जिस रॉक मेमोरियल में ध्यान लगाएंगे पीएम मोदी वहां क्या है खास? विवेकानंद ने यहीं देखा था बड़ा सपना
विवेकानंद रॉक मेमोरियल को भारत का सबसे आखिरी दक्षिणी छोर माना जाता है। जिस स्थान पर प्रधानमंत्री ध्यान लगाएंगे उसका विवेकानंद के जीवन पर बड़ा प्रभाव था।
लोकसभा चुनाव 2024 का समापन जल्द ही होने जा रहा है। 1 जून को सातवें यानी आखिरी फेज के लिए वोटिंग होगी जिसके लिए चुनाव प्रचार 30 मई की शाम को समाप्त हो जाएगा। इस पूरे चुनाव में प्रदानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे देश में एक के बाद एक धुंआधार रैलियां की हैं। अब चुनाव प्रचार के समाप्त होने के बाद पीएम मोदी ध्यान करने के लिए 30 मई को तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में प्रसिद्ध विवेकानंद रॉक मेमोरियल जाएंगे। आइए जानते हैं इस स्थान के बारे में कुछ खास बातें।
क्यों प्रसिद्ध है रॉक मेमोरियल?
मोदी विवेकानंद रॉक मेमोरियल के ध्यान मंडपम में 30 मई की शाम से एक जून की शाम तक ध्यान की अवस्था में रहेंगे। ऐसा कहा जाता है कि यह वही स्थान हैं जहां आध्यात्मिक विभूति विवेकानंद को भारत माता के बारे में दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई थी। इस स्थान को पवित्र ग्रंथों में भगवान शिव के लिए देवी पार्वती के ध्यान स्थल के रूप में भी जाना जाता है। माना जाता है कि विवेकानंद ने शिकागो में विश्व धर्म संसद में अपने ऐतिहासिक भाषण के लिए जाने से पहले इसी चट्टान पर ध्यान लगाया था। विवेकानंद ने यहां ध्यान लगाकर ही एक विकसित भारत का सपना देखा था।
भारत के दक्षिण में आखिरी छोर
विवेकानंद रॉक मेमोरियल को भारत का सबसे आखिरी दक्षिणी छोर माना जाता है। यह वह स्थान है जहां पर पूर्वी और पश्चिमी तटरेखाएं मिलती हैं और हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर मिलते हैं। इस जगह पर सूर्योदय और सूर्यास्त का भी अद्भुत नजारा देखने को मिलता है जो दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
कैसे पहुंचते हैं?
विवेकानन्द रॉक मेमोरियल सबसे लोकप्रिय स्मारक है जो भारत के तमिलनाडु राज्य में कन्याकुमारी जिले के सबसे दक्षिणी सिरे पर और मुख्य भूमि से 500 मीटर की दूरी पर स्थित है। ये चट्टाने लक्षद्वीप सागर से घिरी हुई हैं। यहां पहुंचने के लिए छोटी नाव की सवारी की सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है। ये स्थान भारत में आध्यात्मिक विरासत का एक प्रतीक माना जाता है।
कब और क्यों हुई थी स्थापना?
स्वामी विवेकानन्द रॉक मेमोरियल की स्थापना साल 1970 में विवेकानन्द के सम्मान में की गई थी। मेमोरियल का निर्माण पूरा करने में करीब छह साल लगे थे। इसके निर्माण का श्रेय प्रसिद्ध वास्तुकार एकनाथ रानाडे को दिया जाता है। माना जाता है कि इसी चट्टान पर तीन दिन और तीन रातों तक ध्यान करने के बाद स्वामी विवेकानंद को ज्ञान प्राप्त हुआ था। शांति और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए लोग अक्सर इस स्मारक पर आते हैं।