नीतीश कुमार बीजेपी के साथ आ तो गए, लेकिन बिहार में एनडीए की अन्य पार्टियों ने बढ़ाई भाजपा की चिंता
नीतीश कुमार के फिर से एनडीए में आने से जहां बीजेपी की एक चिंता कम हुई तो दूसरी बढ़ गई है। बीजेपी को लोकसभा चुनाव के दौरान सीट बंटवारे में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। अब देखने वाली बात होगी कि बीजेपी इस संकट से कैसे निकलती है।
नई दिल्ली: बिहार में सियासी उलटफेर के बाद राजनीतिक हालात काफी बदल गए हैं। राज्य में एनडीए अब और भी ज्यादा मजबूत हो गया है। इंडिया गठबंधन की मुश्किलें और भी बढ़ गई हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि इस पूरे प्रकरण से बीजेपी की चिंता कम हुई है। नीतीश कुमार के एनडीए में आने के बाद भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बिहार में बढ़ सकती हैं। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, नीतीश को साधने के बाद अब भाजपा के लिए अपने पुराने सहयोगियों चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी को साथ बनाए रखना बड़ी चुनौती बन गया है।
नीतीश के एनडीए में आने से खुश नहीं हैं चिराग
दरअसल, नीतीश कुमार के साथ कट्टर राजनीतिक मतभेद रखने वाले चिराग पासवान उनके फिर से एनडीए गठबंधन में शामिल होने को लेकर सहज नहीं हैं और उन्होंने अमित शाह और जेपी नड्डा से बात कर यह बता दिया है कि उनके कोटे की सीटों में कटौती नहीं होनी चाहिए। एनडीए के बैनर तले भाजपा ने पासवान की पार्टी को 2014 के लोक सभा चुनाव में 7 सीटें दी थी जिसमें से पार्टी के 6 सांसद चुनाव जीते थे। वहीं, 2019 के लोक सभा चुनाव में पासवान की पार्टी को लोक सभा की 6 सीटें दी गयी थी और एक सीट की भरपाई रामविलास पासवान को राज्य सभा भेज कर किया गया था। चिराग पासवान अपने चाचा, चचेरे भाई और अन्य सांसदों के अलग होने के बावजूद 7 के फ़ॉर्मूले पर अड़े हुए हैं और साथ ही हाजीपुर लोक सभा सीट भी चाहते हैं।
उपेंद्र कुशवाहा 2014 की तर्ज पर 3 लोक सभा सीटें मांग रहे
वहीं, उपेंद्र कुशवाहा 2014 की तर्ज पर 3 लोक सभा सीटें मांग रहे हैं। जीतन राम मांझी भी 2 सीटों पर अड़े हुए हैं और नीतीश कुमार की पार्टी भी 2019 की तर्ज पर 17 लोक सभा सीटें मांग सकती है। ऐसे में नीतीश कुमार के साथ आने के बाद पुराने सहयोगियों को खासकर चिराग पासवान को साथ बनाए रखना काफी चुनौती भरा काम हो गया है। सूत्रों के मुताबिक, चिराग पासवान ने यह इशारा कर दिया है कि उनकी मांगे नहीं मानी गई तो वो 2020 के विधान सभा चुनाव की तर्ज पर अपनी सीटों के साथ नीतीश कुमार की पार्टी के सभी लोक सभा उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा कर देगी और अगर ऐसा हुआ तो भाजपा के मंसूबों को बड़ा धक्का लग सकता है।
2019 में जेडीयू को मिली थीं 17 सीटें
आपको याद दिला दें कि, 2019 के लोक सभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को एनडीए गठबंधन में एडजस्ट करने के लिए भाजपा ने स्वयं बड़ी कुर्बानी देते हुए अपने पांच सिटिंग सांसदों का टिकट काटकर उन सीटों को जेडीयू को दे दिया था। लेकिन, इस बार सहयोगियों की संख्या ज्यादा है और भाजपा अकेले सबको एडजस्ट नहीं कर सकती। सूत्रों की मानें तो भाजपा, इस बार बिहार में सभी सहयोगियों से मिलकर चुनाव लड़ने के लिए एक-एक सीट की कुर्बानी देने का आग्रह कर सकती है। भाजपा 7 सीटों के फ़ॉर्मूले की बजाय चिराग पासवान और पशुपति पारस, दोनों चाचा भतीजा को एक सीट कम में मनाने की कोशिश करेगी। पार्टी नीतीश कुमार को भी पिछली बार के 17 सीटों की तुलना में इस बार एक सीट कम यानी 16 सीटों पर ही लड़ाने का प्रयास करेगी। उपेंद्र कुशवाहा को भी 3 की बजाय 2 सीटों पर ही मनाने का प्रयास किया जाएगा और अगर हम के जीतन राम मांझी भी लोक सभा चुनाव लड़ने पर अड़े रहे तो भाजपा को अपने दो सिटिंग सांसदों का टिकट काटना पड़ सकता है।
पशुपति पारस को भेजा जा सकता है राज्यसभा
हालांकि, भाजपा इस बात का भी प्रयास करेगी कि वर्तमान में पशुपति पारस की पार्टी से सांसद प्रिंस राज पासवान को अपनी पार्टी या फिर जेडीयू के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ाया जाए। अगर भाजपा के इस फॉर्मूले पर सहयोगी दल सहमत हो जाते हैं तो भाजपा और जेडीयू 16-16 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। चिराग पासवान की पार्टी- 4, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी - 2 और जीतन राम मांझी की पार्टी को एक लोक सभा की सीट दी जाएगी। पशुपति पारस की पार्टी को एक सीट दी जाएगी और उनके एक उम्मीदवार को जेडीयू या फिर भाजपा के चुनाव चिन्ह पर लड़ाया जाएगा। हालांकि, अगर पशुपति पारस नहीं माने तो फिर भाजपा उन्हें राज्य सभा में भी एडजस्ट कर सकती है। पार्टी जीतन राम मांझी को भी एमएलसी का आश्वासन देकर मनाने की कोशिश करेगी। हालांकि, चिराग पासवान के स्टैंड को लेकर भाजपा अभी भी काफी सशंकित है।