पीएम मोदी ने G20 से प्लास्टिक पर कड़े कदम उठाने का आग्रह किया, प्रोजेक्ट टाइगर पर भी बोले
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जी20 पर्यावरण और जलवायु स्थिरता मंत्रिस्तरीय बैठक को संबोधित किया।
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को G20 से प्लास्टिक से पैदा होने वाले प्रदूषण को खत्म करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज पर काम करने का आह्वान किया। चेन्नई में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जी20 पर्यावरण और जलवायु स्थिरता मंत्रिस्तरीय बैठक को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘मैं जी20 से प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए एक प्रभावी अंतरराष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन पर रचनात्मक रूप से काम करने का आह्वान करता हूं।’ उन्होंने समुद्री संसाधनों के जिम्मेदार प्रबंधन पर भी प्रकाश डाला और कहा समुद्री संसाधनों का उचित उपयोग और प्रबंधन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
‘हम प्रोजेक्ट लायन और प्रोजेक्ट डॉल्फिन पर भी काम कर रहे’
पीएम मोदी ने बताया कि स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष पांच देशों में से एक है। पीएम मोदी ने प्रतिनिधियों से कहा, ‘हमने 2070 तक नेट-शून्य प्राप्त करने का लक्ष्य भी निर्धारित किया है। हम अपने गठबंधन के माध्यम से अपने सहयोगियों के साथ सहयोग करना जारी रखते हैं, इसमें अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, CDRI और उद्योग परिवर्तन के लिए नेतृत्व समूह शामिल हैं।’ अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट एलायंस के बारे में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह भारत के प्रोजेक्ट टाइगर से मिली सीख पर आधारित है। उन्होंने कहा, ‘प्रोजेक्ट टाइगर के परिणामस्वरूप, दुनिया के 70% बाघ भारत में पाए जाते हैं। हम प्रोजेक्ट लायन और प्रोजेक्ट डॉल्फिन पर भी काम कर रहे हैं।’
प्लास्टिक से जल व भूमि प्रदूषण भी बड़े पैमाने पर होता है
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर्यावरण के मुद्दे को लेकर हमेशा से गंभीर रहे हैं। हाल ही में रीसाइकिल्ड प्लास्टिक से बना उनका वेस्टकोट काफी चर्चा में आया था। बता दें कि प्लास्टिक हमारे वातावरण को कई तरह से नुकसान पहुंचाता है। वायु प्रदूषण के साथ-साथ प्लास्टिक से जल व भूमि प्रदूषण भी बड़े पैमाने पर होता है। प्लास्टिक कितना खतरनाक साबित हो सकता है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके कारण भूजल रिचार्ज भी नहीं हो पाता। प्लास्टिक कई सालों तक नष्ट नहीं होता है, जिसके कारण सालों तक वातावरण को इसका नुकसान झेलना पड़ता है।