Year Ender 2021: गुजरते साल के ये 10 बड़े राजनीतिक घटनाक्रम रहे चर्चाओं में, पढ़ें रिपोर्ट
साल 2021 कई बड़ी राजनीतिक घटनाओं और असाधारण हलचलों का साक्षी रहा है। इस साल में किसानों का आंदोलन और उनकी जीत, दक्षिणी राज्यों में बीजेपी का सफाया और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की ऐतिहासिक जीत जैसे कुछ दिलचस्प राजनीतिक घटनाक्रम हुए।
Highlights
- कई बड़ी राजनीतिक घटनाओं का साक्षी रहा साल 2021
- देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए
- विवादों में घिरे तीन कृषि कानूनों को वापसी हुई
नई दिल्ली: साल 2021 के खत्म होने में चंद दिन ही शेष रह गए हैं। यह साल राजनीतिक लिहाज से बड़े उतार-चढ़ावों वाला रहा। साल 2021 कई बड़ी राजनीतिक घटनाओं और असाधारण हलचलों का भी साक्षी रहा है। इस साल में किसानों का आंदोलन और उनकी जीत, दक्षिणी राज्यों में बीजेपी का सफाया और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की ऐतिहासिक जीत जैसे कुछ दिलचस्प राजनीतिक घटनाक्रम हुए। साल खत्म होने से पहले आइए ऐसे ही 10 बड़ी राजनीतिक घटनाओं पर एक नजर डालते हैं-
1. तीन नए कृषि कानूनों की वापसी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले करीब एक साल से ज्यादा समय से विवादों में घिरे तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की घोषणा की। पीएम मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में की गई अपनी घोषणा के अनुरूप केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर ये प्रस्ताव पारित करा दिया कि सरकार 29 नवंबर से शुरू होने वाले सत्र में ये तीनों कृषि कानून वापस ले लेगी। 19 नवंबर को पीएम मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की और 29 नवंबर को संसद के दोनों सदनों ने कृषि कानून को निरस्त करने वाले कृषि विधि निरसन विधेयक, 2021 को बिना चर्चा के मंजूरी दे दी जिसके बाद एक दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इसको मंजूरी दी। कृषि कानूनों के रद्द होने के साथ ही किसानों का एक साल से ज्यादा समय से चल रहा आंदोलन भी समाप्त हो गया।
2. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला कैबिनेट विस्तार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला कैबिनेट विस्तार साल 2021 में हुआ। विपक्ष को आलोचना का कम से कम मौका मिले इसलिए कैबिनेट में बड़े पैमाने पर फेरबदल की गई इसमें 36 नए चेहरों को शामिल किया गया, जबकि सात मौजूदा राज्यमंत्रियों को प्रमोशन देकर मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। इसके अलावा आठ नए चेहरों को भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया। राष्ट्रपति भवन में हुए शपथ ग्रहण समारोह में 43 नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली। इनमें 15 कैबिनेट और 28 राज्यमंत्री शामिल थे। इस बार चुनावी राज्यों, जातियों, अनुभवों, साथी दलों वगैरह के प्रतिनिधित्व का खासा ख्याल रखने का भी सरकार ने दावा किया था।
नरेंद्र मोदी के काम करने के स्टाइल को समझने वाले कहते हैं, आगले साल महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनाव के पहले कैबिनेट के विस्तार को वो एक 'मैसेजिंग स्टाइल' के तौर पर इस्तेमाल करते हैं।
3. ममता बनर्जी की ऐतिहासिक जीत
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच हुए 2021 पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की और वो राष्ट्रीय राजनीति में एक नया चेहरा बन गईं। तृणमूल कांग्रेस के 200 से ज्यादा सीटें जीतने के साथ ही ममता बनर्जी लगाातर तीसरी बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। उनका खेला होबे का नारा बीजेपी के दो मई ममता दीदी गई, अबकी बार दीदी का सूपड़ा साफ जैसे नारों पर भारी पड़ गया। बीजेपी नेता और गृह मंत्री अमित शाह ने 50 से ज्यादा सभाएं की लेकिन बीजेपी 77 सीटों पर ही सिमट गई।
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव ने देश की राजनीति को एक दिशा दी है। चुनावी सभाओं से प्रतीत हुआ कि चुनाव तृणमूल कांग्रेस बनाम बीजेपी नहीं बल्कि ममता बनाम मोदी रहा। वहीं, पीएम मोदी ने टीएमसी की शानदार जीत के लिए ममता बनर्जी को बधाई दी थी और आश्वासन दिया था कि लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति और कोविड-19 महामारी से जीत में केंद्र की ओर से राज्य सरकार को हरसंभव सहयोग जारी रहेगा।
