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लोकसभा में फुल फॉर्म में PM मोदी, कांग्रेस पर छोड़े तीर, पंडित नेहरू से लेकर इंदिरा तक पर साधा निशाना

आपातकाल को लेकर कांग्रेस पर जमकर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को लोकसभा में कहा कि विपक्षी दल के माथे से यह कलंक कभी नहीं मिट सकेगा।

लोकसभा में PM मोदी का संबोधन।- India TV Hindi Image Source : SANSAD TV (YT) लोकसभा में PM मोदी का संबोधन।

नई दिल्ली: आपातकाल को लेकर कांग्रेस पर जमकर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को लोकसभा में कहा कि विपक्षी दल के माथे से यह कलंक कभी नहीं मिट सकेगा। इस दौरान लोकसभा में पीएम मोदी ने कहा कि हम सभी देशवासियों के लिए और विश्व के लोकतंत्र प्रेमी नागरिकों के लिए भी ये गौरव का पल है। बड़े गर्व के साथ लोकतंत्र के उत्सव को मनाने का अवसर है। संविधान के 75 वर्ष की यात्रा और विश्व के सबसे विशाल लोकतंत्र की यात्रा के मूल में हमारे संविधान निर्माताओं का योगदान है, जिसे लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं। इसके 75 वर्ष पूर्ण होने पर एक उत्सव मनाने का पल है। ये खुशी की बात है कि संसद भी इस उत्सव में शामिल होकर अपनी भावनाओं को प्रकट कर रहा है।

मदर ऑफ डेमोक्रेसी के रूम में जाना जाता है भारत

संविधान निर्माता इस बात को लेकर बहुत सजग थे, वो ये नहीं मानते थे कि भारत का जन्म 1947 को हुआ, वो नहीं मानते थे कि भारत में लोकतंत्र 1950 से शुरू हुआ। वो हजारों साल की यात्रा के प्रति सजग थे। भारत का लोकतंत्र, भारत का गणतांत्रित अतीत बहुत ही समृद्ध रहा है। तभी भारत आज मदर ऑफ डेमोक्रेसी के रूप में जाना जाता है। हम सिर्फ विशाल लोकतंत्र ही नहीं, हम लोकतंत्र की जननी हैं। संविधान सभा में 15 महिला सदस्य थीं। ये सभी बहनें अलग-अलग क्षेत्र की थीं। संविधान में उन्होंने जो सुझाव दिए, उन सुझावों का संविधान के निर्माण में बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा था। दुनिया के कई देशों को महिलाओं को अधिकार देने में दशकों बीत गए, लेकिन हमारे यहां शुरुआत से ही महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया गया था।

जी20 में हमने विमेन लेड डेवलेपमेंट का विचार रखा

जब जी20 समिट हुई तो विश्व के सामने हमने विमेन लेड डेवलेपमेंट का विचार रखा। हम सभी सांसदों ने मिलकर एक स्वर से नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित करते हमारी महिला शक्ति को भारतीय लोकतंत्र में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए हमने कदम उठाए। आज हर बड़ी योजना के सेंटर में महिलाएं होती हैं। आज जब हम संविधान के 75 साल मना रहे हैं तो ये संयोग है कि भारत के राष्ट्रपति के पद पर एक आदिवासी महिला हैं। इन सदन में भी महिला सांसदों की संख्या बढ़ रही है और उनका योगदान भी बढ़ रहा है। जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं का योगदान सराहनीय रहा है। इसके लिए सबसे बड़ी प्रेरणा हमारा संविधान है।

विविधताओं से भरा है हमारा देश

हमारा देश बहुत तेज गति से विकास कर रहा है। भारत बहुत जल्द विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की दिशा में मजबूत कदम रखा रहा है। ये 140 करोड़ देशवासियों का संकल्प है कि जब हम आजादी का शताब्दी वर्ष मनाएंगे तो हम विकसित भारत में मनाएंगे। इसके लिए सबसे जरूरी है भारत की एकता। बाबा साहेब ने कहा था कि जिस तरह से हमारा देश विविधता से भरा है, उसे कैसे एक साथ लाया जाए। मुझे बड़े दुख के साथ कहना है कि आजादी के बाद एक तरफ संविधान निर्माताओं के दिल-दिमाग में एकता थी, लेकिन आज आजादी के बाद सबसे बड़ा प्रहार देश की एकता के मूल भाव पर प्रहार हुआ। हम विविधता को सेलिब्रेट करते हैं, लेकिन गुलामी की मानसिकता में पले-बढ़े लोगों ने, भारत का भला ना देख पाने वाले लोगों ने, वो विविधता में विरोधाभास ढूंढते रहे। विविधता के इस अमूल्य खजाने को सेलिब्रेट करने के बजाय ऐसे जहरील बीज बोने के प्रयास करते रहे, जिससे देश की एकता को चोट पहुंचती रहे। 

