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उत्तर प्रदेश: अब इस तरह से कोविड-19 मरीजों के संपर्क में आए लोगों का लगाया जा रहा है पता

गौतम बुद्ध नगर में कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग के प्रभारी डा. भारत भूषण ने कहा कि पहले तो स्वास्थ्य एवं प्रशासन के अधिकारियों की टीम यह कार्य करती है। उन्होंनें बताया कि कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग के पांच तरीके हैं। मरीजों को फोन कर उनके संपर्कों का पता लगाया जाता है और रैपिड रेस्पांस टीम मौके पर पहुंचकर मरीज से पूरी जानकारी लेती हैं।

Investigation of call data records to locate contacts of Covid-19 patients । उत्तर प्रदेश: अब इस तरह- India TV Hindi Image Source : PTI कोविड-19 मरीजों के संपर्कों का पता लगाने के लिए कॉल डाटा रिकार्ड की छानबीन

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में कोविड-19 के मरीजों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाने के लिए जिलों में कॉल डाटा रिकार्ड (सीडीआर) की छानबीन की जा रही है। सीडीआर का इस्तेमाल पुलिस अपराधों की जांच में करती है। अधिकारियों ने बताया कि कुछ मरीज जानबूझ कर अपनी जानकारी छिपाने का प्रयास कर रहे हैं या फिर उपचार के दौरान स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को गलत एवं अपूर्ण सूचना दे रहे हैं। इससे उनके संपर्कों का पता लगाना मुश्किल हो रहा है।

अधिकारियों ने उदाहरण दिया कि गाजियाबाद में अब तक 6,567 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। अधिकारियों ने बताया कि 637 संपर्कों (लगभग दस फीसदी) का जिला पुलिस ने पता लगाया। इसके लिए अन्य उपायों के साथ साथ सर्विलांस का सहारा लिया गया। अपर पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने बताया कि ‘कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग’ (संपर्कों का पता लगाना) होनी चाहिए लेकिन कैसे हो, यह जिला प्रशासन तय करेगा।

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गौतम बुद्ध नगर में कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग के प्रभारी डा. भारत भूषण ने कहा कि पहले तो स्वास्थ्य एवं प्रशासन के अधिकारियों की टीम यह कार्य करती है। उन्होंनें बताया कि कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग के पांच तरीके हैं। मरीजों को फोन कर उनके संपर्कों का पता लगाया जाता है और रैपिड रेस्पांस टीम मौके पर पहुंचकर मरीज से पूरी जानकारी लेती हैं।

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उन्होंने बताया कि ब्लॉक स्तर पर टीमें एंटीजन आधारित कोविड-19 जांच परिणामों के आधार पर ब्यौरा एकत्र करती हैं। परिणाम तेजी से आते हैं, जिससे संक्रमित व्यक्ति के परिवार वालों और उनके संपर्क में आये लोगों को पृथक करने में आसानी होती है। अधिकारी कोविड-19 की जांच करने वाली सरकारी एवं निजी प्रयोगशालाओं के संपर्क में रहते हैं। इन प्रयोगशालाओं के लिए अनिवार्य है कि वे आईसीएमआर के फार्म को भरवायें, जिसमें जांच कराने वाले व्यक्ति का ब्यौरा हो। इससे बाद में संक्रमितों के संपर्कों को खोजने में मदद मिलती है।

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उन्होंने बताया कि पांचवा तरीका एल-1, एल-2 और एल-3 अस्पतालों से मरीजों का ब्यौरा एकत्र करने का है। भूषण ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि 90 से 95 फीसदी कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग उक्त तरीकों से होती है। जो रह जाते हैं, उनके लिए पुलिस की मदद ली जाती है क्योंकि कभी कभी मरीज के फोन स्विच ऑफ रहते हैं या कोई जवाब नहीं मिलता जिससे कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग में दिक्कत आती है।

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गाजियाबाद के पुलिस अधीक्षक (अपराध) ज्ञानेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि कुछ लोगों ने अपने संपर्को का ब्यौरा छिपाने की कोशिश की या गलत एवं अपूर्ण सूचना दी। हमें जिला इंटीग्रेटेड कंट्रोल रूम (जिला एकीकृत नियंत्रण कक्ष) से ऐसे संक्रमित लोगों के लिए फोन आते हैं, जिनके संपर्कों का पता लगाया जाना है। उन्होंने बताया कि ऐसे में कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग के लिए पुलिस सीडीआर या सर्विलांस का सहारा लेती है। फोन सर्विलांस पर लगाने में निजता का मुद्दा आडे आता है, इस बारे में पूछने पर सिंह ने बताया कि कोविड-19 के बारे में सूचना छिपाना या गलत सूचना देना कानूनी अपराध है।

इनपुट- भाषा

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