4. पंजाब कांग्रेस में अमरिंदर-सिद्धू की रार
पंजाब कांग्रेस में फूट पड़ना साल 2021 की राजनीति में सबकी निगाहों में अव्वल था। अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू की जुबानी जंग बढ़कर कांग्रेस पार्टी की टूट तक पहुंच गई। गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी को लेकर शुरू हुई दोनों नेताओं की जुबानी जंग ने पंजाब की राजनीति में भूचाल ला दिया। कांग्रेस हाईकमान की कोशिशों के बावजूद कोई हल नहीं निकल पाया और आखिर में कैप्टन अमरिंद सिंह ने मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस पार्टी दोनों से इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफा देने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के पहले दलित सीएम बने लेकिन उनसे भी सिद्धू की अदावत शुरू हो गई।
प्रदेश के डीजीपी बदलने को लेकर सिद्धू ने इस्तीफा दिया और फिर मनाने पर वापस भी ले लिया। साल 2022 में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने वाला है और माना जा रहा है कि पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और बीजेपी साथ मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं। कैप्टन के पार्टी छोड़ने से कांग्रेस को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
5. कार्यकाल पूरा होने से पहले ही बीजेपी ने चार राज्यों में अपने CM बदले
बीजेपी हाईकमान ने साल 2021 में अपने शासन वाले चार राज्यों में कार्यकाल पूरा होने से पहले ही मुख्यमंत्री बदल दिए। गुजरात, कर्नाटक, उत्तराखंड राज्यों में मुख्यमंत्रियों को हाईकमान ने बदला। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने अचानक इस्तीफा दे दिया जिसके बाद भूपेंद्र भाई पटेल को नया सीएम बनाया गया। रूपाणी से पहले कर्नाटक में जुलाई में बीएस येदियुरप्पा को कुर्सी छोड़नी पड़ी। उनसे पार्टी के कई नेता नाराज चल रहे थे वहां बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया। इससे पहले उत्तराखंड में भी त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के बाद तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन कुछ ही महीने बाद सीएम की कुर्सी तीरथ सिंह रावत से वापस लेकर पुष्कर सिंह धामी को सौंप दी गई। इसके पहले असम में बीजेपी ने नए नेतृत्व में चुनाव लड़कर वहां सीएम बदला था। पांच साल के बाद सर्बानंद सोनेवाल की जगह हिमंत बिस्व सरमा को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया था।
6. ड्रग्स के खिलाफ कार्रवाई पर राजनीति
बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी आत्महत्या के बाद नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ड्रग्स के खिलाफ एक्टिव हो गई थी। एनसीबी के शिकंजे में बॉलीवुड के कई बड़े सितारे आए। ड्रग्स इस्तेमाल करने, उनकी तस्करी, खरीद-बिक्री वगैरह के चक्कर में कई एक्टर फंसते नजर आए। इसकी आंच शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान तक भी पहुंची। ड्रग्स मामले में क्रूज पार्टी के दौरान एनसीबी ने उन्हें गिरफ्तार किया और इसके साथ ही महाराष्ट्र के साथ देश भर में सियासत तेज हो गई।
महाराष्ट्र सरकार में शामिल एनसीपी के प्रवक्ता नवाब मलिक ने एनसीबी की कार्यवाही पर ही सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने एनसीबी के अधिकारी समीर वानखेड़े को बीजेपी का एजेंट बताया। इतना ही नहीं इसके साथ उन्होंने महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस और उनकी पत्नी अमृता फडणवीस को भी निशाने पर लिया। शिवसेना की ओर से संजय राऊत ने केंद्र सरकार को घेरा। इन राजनीतिक लड़ाइयों पर कोर्ट को सुनवाई करनी पड़ी। समीर वानखेड़े से आर्यन खान का केस वापस ले लिया गया और उनकी जांच शुरू हो गई। आर्यन को जमानत मिल गई लेकिन तब भी नवाब मलिक और देवेंद्र फडणवीस के बीच जुबानी जंग जारी रही।
7. छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री
छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री बनने का मामला लगातार सुर्खियों में बना रहा था। कयास लगाए जा रहे थे कि ढाई साल बाद प्रदेश का मुख्यमंत्री बदल जाएगा और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की जगह स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को सीएम बनाया जाएगा लेकिन यह सारा दारोमदार हाईकमान के फैसले पर टिका हुआ था। इस ढाई-ढाई साल के फार्मूले को अमल में लाने के लिए जहां एक ओर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव लंबे समय तक दिल्ली में डटे रहे, वहीं सीएम भूपेश बघेल भी अपनी कुर्सी बचाने रायपुर से दिल्ली और दिल्ली से रायपुर का दौरा करते रहे। सीएम के समर्थन में करीब 50 से 60 विधायकों ने भी दिल्ली में डेरा डाल रखा था उसके बाद हाईकमान पर मुख्यमंत्री बदलने के निर्णय को छोड़ भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव वापस रायपुर लौट गए थे। हालांकि इसके बाद भी आए दिन बघेल और सिंहदेव का दिल्ली दौरा होता रहा और उस दौरान भी यह सुगबुगाहट देखने को मिलती रही कि क्या अब हाईकमान मुख्यमंत्री बदल देगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
8. देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव
राजनीति के लिहाज से देश की सभी पार्टियों के लिए साल 2021 अहम था और साल की शुरुआत में ही असर दिखने लग गया था। पश्चिम बंगाल के अलावा देश में चार अन्य राज्यों में भी विधानसभा चुनाव हुआ था। साल 2021 में पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव के दौरान दल बदल की राजनीति भी चरम पर थी। कोरोना संकट के बीच ही चुनाव प्रचार भी हुआ। बीजेपी को पश्चिम बंगाल में अपनी सरकार बनाने की उम्मीद थी, लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाई और टीएमसी बड़ी जीत के साथ फिर सत्ता में आई। वहीं असम में उसकी सरकार में वापसी हुई। पुडुचेरी में पहली बार बीजेपी सरकार में आई। केरल में वामपंथी सरकार की वापसी हुई और तमिलनाडु में स्टालिन मुख्यमंत्री बने। पश्चिम बंगाल में टीएमसी की जीत के साथ विपक्ष की राजनीति में नए समीकरण पैदा हुए।
9. संसद में गूंजा पेगासस जासूसी कांड, बिना किसी काम के खत्म हो गया मानसून सत्र
पेगासस जासूसी कांड को लेकर केंद्र सरकार को विपक्ष के हमले का सामना करना पड़ा। इस मामले की आंच संसद की कार्यवाही पर भी पड़ी। संसद सत्र के पहले ही दिन फोन हैकिंग के आरोपों पर विपक्ष ने हल्ला बोल दिया। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में फोन हैकिंग की खबरें छपीं और इसकी आंच भारत की सियासत तक पहुंच गई। मीडिया रिपोर्ट में 300 भारतीयों का फोन हैक होने के आरोप लगे। इन आरोपों पर देश के सियासी गलियारों में हड़कंप मच गया। केंद्र सरकार पर विपक्ष ने आरोप लगाया था कि पेगासस स्पाईवेयर के इस्तेमाल से देश के कई बड़े पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के मोबाइल फोन हैक करके उनकी जासूसी की गई है। निजता का हनन बताकर इस मुद्दे को विपक्ष ने इतना खीचा कि संसद का मानसून सत्र एक दिन भी नहीं चल सका। संसद में कार्यवाही शुरू होते ही पेगासस को लेकर विपक्ष हंगामा शुरू कर देता था। पेगासस पर विपक्ष सरकार से जवाब चाहता था वहीं सरकार अपने जवाब में लगातार बता रही थी कि "लॉफ़ुल इंटरसेप्शन" या कानूनी तरीके से फोन या इंटरनेट की निगरानी या टैपिंग की देश में एक स्थापित प्रक्रिया है जो बरसों से चल रही है। इस जवाब से विपक्ष बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हो रहा था और इस वजह से संसद का पूरा मानसून सत्र बिना किसी काम के खत्म हो गया। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन भी किया गया।
10. दक्षिण में बीजेपी का सूपड़ा साफ
चुनावी मोर्चे पर साल 2021 बीजेपी के लिए बुरा साल साबित हुआ। दक्षिणी राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। तमिलनाडु और केरल में प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की तमाम जद्दोजहद के बाद भी पार्टी की हार हुई। तमिनलाडु के चुनाव में बीजेपी चार सीटें जीती और केरल के चुनाव में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। वहीं पुडुचेरी में बीजेपी को 6 सीटों पर जीत मिली। तमिलनाडु में डीएमके 133 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी और एमके स्टालिन राज्य के नए मुख्यमंत्री बने। जबकि केरल में सीपीआई (एम) ने 62 सीटें जीतीं और पिनरई विजयन दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने।