समाज की हितैषी है। विधानसभा की सात सीटों पर उप चुनाव में दो सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारा गया। इसके बावजूद मुस्लिम समुदाय बसपा से नहीं जुड़ा।
नया जातीय समीकरण बुन रही हैं मायावती
2007 के यूपी चुनाव में मायावती को मिली सफलता का श्रेय बसपा की उस वक्त की सोशल इंजीनियरिंग को जाता है। दलित, पिछड़े के साथ सवर्णों के सहारे वह सत्ता में आई, लेकिन वर्ष 2012 में इस फॉर्मूले को त्याग दिया। जिसके बाद बसपा तीसरे नंबर की पार्टी बन कर रह गई। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों और 2017 के विधानसभा चुनावों में बसपा का प्रदर्शन काफी खराब रहा। यूपी में सात सीटों पर हुए विधानसभा उप चुनाव के परिणाम से यह भी काफी हद तक साफ हो गया है कि बसपा अल्पसंख्यकों की पहली पसंद नहीं है। इसीलिए मायावती ने पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर अति पिछड़ी जाति के भीम राजभर को बैठकर यह संकेत दिया है कि मिशन 2022 में वह पिछड़ों व सवर्णों को साथ लेकर आगे बढ़ेंगी।