कांग्रेस के G-23 ग्रुप का अजीब दर्द, रहा भी न जाए, सहा भी न जाए!
पांच राज्यों के चुनाव परिणामों में कांग्रेस की हार हुई इसके बाद आनन—फानन में जी-23 ग्रुप के नेताओं ने मीटिंग की और हार पर असंतोष जाहिर किया। पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर सवाल उठाए। जानिए क्या है जी-23 ग्रुप की अहमियत, क्यों कर रहा है गांधी परिवार का विरोध।
Highlights
- पांच राज्यों में कांग्रेस की हार के बाद फिर मुखर हो गया है G-23 ग्रुप
- गांधी परिवार पर पहले भी करते रहे हैं तीखे प्रहार
- कांग्रेस में बगावत का लंबा इतिास, 137 साल पुरानी पार्टी से निकले 70 दल
हाल ही में हुए पांच राज्यों में चुनाव के बाद कांग्रेस की चुनावी हार ने फिर इस पार्टी की मिट्टी पलीद कर दी है। यूपी और पंजाब में कांग्रेस की यह दुर्गति इस पार्टी के वेटरन लीडर्स को फिर रास नहीं आ रही है। कांग्रेस के इन्हीं असंतुष्ट नेताओं को G-23 ग्रुप कहा जाता है। ये वो नेता हैं, जिन्होंने पार्टी का समृद्ध अतीत देखा है और मनमोहन सरकार के 10 साल सत्ता का सुख भी भोगा है। जब भी किसी चुनाव में पार्टी हारती है, तो हार का दर्द इनसे सहा नहीं जाता है, इसलिए रह—रहकर ये अपनी पार्टी की दुर्गति की तोहमत गांधी परिवार पर लगाते हैं। खास बात यह है कि ये नेता सोनिया गांधी के प्रति विश्वास भी जताते हैं। G-23 ग्रुप के इन नेताओं के इस अजीब दर्द पर यह कहा जा सकता है— रहा भी न जाए, सहा भी न जाए!
हालिया चुनावी हार, खासतौर पर पंजाब में जहां उनकी सरकार की सत्ता थी, वहां से भी कांग्रेस हाथ धो बैठी। तब आनन—फानन में जी—23 ग्रुप के नेताओं ने मीटिंग की और हार पर असंतोष जाहिर किया। पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर सवाल उठाए। खासतौर पर कपिल सिब्बल ने तो राहुल गांधी पर सीधा आरोप लगा दिया कि आखिर किस हैसियत से उन्होंने पंजाब के सीएम फेस की घोषणा की थी। जबकि वे पार्टी में किसी पद पर नहीं हैं, सिर्फ वायनाड के सांसद हैं। कांग्रेसी नेता मनीष तिवारी और गुलाम नबी आजाद ने सिब्बल के सुर में सुर मिलाया। फिर गुलाम नबी आजाद के घर भी एक बड़ी मीटिंग रखी गई। जहां कांग्रेस को ताकतवर बनाने पर जोर दिया गया, लेकिन गौर जी—23 के नेताओं के इस बयान पर करना जरूरी है, जिसमें उन्होंने कहा कि वे कांग्रेस से निकाले जाने तक खुद नहीं हटेंगे। वे कांग्रेस में ही बने रहेंगे। यह केवल एक बयान नहीं, बल्कि कांग्रेस के अतीत में होने वाले विभाजनों से एकदम उलट ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें इन नेताओं ने कांग्रेस में बने रहने की बात कही है।
कांग्रेस में बगावत का लंबा इतिहास रहा है। 1885 में स्थापित हुई इस कांग्रेस पार्टी से टूटकर एक—दो बार नहीं, बल्कि 70 दल बन चुके हैं। हलांकि बीते 2 दशक के दौर को देखें तो कई दिग्गज, इस पार्टी से नाखुश होकर या कहें गांधी परिवार की पोलिटिक्स से नाराज होकर अपनी पार्टी बना चुके हैं।
1. इनमें सबसे बड़ा नाम आता है ममता बनर्जी का। जो अरसे तक कांग्रेस में रहीं, लेकिन 1998 में उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का गठन कर लिया। उनकी पार्टी टीएमसी कांग्रेस को टक्कर देने लगी और बाद में बंगाल की राजनीति में कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। आज देश की सबसे वरिष्ठ राजनेत्री ममता अब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए से अलग मोर्चा बनाने की कोशिशों में लगी हुई हैं।
2. वर्ष 1999 में कांग्रेस से निष्कासित होने के बाद शरद पवार और तारिक अनवर के साथ मिलकर पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा ने कांग्रेस से अलग होकर नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। हालांकि बाद में जनवरी 2013 में संगमा ने अपनी पार्टी नेशनल पीपुल्स पार्टी की स्थापना की।
3. कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे नारायण दत्त तिवारी कि बारे में कहा जाता है कि तिवारी ने 1991 में संसदीय चुनाव जीत लिया होता तो राजीव गांधी की हत्या के बाद नरसिम्हा राव की जगह वो भारत के प्रधानमंत्री होते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तब तिवारी ने सीताराम केसरी और नरसिंहाराव की कार्यप्रणाली से खफा हो गए थे और इसके बाद वो कांग्रेस पार्टी से बाकायदा अलग हुए और उन्होंने अलग से अपनी राजनैतिक पार्टी बना ली, जिसका नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (तिवारी) रखा गया। इस मुहिम में उनका साथ देने वालों में अर्जुन सिंह, माखन लाल फोतेदार, नटवर सिंह और रंगराजन कुमारमंगलम जैसे दिग्गज नेता शामिल थे।
जानिए 2 अहम कारण, कांग्रेस से अलग हुए बिना ही क्यों करते हैं विरोध, क्या है जी-23 ग्रुप की मजबूरी
1. जी-23 के नेता चले हुए कारतूस की तरह हैं जिनका कोई जनाधार नहीं है। राजनीतिक पंडित कहते हैं कि ये नेता न तो अपनी पार्टी बना सकते हैं और न ही इनमें आपस में ही एक राय है। केवल सोनिया गांधी का विरोध करने और गांधी परिवार को कांग्रेस से अलग करने के लिए ये एकजुट हुए हैं।
2. इन कांग्रेसी नेताओं ने कभी चुनाव में प्रचार नहीं किया। राजनीतिक मामलों के जानकार हेमंत पाल कहते हैं कि कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा जैसे नेता बैठक को मीडिया में प्रचारित ही क्यों करते हैं। दरअसल, जी-23 ग्रुप के नेता मीडिया के कंधे पर बंदूक रखकर चलाने वाले नेता है। जो मीडिया के माध्यम से गांधी परिवार पर दबाव बनाना चाहते हैं।