JDU Politics: झारखंड में झामुमो को साथ लिए बिना आगे नहीं बढ़ पाएगी नीतीश की 'विपक्षी एकता एक्सप्रेस'
JDU Politics: नीतीश कुमार जिस विपक्षी एकता की मुहिम पर निकले हैं, वह 2024 के लोकसभा चुनाव के नजरिए से झारखंड में कितना असरदार साबित होगा लेकिन झारखंड की जमीन से भाजपा को बेदखल करने की कोई भी लड़ाई झामुमो को साथ लिए बगैर आगे नहीं बढ़ पाएगी।
Highlights
- नीतीश कुमार और झारखंड के सीएम लोकसभा चुनाव के लिए होंगे एक साथ
- झामुमो को साथ लिए बगैर विपक्षी एकता की कोई गाड़ी आगे नहीं बढ़ पाएगी
- झारखंड सियासी संकट के दौरान जदयू और टीएमसी ने भाजपा पर हमला बोला
JDU Politics: बिहार के सीएम नीतीश कुमार और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के बीच सियासी तौर पर कभी खास दोस्ताना नहीं रहा, लेकिन 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर नीतीश की भाजपा विरोधी दलों का देशव्यापी मोर्चा बनाने की नीतीश की मुहिम अगर आगे बढ़ी तो यह तय माना जा रहा है कि हेमंत सोरेन भी उनके साथ होंगे। यह भी सच है कि झामुमो को साथ लिए बगैर आज की तारीखी में झारखंड में विपक्षी एकता की कोई गाड़ी आगे नहीं बढ़ पाएगी। यही वजह है कि बीते गुरुवार को कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने तो बकायदा एलान कर दिया, "2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ हम नीतीश कुमार, सीएम हेमंत सोरेन, अखिलेश यादव और अन्य नेताओं के साथ मिलकर लड़ेंगे।" नीतीश कुमार या ममता बनर्जी के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी प्रमुख हेमंत सोरेन की हाल-फिलहाल कोई मुलाकात तो नहीं हुई है, लेकिन हाल में जब झारखंड सरकार पर खतरा मंड़राता दिखा तो जदयू और टीएमसी दोनों पार्टियों ने इसे लेकर भाजपा पर हमला बोला।
JDU की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक
हजारीबाग में जदयू की झारखंड प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक हुई, जिसमें बकायदा प्रस्ताव पारित कर भाजपा और केंद्र सरकार की निंदा की गई। प्रस्ताव में कहा गया कि भाजपा झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली जनता की चुनी हुई सरकार को अपदस्थ करने की कोशिश कर रही है। इसके लिए केंद्रीय एजेंसियों ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स का दुरुपयोग किया जा रहा है। जदयू की इस बैठक में नीतीश सरकार के कैबिनेट मंत्री और झारखंड प्रभारी श्रवण कुमार भी मौजूद रहे।
झारखंड में सियासी संकट के दौरान ममता ने सोरेन का साथ दिया
उधर ममता बनर्जी भी झारखंड में सियासी संकट के वक्त हेमंत सोरेन के समर्थन में खड़ी रहीं। यह चर्चा भी आम है कि झारखंड में सत्ताधारी गठबंधन के विधायकों को तोड़ने के लिए ऑपरेशन लोटस को नाकाम करने में ममता बनर्जी ने हेमंत सोरेन की भरपूर मदद की। यह ममता बनर्जी सरकार की ही पुलिस थी, जिसने हावड़ा में झारखंड के तीन कांग्रेस विधायकों की भारी मात्रा में कैश के साथ गिरफ्तार कर ऑपरेशन लोटस की हवा निकाल दी। फिर इसके एक दिन बाद कोलकाता की ही पुलिस ने हेमंत सोरेन के खिलाफ कई PIL करने वाले झारखंड के अधिवक्ता राजीव कुमार को 50 लाख रुपए के साथ गिरफ्तार किया। भ्रष्टाचार के मामले में अधिवक्ता राजीव कुमार की गिरफ्तारी से भी हेमंत सोरेन को बड़ी राहत मिली। सुप्रीम कोर्ट में हेमंत सोरेन की ओर से इस मामले को बकायदा क्वोट करते हुए बताया गया कि उनके खिलाफ पीआईएल करने वाले अधिवक्ता करप्ट प्रैक्टिस में लिप्त रहे हैं। जाहिर है, भाजपा के खिलाफ मोर्चेबंदी में हेमंत सोरेन अब नीतीश कुमार और ममता बनर्जी के साथ रहेंगे। हेमंत सोरेन के हालिया बयान भी इसके संकेत देते हैं। सोरेन कहते हैं कि यह देश का दुर्भाग्य है कि केंद्र की मौजूदा भाजपा सरकार देश के आधे से ज्यादा राज्यों में चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने की साजिश में जुटी है। हम उनकी साजिशों को किसी हाल में सफल नहीं होने देंगे।