धारा 370 को हमने जमीन गाड़ दिया

अगर हमारी नीतियों को देखेंगे तो पिछले 10 सालों में हमारी निर्णयों की प्रक्रिया को देखेंगे तो भारत की एकता को मजबूती देने का हम निरंतर प्रयास करते रहे हैं। आर्टिकल 370 देश की एकता में दीवार बना हुआ था, इसलिए धारा 370 को हमने जमीन गाड़ दिया, क्योंकि देश की एकता हमारी प्राथमिकता है। इस विशाल देश में अगर आर्थिक रूप से हमे आगे बढ़ना है तो भारत में अनुकूल व्यवस्थाएं चाहिए। उसी में से जीएसटी को लेकर चर्चा चलती रही। इकॉनामी में जीएसटी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। वन नेशन वन टैक्स भी इसे आगे बढ़ा रहा है। गरीब अगर एक राज्य से दूसरे राज्य में जाता था तो गरीब दूसरे राज्य में राशन कार्ड से कुछ नहीं पा पाता था। इसके लिए हमने वन नेशन वन राशन कार्ड लाया। देश के गरीब को अगर मुफ्त में इलाज मिले तो गरीबी से लड़ने की उसकी ताकत बढ़ जाती है, लेकिन अगर वो किसी काम से बाहर गया है, तो ऐसे समय अगर उसे सुविधा नहीं मिली तो ये व्यवस्था किस काम की, इसलिए हमने ये तय किया कि वन नेशन वन हेल्थ कार्ड हो और हमने आयुष्मान कार्ड को जारी किया। 

हमने मातृभाषा के महत्व को स्वीकारा है

देश की एकता को ध्यान में रखते हुए हमने इसे मजबूत किया। दुनिया के अंदर हम गर्व के साथ कहते हैं कि हमने टेक्नोलॉजी को डेमोक्रेटाइज करने का काम किया है। हमने मातृभाषा के महत्व को स्वीकारा है। इसलिए हमने न्यू एजुकेशन पॉलिसी में भी मातृभाषा को बहुत बल दिया है। अब गरीब का बच्चा भी मातृभाषा में डॉक्टर-इंजीनियर बन सकता है। देशभर में एक भारत श्रेष्ठ भारत का अभियान नई पीढ़ी को संस्कारित करने का काम कर रहा है। संविधान के आज 75 वर्ष पूरे हैं, लेकिन हमारे यहां तो 25-50 और 60 साल का भी महत्व होता है। अगर इतिहास में देखें तो इन महत्वों का क्या हुआ था। जब संविधान के 25 साल पूरे हुए तो देश के संविधान को नोच लिया गया। देश को जेलखाना बना दिया गया। नागरिकों के अधिकारों को लूट लिया गया, प्रेस की स्वतंत्रता को ताले लगा दिए गए। कांग्रेस के माथे पर जो ये पाप लगा है, वो कभी धुलने वाला नहीं है। क्योंकि लोकतंत्र का गला घोट दिया गया था। जब 50 साल हुए तब क्या भुला दिया गया था? अटल बिहार वाजपेयी जी की सरकार थी और तब देश भर में 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया गया था। उन्होंने संविधान की भावना को जीने का प्रयास किया था। जब देश संविधान का 50 वर्ष मना रहा था और जब 50 वर्ष की पूर्णाहुति हुई तो मुझे भी मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला। इसी समय संविधान के 60 साल हुए। उस समय हमने तय किया था कि गुजरात में हम संविधान के 60 साल मनाएंगे। आज 75 साल पूरे हुए, हमें अवसर मिला तो हमने 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने की घोषणा की थी। 

