Maharashtra Politics: शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना को बचाने में जुटे आदित्य ठाकरे, बागियों के गढ़ में भर रहे हुंकार
Maharashtra Politics: शिंदे खेमे की बगावत के युवा नेता आदित्य ठाकरे अब अपनी पार्टी को बचाने में जुट गए हैं। पार्टी पर कब्जे के कानूनी दांवपेच भी जारी हैं। उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। ऐसे में आदित्य ठाकरे शिवसेना का जनाधार फिर मजबूत करने के लिए खासतौर से बागियों के गढ़ों के दौरे कर रहे हैं।
Highlights
- आदित्य ठाकरे बागियों के गढ़ में लाल तिलक लगा कर रहे दौरे
- कार्यकर्ताओं से जुड़ने के लिए सड़क पर उतरे आदित्य ठाकरे
- पार्टी के साथ-साथ अपने राजनीतिक भविष्य को संवार रहे आदित्य
Maharashtra Politics: एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना बहुत ही कमजोर नजर आ रही है। अपनी पार्टी को एक बार फिर से मजबूती से खड़ा करने के उद्देश्य से आदित्य ठाकरे कार्यकर्ताओं से जुड़ने के लिए सड़क पर उतर आए हैं। एक समय था जब आदित्य बॉलीवुड सितारों और हस्तियों के साथ खूब व्यस्त रहते थे बजाए पार्टी के कार्यकर्ताओं से जुड़ने के जिसकी आलोचना भी की जाती थी लेकिन बिगड़े वक्त को सुधारने के लिए अब वह मुंबई के बाहर मैदान में उतर चुके हैं। वह महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों का दौरा कर रहे हैं, खास तौर पर उन निर्वाचन क्षेत्रों में जहां के शिवसेना विधायकों ने बगावत की है।
उद्धव ठाकरे की शिवसेना के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। इसी खतरे को लेकर आदित्य एक बार फिर से महाराष्ट्र में शिवसेना का जनाधार मजबूत करने में जुट गए हैं। वह लगातार बागियों के गढ़ में दौरा कर रहे ताकि एक बार फिर से ठाकरे परिवार का कब्जा और पार्टी की खोई हुई प्रतिष्ठा बरकरार कर सकें। शिवसेना की स्थापना ठाकरे परिवार के पतृ पुरूष स्व. बाला साहेब ठाकरे ने की थी। आदित्य तीसरी पीढ़ी के नेता हैं। हालांकि पार्टी इससे पहले भी कई बार बगावत का सामना कर चुकी है लेकिन इस बार की बगावत से पार्टी बिल्कुल टूट कर बिखर गई है। आदित्य के सामने न केवल पार्टी के विरासत को बचाने की जिम्मेदारी है बल्कि अपने राजनीतिक भविष्य को आकार देने की भी चुनौती है।
राजनीतिक सफर में अपना हुलिया भी बदल लिया
आम तौर पर शांत और सौम्य रहने वाले 32 वर्षीय आदित्य ठाकरे ने पिछले डेढ़ महीने से आक्रामक रुख अपना रखा है। वह विधानसभा में मुंबई की वर्ली सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह ‘निष्ठा यात्रा’ और ‘शिव संवाद’ अभियान के जरिये कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं। मंत्री रहने के दौरान आम तौर पर आदित्य ठाकरे को पैंट और शर्ट में देखा जाता था तथा कई बार वह इस पर काले रंग की जैकेट पहने नजर आते थे और उसी रंग के जूते पहने दिखते थे। इसके विपरीत अब उनके माथे पर तिलक होता है।
पार्टी को फिर से खड़ी करने के लिए बेटे ने बाहर तो पिता ने घर से संभाली कमान
