20वीं सदी की गलतियों को 21वीं सदी में सुधार रहा है भारत: पीएम मोदी
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज देश के हर उस युवा को जो बड़े सपने देख रहा है, जो बडे़ लक्ष्य पाना चाहता है, उसे राजा महेंद्र प्रताप जी के बारे में अवश्य जानना चाहिए और पढ़ना चाहिए।
पीएम मोदी ने अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के शिलान्यास के मौके पर कहा कि 20वीं सदी की उन गलतियों को आज 21वीं सदी का भारत सुधार रहा है। महाराजा सुहेलदेव जी हों, दीनबंधू चौधरी छोटू राम जी हों या फिर राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी, राष्ट्र निर्माण में इनके योगदान से नई पीढ़ी को परीचित कराने का इमानदार प्रयास आज देश में हो रहा है। आज जब देश अपनी आजादी के 75 वर्ष का पर्व मना रहा है, आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो इन कोशिशों को और गति दी गई है। भारत की आजादी में राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने उनके योगदान को नमन करने का यह प्रयास ऐसा ही एक पावन अवसर है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज देश के हर उस युवा को जो बड़े सपने देख रहा है, जो बडे़ लक्ष्य पाना चाहता है, उसे राजा महेंद्र प्रताप जी के बारे में अवश्य जानना चाहिए और पढ़ना चाहिए। राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी के जीवन से हमें अदम्य इच्छा शक्ति अपने सपनों को पूरा करने के लिए कुछ भी कर गुजरने की जीवड़ता आज भी हमें सीखने को मिलती है। वो भारत की आजादी चाहते थे और अपने जीवन का एक एक पल उन्होंने इसी के लिए समर्पित कर दिया था। उन्होंने सिर्फ भारत में ही रहकर और भारत में ही लोगों को प्रेरित नहीं किया बल्कि वो भारत की आजादी के लिए दुनिया के कोने कोने में गए।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह के जीवन पर प्रकाश डालते हुए पीएम मोदी ने कहा कि अफगानिस्तान हो, पोलैंड हो, जापान हो, दक्षिण अफ्रीका हो, अपने जीवन पर हर खतरा उठाते हुए वो भारत माता को बेड़ियों से आजाद कराने के लिए जुटे रहे। जीवनभर काम करते रहे। मैं आज के युवाओं से कहूंगा कि जब भी उन्हें को लक्ष्य कठिन लगे तो राजा महेंद्र प्रताप सिहं को जरूर याद करना आपका हौंसला बुलंद हो जाएगा।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह जिस तरह एक निष्ठ होकर भारत की आजादी के लिए जुटे रहे वह आज भी हम सबको प्रेरणा देता है। और साथियो आज जब मैं आपसे बात कर रहा हूं तो मुझे देश के एक और महान स्वतंत्रता सैनानी गुजरात के सपूत श्यानवी कृष्णवर्मा जी का भी स्मरण हो रहा है। प्रथम विश्व युद्ध के समय राजा महेंद्र प्रताप विशेष तौर पर कृष्णवर्मा तथा लाला हरदयाल से मिलने के लिए यूरोप गए थे और उसी बैठक में जो दिशा तय हुई उसका परिणाम हमें अफगानिस्तान में भारत की पहली निर्वासित सरकार के तौर पर देखने को मिला।
इस सरकार का नेतृत्व राजा महेंद्र प्रताप ने ही किया था। यह मेरा सौभाग्य था कि जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था तो मुझे श्यामजी कृष्णवर्मा जी की अस्थियों को 73 साल के बाद भारत लाने में सफलता मिली थी। और अगर आपको कभी कच्छ जाने का मौका मिले तो कच्छ के मांडवी में श्यामजी कृष्णवर्मा जी का एक प्रेरक स्मारक है जहां पर उनके अस्थीकलश रखे गए हैं और वे हमें मां भारती के लिए जीने की प्रेरणा देते हैं।