कांग्रेस परिवार ने संविधान को चुनौती दी

ये संविधान की देन है कि मेरे जैसे लोग यहां तक पहुंचे हैं। ये संविधान का सामर्थ्य था जो बिना किसी बैकग्राउंड के यहां तक पहुंचे हैं। हमे देश ने तीन बार स्नेह दिया, ये हमारे संविधान के बिना संभव नहीं था। देश की जनता पूरी ताकत के साथ संविधान के साथ खड़ी रही है। कांग्रेस के एक परिवार ने संविधान को चोट पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। 75 साल की हमारी यात्रा में 55 साल एक ही परिवार ने राज किया है, इसलिए देश को क्या-क्या हुआ है, ये जानने का अधिकार है। इस परिवार के कुविचार, कुरीति, कुनीति, इसकी परंपरा निरंतर चल रही है। हर स्तर पर इस परिवार ने संविधान को चुनौती दी है। 1947-1952 इस देश में चुनी हुई सरकार नहीं थी, एक सेलेक्टेड सरकार थी। चुनाव नहीं हुए थे, एक अंतरिम व्यवस्था के रूप में खाका खड़ा किया गया था। 1952 के पहले राज्यसभा का भी गठन नहीं हुआ था। राज्यों में भी कोई चुनाव नहीं थे, जनता का कोई आदेश भी नहीं था, उसके बावजूद 1951 में जब चुनी हुई सरकार नहीं थी, उन्होंने संविधान को बदला और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला कर दिया गया। ये संविधान निर्माताओं का भी अपमान था। संविधान सभा में उनकी चली नहीं तो जैसे ही उनको मौका मिला तो अभिव्यक्ति की आजादी पर उन्होंने हथौड़ा मार दिया। अपने मन की चीजें जो संविधान सभा में नहीं करवा पाए तो पिछले दरवाजे से उन्होंने करवाया था।

संविधान का शिकार करती रही कांग्रेस

उसी दौरान उस समय के प्रधानमंत्री पं नेहरू जी ने मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी थी और उसमें नेहरू जी ने लिखा था कि 'अगर संविधान हमारे रास्ते के बीच में आ जाए, तो हर हाल में संविधान में परिवर्तन करना चाहिए।' 1951 में ये पाप किया गया, लेकिन देश चुप नहीं था। उस समय राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने चेताया कि ये गलत हो रहा है, स्पीकर महोदय जी ने भी पंडित जी को चेताया कि ये गलत कर रहे हो, लेकिन पंडित जी का अपना संविधान चलता था और इसलिए उन्होंने इतने वरिष्ठ महानुभावों की सलाह को दरकिनार कर दिया। ये संविधान संशोधन करने का ऐसा खून कांग्रेस के मुंह लग गया कि समय-समय पर वो संविधान का शिकार करती रही। संविधान की आत्मा को लहूलुहान करती रही। करीब 6 दशक में 75 बार संविधान बदला गया। जो बीज देश के पहले प्रधानमंत्री जी ने बोया था उस बीज को खाद पानी देने का काम एक और प्रधानमंत्री जी ने किया , उनका नाम था श्रीमती इंदिरा गांधी। जो पाप पहले प्रधानमंत्री पहले पीएम करके गए और 1971 में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया था,. उस फैसले को संविधान बदल करके पलट दिया गया और 1971 में संविधान संशोधन किया गया था। उन्होंने हमारी देश की अदालत के पंख काट दिए थे। संसद, संविधान के किसी भी आर्टिकल में जो मर्जी वो परिवर्तन कर सकती है और अदालत कुछ भी नहीं कर सकती है, ये पाप इंदिरा गांधी ने किया था।

कांग्रेस के मुंह लग गया संविधान का खून

इन लोगों को कोई रोकने वाला नहीं था, इसलिए जब इंदिरा जी के चुनाव को गैर नीति के कारण अदालत ने उनके चुनाव को खारिज कर दिया और उनको एमपी पद छोड़ने की नौबत आई तो उन्होंने गुस्से में आकर देश पर इमरजेंसी थोप दी, अपनी कुर्सी बचाने के लिए। इतना ही नहीं, 1975 में 39वां संशोधन किया और उसमें उन्होंने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव के खिलाफ कोई कोर्ट में नहीं जा सकता है, ऐसा उन्होंने किया। जिस जस्टिस खन्ना ने ये आदेश दिया था, उन्हें मुख्य न्यायाधीश नहीं बनने दिया। यहां बैठे कई दलों के मुखिया को भी जेलों में ठूंस दिया गया था। इनके मुंह खून लग गया था इसलिए राजीव गांधी जी ने संविधान को एक और गंभीर झटका दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो का जजमेंट दिया था, जिसे राजीव गांधी ने शाह बानो की उस भावना को सुप्रीम कोर्ट की उस भावना को नकार दिया और वोट बैंक की राजनीति की खातिर संविधान को बलि चढ़ा दिया और कट्टरपंथियों के सामने सिर झुकाने को मजबूत कर दिया। उन्होंने कट्टरपंथियों का साथ दिया। संसद में कानून बनाकर एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया गया। 