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) और कांग्रेस से गठबंधन करने की वजह से उनके पिता को हिंदुत्व के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता पर सवालों का सामना करना पड़ा है। शिवेसना के 55 में से 40 विधायकों ने इस साल जून में पार्टी नेतृत्व से बगावत कर दी थी, जिसकी वजह से उद्धव ठाकरे नीत महा विकास अघाड़ी (MVA) सरकार गिर गई थी। लोकसभा में भी पार्टी के 18 सदस्यों में से 12 ने बागी गुट का नेतृत्व कर रहे एकनाथ शिंदे का समर्थन किया है। कई पूर्व पार्षद और पदाधिकारियों ने भी पाला बदल लिया है जिसके बाद आदित्य ठाकरे को यह बिखराव रोकने के लिए सड़क पर उतरना पड़ा है। स्वास्थ्य कारणों की वजह से बहुत अधिक यात्रा कर पाने में असमर्थ उद्धव ठाकरे भी अपने आवास ‘मातोश्री’ में पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ बैठकें कर रहे हैं। पिछले साल उद्धव ठाकरे की रीढ़ का ऑपरेशन हुआ था और तब कई सप्ताह तक उन्होंने मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी अपने घर से संभाली थी। बगावत में शिंदे का साथ देने वाले कई विधायकों की शिकायतों की सूची में एक शिकायत यह भी थी कि उद्धव ठाकरे ‘‘उपलब्ध नहीं होते’’ थे।
बगावत के बाद बदले आदित्य ठाकरे के सुर
उल्लेखनीय है कि 21 जून को बगावत के बाद से आदित्य ठाकरे पार्टी के मुंबई और आसपास स्थित स्थानीय कार्यालयों का दौरा कर पार्टी काडर को एकजुट रखने की कोशिश करते रहे हैं क्योंकि जल्द ही मुंबई और अन्य बड़े नगर निकायों के चुनाव होने हैं। इससे पहले आदित्य के स्थानीय शाखाओं में जाने की बात शायद ही सुनी जाती थी। उन्होंने मुंबई से परे शिवसेना के मजबूत ‘गढ़’ कोंकण और मराठवाड़ा का दौरा भी किया है। आदित्य ने पश्चिमी महाराष्ट्र की भी यात्रा की और यह यात्रा बागी विधायकों के निर्वाचन क्षेत्र में हाताश कार्यकर्ताओं में भरोसा जगाने के लिए थी। आदित्य ठाकरे ने बागियों के खिलाफ तीखे हमलों की शुरुआत की और ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया जो पहले शायद ही सुनी गई हो। उन्होंने बागियों को ‘‘गद्दार’’, ‘‘नाली की गंदगी’’ करार दिया तथा कहा कि उन्होंने उनके पिता की ‘‘पीठ में तब छुरा घोंपा’’ जब वह बीमार थे। उन्होंने बागियों को विधानसभा से इस्तीफा देकर नए सिरे से चुनाव लड़ने की चुनौती भी दी है।
आदित्य की भाषा को लेकर बागियों ने साधा निशाना
आदित्य की भाषा को लेकर बागियों ने उन पर निशाना साधा। यहां तक कि उद्धव ठाकरे के प्रति निष्ठा रखने वाले कुछ नेताओं ने भी इसे खारिज किया। सोलापुर की सांगोला सीट से शिवसेना के बागी विधायक शाहजी पाटिल ने कहा कि युवा नेता अपने दादा एवं शिवसेना संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे की नकल करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ‘‘नकल’’ से काम नहीं चलता। पाटिल ने कहा, ‘‘आदित्य ठाकरे जैसा बच्चा ऐसा बोलता है। इन विधायकों की उम्र 50-60 साल की है। माता-पिता बच्चों को सिखाते हैं कि बड़ों से सम्मान से बात करो, लेकिन पता नहीं उन्हें सिखाया गया है या नहीं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर उनमें ठाकरे जैसा स्तर नहीं होगा तो उनके लिए 50 लोगों की जनसभा को भी संबोधित करना मुश्किल होगा। एक ओर आप हमें गद्दार बताते हैं और दूसरी ओर आप वापस आने की अपील करते हैं।’’