झारखंड की लोकसभा सीटों का गणित
अब सवाल यह है कि भाजपा के खिलाफ मोर्चेबंदी में झारखंड के क्षत्रप हेमंत सोरेन कितने प्रभावशाली और मददगार होंगे? इस सवाल के जवाब के लिए झारखंड की लोकसभा सीटों का गणित समझना जरूरी है। झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं। 2019 के आम चुनाव में भाजपा ने इनमें से 11 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि एक सीट पर उसकी सहयोगी पार्टी आजसू के प्रत्याशी विजयी हुए थे। शेष दो सीटों में एक पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और दूसरी सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में झारखंड में चार पार्टियों झामुमो, कांग्रेस, झाविमो और राजद ने मिलकर मोर्चा बनाया था, लेकिन इसके बावजूद भाजपा की लहर में यह मोर्चा निष्प्रभावी साबित हुआ था। हालांकि इस लोकसभा चुनाव के मात्र छह महीने बाद नवंबर में हुए झारखंड विधानसभा के चुनाव में झामुमो, कांग्रेस और राजद के गठबंधन ने शानदार जीत हासिल की। जो गठबंधन लोकसभा चुनाव में असर नहीं छोड़ पाया, उसने विधानसभा की 81 में से 47 सीटों पर जीत हासिल कर राज्य में भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में भी कमोबेश ऐसे ही नतीजे सामने आए थे। इस चुनाव में भी झामुमो, कांग्रेस और राजद ने गठबंधन किया था, लेकिन इसके बावजूद 14 में से 12 सीटें भाजपा के पक्ष में गई थीं, जबकि दो सीटों पर झामुमो ने जीत दर्ज की थी। कांग्रेस और राजद को किसी सीट पर सफलता नहीं मिली थी। इसके बाद इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने शानदार जीत दर्ज कर पहली बार राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी।
इन नतीजों के आधार पर कह सकते हैं कि झारखंड में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में एक जैसे सियासी समीकरण प्रभावी नहीं होते। हालांकि आज की तारीख में झारखंड में जो राजनीतिक परिस्थितियां हैं, उसमें हेमंत सोरेन की सरकार कई बड़े और जनप्रिय फैसले लेकर अपने कोर वोटर्स के बीच अच्छा संदेश देने में सफल रही है। नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को विस्तार न देने की मांग पर तीस साल से आंदोलन चल रहा था। सोरेन सरकार ने यह मांग मान ली है। इसी तरह ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने, पुलिसकर्मियों को साल में 13 महीने का वेतन देने, आंगनबाड़ी सेविकाओं-सहायिकाओं के मानदेय में वृद्धि, पारा शिक्षकों की सेवा के स्थायीकरण, पंचायत सचिवों के पदों पर दलपतियों की नियुक्ति, सहायक पुलिसकर्मियों की सेवा को विस्तार जैसे बड़े फैसले उन्होंने लिये हैं। ये फैसले निश्चित तौर पर आनेवाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उन्हें अपने पक्ष और भाजपा के विपक्ष में नैरेटिव गढ़ने में मदद देंगे।
विपक्ष की एकता को और मजबूत बनाएंगे हेमंत सोरेन
बहरहाल, नीतीश कुमार जिस विपक्षी एकता की मुहिम पर निकले हैं, वह 2024 के लोकसभा चुनाव के नजरिए से झारखंड में कितना असरदार साबित होगा, इस बारे में अभी से कोई भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी। इतना तय है कि झारखंड की जमीन से भाजपा को बेदखल करने की कोई भी लड़ाई झामुमो को साथ लिए बगैर आगे नहीं बढ़ पाएगी।