अहंकारी व्यक्ति ने फाड़ दिया कैबिनेट का फैसला

मनमोहन सिंह जी ने भी कहा था कि पार्टी अध्यक्ष सत्ता का केंद्र हैं। इतिहास में पहली बार संविधान को गहरी चोट पहुंचा दी गई, संविधान निर्माताओं ने चुनी हुई सरकार की कल्पना की थी। लेकिन इन्होंने प्रधानमंत्री के ऊपर भी एक गैर संवैधानिक व्यक्ति को बैठा दिया। उसे पीएमओ के ऊपर का दर्जा दे दिया। एक पीढ़ी और आगे चलें तो उस पीढ़ी ने भारत के संविधान के तहत देश की जनता सरकार चुनती है, उस सरकार का मुखिया कैबिनेट बनाता है। इस कैबिनेट ने जो फैसला लिया। इस अहंकार से भरे लोगों ने कैबिनेट के फैसले को प्रेस के सामने फाड़ दिया। संविधान से खिलवाड़ करना, संविधान को ना मानना इनकी आदत हो गई थी। एक अहंकारी व्यक्ति कैबिनेट के फैसले को फाड़ दे और कैबिनेट अपना फैसला बदल दे, ये कौन सी व्यवस्था है। 

समान नागरिक संहिता को लाने में लगी हुई है सरकार

समान नागरिक संहिता के विषय पर भी संविधान सभा में चर्चा हुई। बहस के बाद निर्णय लिया गया कि जो भी सरकार चुनकर आएगी वो इस पर निर्णय लेगी और इसे लागू करेगी। धार्मिक आधार पर बने पर्सनल लॉ को खत्म करने की जोरदार वकालत की थी। मुंशी जी ने कहा था कि समान नागरिक संहिता को राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए अनिवार्य बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार कहा है कि देश में यूनिफार्म सिविल कोड जल्द से जल्द लाना चाहिए। संविधान निर्माताओं की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए हम पूरी ताकत से समान नागरिक संहिता को लाने में लगे हुए हैं। 

सरदार जी होते देश के पहले पीएम

कांग्रेस के मुंह से संविधान शोभा नहीं देता। जो अपनी पार्टी के संविधान को नहीं मानते, उनके मुंह से संविधान शब्द शोभा नहीं देता। कांग्रेस की 12 प्रदेश समितियों ने सरदार पटेल को सहमति दी थी। संविधान के तहत सरदार पटेल ही पीएम बनते, लेकिन खुद के ही संविधान को स्वीकारना नहीं और सरदार साहब पीएम नहीं बन सके और ये बैठ गए। जो लोग अपनी पार्टी के संविधान को नहीं मानते वो कैसे देश के संविधान को स्वीकार कर सकते हैं। 2014 के बाद एनडीए को सेवा का मौका मिला। संविधान और लोकतंत्र को मजबूती मिली। जो पुरानी बीमारियां थी, उनसे मुक्ति का अभियान चलाया गया। हमने भी संविधान संशोधन किए हैं, देश की एकता के लिए, देश की अखंडता के लिए और संविदान की भावना के प्रति पूर्ण समर्थन के साथ किए हैं। हमें गर्व है ये करने का। 

हमने भी संविधान में संशोधन किया

इस देश में एक बहुत बड़ा वर्ग था जो किसी भी जाति में जन्मा हो, लेकिन गरीबी के कारण वो अवसरों को पा नहीं सकता था, इसलिए उसने असंतोष की ज्वाला भड़क रही थी और सबकी मांग थी कि कोई निर्णय नहीं ले रहा। हमने संविधान संसोधन करके 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया। इसे सभी ने स्वीकार किया। हमने महिलाओं को शक्ति देने के लिए संविधान में संशोधन किया। हमने संविधान संशोधन देश की एकता के लिए किया। हमने संविधान संशोधन किया और डंके की चोट पर किया। हमने धारा 370 को हटाया और अब कोर्ट ने भी उसपर मुहर लगा दी है। हमारा संविधान सबसे ज्यादा जिस बात के प्रति संवेदनशील रहा है, वो है- भारत के लोग। कांग्रेस के साथियों को एक शब्द बहुत प्रिय है, जिसके बिना वो जी नहीं सकते, वो शब्द है- जुमला। देश को पता है कि हिंदुस्तान में अगर सबसे बड़ा जुमला कोई था जिसे चार-चार पीढ़ी ने चलाया वो जुमला था गरीबी हटाओ। ये ऐसा जुमला था जिससे उनकी राजनीति की रोटी सिकती थी, लेकिन गरीबी खत्म नहीं होती थी। 

यहां देखें पीएम मोदी का पूरा भाषण-

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