लखनऊ: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सदस्य संजय सिंह की लखनऊ के एमपी-एमएलए अदालत द्वारा गत चार दिसम्बर को जारी समन पर रोक लगाने के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी है। अदालत ने कहा कि एमपी-एमएलए अदालत ने उनके (संजय सिंह) खिलाफ प्रस्तुत आरोपपत्र पर संज्ञान लेने में कोई विधिक त्रुटि नहीं की है। यह आदेश न्यायमूर्ति राकेश श्रीवास्तव की एकल पीठ ने संजय सिंह की ओर से दायर याचिका पर पारित किया।
आदेश 21 जनवरी को पारित किया गया था जो एक फरवरी को अदालत की वेबसाइट पर अपलोड हुआ। सिंह ने एमपी-एमएलए अदालत के गत चार दिसम्बर को पारित आदेश को चुनौती देते हुए कहा था कि उक्त आदेश विधि अनुकूल नहीं है, क्योंकि राज्य सरकार का अभियेाजन स्वीकृति का आदेश विधि सम्मत नहीं है। याचिका का विरोध करते हुए शासकीय अधिवक्ता विमल श्रीवास्तव ने तर्क दिया था कि अभियेाजन स्वीकृति आदेश में केवल सीआरपीसी की धारा-196 की जगह 197 लिख जाने मात्र से पूरी प्रकिया प्रभावहीन नहीं करार दी जा सकती है।
उच्च न्यायालय ने शासकीय अधिवक्ता के तर्क को मंज़ूर करते हुए संजय सिंह की याचिका खारिज कर दी। बता दें कि 12 अगस्त 2020 को सांसद सिंह ने लखनऊ में एक पत्रकार वार्ता में कहा था कि यह सरकार एक जाति विशेष का पक्ष लेती है। उसके बाद उनके खिलाफ हजरतगंज थाने में भारतीय दंड संहिता की सुसंगत धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी।
विवेचना के बाद पुलिस ने सात सितंबर 2020 को सांसद के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया और अभियोजन की स्वीकृति भी प्राप्त कर ली। इसके बाद एमपी-एमएलए अदालत ने चार दिसंबर, 2020 को आरोप पत्र का संज्ञान लेकर सांसद संजय सिंह को समन जारी कर दिया जिसको उन्होंने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
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